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अवैध फेरीवालों को हटाने के लिए नेताओं, अधिकारियों में इच्छाशक्ति की कमी: दिल्ली उच्च न्यायालय

By भाषा | Updated: November 10, 2021 23:11 IST

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नयी दिल्ली, 10 नवंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि सड़क से अवैध फेरीवालों और विक्रेताओं को हटाने के लिए नेताओं और अधिकारियों में कोई इच्छाशक्ति नहीं है और ‘लुटियंस दिल्ली’ को छोड़कर, शहर में कोई जगह नहीं है जो अतिक्रमणकारियों से खाली हो।

पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा, ‘‘फिर लुटियंस जोन को क्यों बख्शा गया। उन्हें यहां भी होना चाहिए। उन्हें राष्ट्रपति भवन, पृथ्वीराज रोड, दिल्ली उच्च न्यायालय, इंडिया गेट के सामने रहने दें और इसे जंगल बना दें। इस क्षेत्र को क्यों छोड़ें, हम सभी को इसका सामना करना चाहिए।’’

कई वर्षों से चांदनी चौक क्षेत्र में पुनर्विकास कार्य की निगरानी कर रहे न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि उसे इस मामले में पूरी तरह हार का अहसास हो रहा है।

पीठ ने कहा, ‘‘अगर राजनीतिक और कार्यपालिका की इच्छाशक्ति ही नहीं है, तो उसे वैसे ही चलने दें, जैसे उसे जाना है, हम क्यों परेशान हों। हमें इस मामले में पूरी तरह हार का अहसास हो रहा है।’’

पीठ ने कहा कि सभी रेहड़ी-पटरी वालों को अधिकारियों को अपना ‘हफ्ता’ देना होता होगा, इसलिए वे वहां बैठे हैं और यही कारण है कि अधिकारी स्थिति में कोई सुधार नहीं चाहते हैं। अदालत ‘चांदनी चौक सर्व व्यापार मंडल’ की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अधिकारियों को चांदनी चौक में रेहड़ी पटरी वालों के लिए निषिद्ध क्षेत्र से अवैध फेरीवालों और विक्रेताओं को हटाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया।

पीठ ने कहा कि दिल्ली की मौजूदा आबादी और पूरे देश से राजधानी में भारी संख्या में लोगों के आगमन के मद्देनजर चांदनी चौक में फेरीवालों की गतिविधि को पूरी तरह से रोकना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं हो सकता है। पीठ ने कहा, ‘‘लोगों को इस क्षेत्र में फेरी लगाने की आदत हो गई है, भले ही यह ‘नो हॉकिंग’ और ‘नो वेंडिंग जोन’ है। बड़ी आबादी बेरोजगार है और उन्हें अपनी आजीविका की जरूरतों को पूरा करने के लिए फेरी लगाना और बेचना आसान लगता है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘रेहड़ी पटरी लगाने को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। हमारे विचार से यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि प्रशासन रेहड़ी पटरी विक्रेता कानून के तहत जल्द से जल्द एक योजना तैयार करने का कार्य करे ताकि फेरी लगाने को नियंत्रित किया जा सके।’’

पीठ ने कहा कि फेरीवाले और विक्रेता न केवल अपना जीवन यापन करते हैं बल्कि लोगों के लिए उचित मूल्य पर सामान खरीदना सुविधाजनक बनाते हैं और निश्चित रूप से शहर की अर्थव्यवस्था में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

पीठ ने उत्तरी दिल्ली नगर निगम को ‘स्ट्रीट वेंडिंग’ योजना तैयार करने की प्रक्रिया तुरंत शुरू करने का निर्देश दिया। पीठ ने निगम को इस संबंध में उठाए गए कदमों को इंगित करते हुए एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया और यह स्पष्ट किया कि इस निर्देश का पालन करने के लिए इसके आयुक्त व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे। पीठ ने मामले को अब छह दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव रल्ली ने अदालत को सूचित किया कि 330 कैमरे लगाने के लिए बार-बार निर्देश देने के बावजूद, दिल्ली पुलिस द्वारा इलाके और रास्ते में अतिक्रमण की जांच के लिए एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं लगाया गया है।

वहीं, दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त स्थायी वकील अनुज अग्रवाल ने कहा कि पहले पुनर्विकास कार्य के कारण कैमरे नहीं लगाए जा रहे थे। हालांकि, उन्होंने सीसीटीवी लगाने और इलाके से अतिक्रमण हटाने के मुद्दे पर निर्देश लेने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा।

दिल्ली सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त स्थायी वकील नौशाद अहमद खान ने कहा कि सरकार द्वारा कुछ सीसीटीवी लगाए गए हैं और वह सुनवाई की अगली तारीख को रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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