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किसान आंदोलन : पूर्व नौकारशाहों का एक समूह पक्ष में जबकि दूसरा कर रहा है आंदोलन समाप्त करने की अपील

By भाषा | Updated: March 11, 2021 17:37 IST

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लखनऊ, 11 मार्च उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त नौकरशाहों के एक समूह ने केन्द्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों से कहा है कि वे विरोध खत्म करें क्योंकि कानून उनके हित में हैं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव अतुल गुप्ता सहित कई पूर्व नौकरशाहों ने किसानों से अनुरोध किया है कि वे ‘‘कृषि कानूनों के विरोध के माध्यम से निजी हित साध रहे लोगों के दुष्प्रचार से भ्रमित ना हों।’’

गौरतलब है कि इससे दो दिन पहले पूर्व नौकरशाहों के एक अन्य समूह और कुछ अन्य प्रसिद्ध लोगों ने किसान आंदोलन का समर्थन किया है।

एक बयान के मुताबिक उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव अतुल गुप्ता ने कहा, ‘‘प्रदर्शन कर रहे किसानों को किसी के बहकावे में नहीं आना चाहिए। उन्हें कृषि कानूनों के फायदे के बारे में खुद जानना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि प्रशासन और पुलिस के पूर्व अधिकारियों ने किसानों से अपील में कहा है, ‘‘आपके आंदोलन से आम जनता को परेशानी हो रही है।’’

गुप्ता ने कहा, ‘‘केन्द्र व राज्य सरकार ने किसानों की आमदनी बढ़ाने का काम किया है। सरकार ने बजट में कृषि के सुदृढ़ीकरण के साथ-साथ किसानों की आय में वृद्धि के लिए कई अहम प्रावधान किये गये हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘मंडियां खत्म नहीं की जा रही हैं बल्कि किसानों की सुविधा के लिए मंडियों को ई-नाम के साथ जोड़ा जा रहा है, जिससे उनकी उपज का डेढ़ गुना दाम मिलने की गारण्टी होगी। कृषि कानून में सहूलियत दी गई है कि किसान के साथ समझौता (एग्रीमेण्ट) करने वाला, उसे समाप्त नहीं कर सकता, लेकिन किसान को समझौता समाप्त करने का अधिकार होगा। किसान की उपज से समझौता करने वाले को अधिक लाभ होने पर उसे किसान को बोनस भी देना होगा।

पूर्व आईएएस अफसर सुदेश ओझा सहित अन्य अफसरों ने किसानों से कहा, ‘‘ठेके पर खेती कोई नई चीज नहीं है, प्रदेश के कई हिस्सों में पहले से हो रही है। इसमें किसान अपनी मर्जी से सिर्फ फसल का कांट्रैक्ट करता है, न कि जमीन का। इस तरह की खेती से किसानों की जमीन जाने का भ्रम फैलाया जा रहा है।’’

पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) सुलखान सिंह ने कहा कि केन्द्र व प्रदेश सरकार द्वारा किसानों के हितों में अनेक फैसले लिए गये, जिसके कारण किसान विकास की मुख्यधारा से जुड़ा है। उन्होंने कहा, ‘‘गन्ना किसानों को एक लाख 15 हजार करोड़ रुपये का रिकॉर्ड गन्ना मूल्य भुगतान किया तथा बन्द चीनी मिलों को पुनः संचालित कर उनकी क्षमता का विस्तार भी किया है।’’ उन्होंने कहा कि नए कृषि कानूनों से ना तो मंडिया बंद होंगी और नाहीं न्यूनतम समर्थन मूल्य की परंपरा समाप्त होगी। इससे किसानों की फसल का मुनाफा बढ़ेगा।’’

भारतीय किसान मंच के देवेंद्र तिवारी ने कहा कि नए कृषि कानूनों से किसान जिसे चाहे, जहां चाहे अपनी उपज बेच सकता है। किसान अपनी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य पर, मंडी में, व्यापारी को, दूसरे राज्यों में एफपीओ के माध्यम से, जहां उचित मूल्य मिले बेच सकता है।

तिवारी ने कहा कि नए कृषि सुधारों के बारे में असंख्य भ्रम फैलाये जा रहे हैं। सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की है, नए कृषि सुधारों में सुनिश्चित किया गया है कि खरीददार कानूनन समय से भुगतान के लिए बाध्य है। व्यवस्था है कि खरीददार को फसल क्रय के बाद रसीद देनी होगी, साथ ही, तीन दिन में मूल्य का भुगतान भी करना होगा।

इससे पहले नौ मार्च को प्रदेश के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों ने केन्द्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ संघर्ष कर रहे किसानों के आंदोलन को समर्थन का ऐलान किया था।

भारतीय प्रशासिनक सेवा के पूर्व अधिकारी विजय शंकर पांडे ने मंगलवार को कहा था कि उत्तर प्रदेश के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों और विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख व्यक्तियों की पिछले दिनों हुई एक बैठक में किसानों का आह्वान किया गया कि वे तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए अपना संघर्ष जारी रखें और अपनी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की उपलब्धता सुनिश्चित करने का दबाव डालें।

उन्होंने बताया कि बैठक में सरदार वी. एम. सिंह के राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन तथा कुछ अन्य किसान संगठनों से मिलकर बने उत्तर प्रदेश किसान मजदूर मोर्चा के समर्थन का ऐलान किया गया।

पांडे ने बताया कि पूर्व अधिकारी विभिन्न किसान संगठनों और निकायों के साथ बातचीत करेंगे और 15 मार्च से जिलों का दौरा करेंगे, गांवों में स्थिति का जायजा लेंगे और उपज की बिक्री के लिए जिला प्रशासन से बात करेंगे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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