कश्मीर में क्षीर भवानी की यात्रा और वितस्ता का जन्मदिन मनाने के बावजूद 'पर्यटक' हैं कश्मीरी पंडित!

By सुरेश डुग्गर | Updated: September 23, 2019 18:46 IST2019-09-23T18:46:25+5:302019-09-23T18:46:25+5:30

कश्मीर में आने वाले पर्यटकों की संख्या में अगर पिछले कुछ सालों तक राज्य प्रशासन अमरनाथ श्रद्धालुओं को भी लपेटता रहा है तो कुछ खास त्यौहारों पर कश्मीर आए कश्मीरी पंडितों और विभिन्न सुरक्षाबलों द्वारा वादी की सैर पर भिजवाए गए उनके बच्चों की संख्या का रिकार्ड बतौर पर्यटक ही रखा गया है।

Kashmiri Pandits are 'tourists' despite celebrating Kshir Bhavani's visit in Kashmir and Vistada's birthday! | कश्मीर में क्षीर भवानी की यात्रा और वितस्ता का जन्मदिन मनाने के बावजूद 'पर्यटक' हैं कश्मीरी पंडित!

अब धारा 370 हट जाने के बाद भी अभी भी उन्हें कोई ऐसी उम्मीद नहीं है कि वे अपनी जन्मभूमि के वाशिंदे बन कर यह सब कर पाएंगें

Highlightsराज्य सरकारों की अहम भूमिका रही थी पर वह भी अभी भी कश्मीरी पंडितों को कश्मीर के लिए ‘पर्यटक’ ही मानती रही है।कश्मीरी पंडितों के साथ भयानक त्रासदी के तौर पर लिया जा रहा है

कितनी हैरानगी की बात है कि वितस्ता का जन्म दिन, क्षीर भवानी में मत्था टेक और पिछले कई सालों से कश्मीर में दशहरा मना कर कश्मीरी पंडितों ने अपने दिलों में रूके पड़े सैलाब को तो बाहर निकाल दिया पर ये सब वे अपनी जन्मभूमि में वहां के वाशिंदे बन कर नहीं बल्कि ‘पर्यटक’ बन कर ही कर पा रहे थे।

यह कड़वा सच है कि इन रस्मों और त्यौहारों को मनाने वाले कश्मीरी पंडित कश्मीर में पर्यटक बन कर ही आए थे। और अब धारा 370 हट जाने के बाद भी अभी भी उन्हें कोई ऐसी उम्मीद नहीं है कि वे अपनी जन्मभूमि के वाशिंदे बन कर यह सब कर पाएंगें क्योंकि दहशत का माहौल अभी भी यथावत है।

यूं तो उनकी इन रस्मों और त्यौहारों को कामयाब बनाने में तत्कालीन राज्य सरकारों की अहम भूमिका रही थी पर वह भी अभी भी कश्मीरी पंडितों को कश्मीर के लिए ‘पर्यटक’ ही मानती रही है। अगर ऐसा न होता तो कश्मीरी बच्चों को वादी की सैर पर भिजवाने का कार्य सेना क्यों करती और कश्मीर आने वाले पर्यटकों की संख्या में कश्मीरी पंडितों की संख्या को भी क्यों जोड़ा जाता।

यह हकीकत है। कश्मीर में आने वाले पर्यटकों की संख्या में अगर पिछले कुछ सालों तक राज्य प्रशासन अमरनाथ श्रद्धालुओं को भी लपेटता रहा है तो कुछ खास त्यौहारों पर कश्मीर आए कश्मीरी पंडितों और विभिन्न सुरक्षाबलों द्वारा वादी की सैर पर भिजवाए गए उनके बच्चों की संख्या का रिकार्ड बतौर पर्यटक ही रखा गया है।

इससे कश्मीरी पंडित नाराज भी नहीं हैं। कारण पूरी तरह से स्पष्ट है कि वे अपने पलायन के इन 30 सालों के अरसे में जितनी बार कश्मीर गए 3 से 4 दिनों तक ही वहां टिके रहे। कारण जो भी रहे हों वे कश्मीर के वाशिंदे इसलिए भी नहीं गिने गए क्योंकि कश्मीर के प्रवास के दौरान या तो वे होटलों में रहे या फिर अपने कुछ मुस्लिम मित्रों के संग।

सच में यह कश्मीरी पंडितों के साथ भयानक त्रासदी के तौर पर लिया जा रहा है कि वे कश्मीर के नागरिक होते हुए भी, कश्मीरियत के अभिन्न अंग होते हुए भी फिलहाल कश्मीर तथा वहां की सरकार के लिए मात्र पर्यटक भर से अधिक नहीं हैं।

वैसे सरकारी तौर पर उन्हें कश्मीर में लौटाने के प्रयास जारी हैं। 30 सालों में 1200 के लगभग कश्मीरी पंडितों के परिवार कश्मीर वापस लौटे भी। पर उनकी दशा देख कश्मीरी पंडितों को उससे अच्छा विस्थापित जीवन ही लग रहा है। ऐसे में सरकार और कश्मीरी पंडितों की त्रासदी यही कही जा सकती है कि वे अपने ही घर में विस्थापित तो हैं ही, अब पर्यटक बन कर भी भी घूमने को मजबूर हुए हैं।

Web Title: Kashmiri Pandits are 'tourists' despite celebrating Kshir Bhavani's visit in Kashmir and Vistada's birthday!

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