कर्नाटकः विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायतों को दिया अल्पसंख्यक का दर्जा
By रामदीप मिश्रा | Updated: March 23, 2018 19:00 IST2018-03-23T19:00:21+5:302018-03-23T19:00:21+5:30
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय लगभग 21 फीसदी है। इस वजह से यह निर्णय बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह समुदाय यहां की 224 सीटों में से लगभग 100 सीटों पर हार जीत तय करते हैं।

कर्नाटकः विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायतों को दिया अल्पसंख्यक का दर्जा
बेंगलुरु, 23 मार्चः कर्नाटक सरकार लिंगायतों को अपने पक्ष में करने के लिए एक-एक कर नया कदम उठा रही है। शुक्रवार को सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायतों को अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया। इससे पहले सूबे की सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की सिफारिशों को मंजूर कर लिया था, जिसके बाद से राजनीति गर्मा गई थी।
Karnataka government declares minority status to #Lingayats community pic.twitter.com/zUSKp7fJAv
— ANI (@ANI) March 23, 2018
आपको बता दें कि कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के वोटरों का अहम रोल माना जाता रहा है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस विधानसभा चुनाव से पहले इस समुदाय को अपने पक्ष में करने की होड़ में लगी हुई हैं। वहीं, लिंगायत समुदाय का झुकाव हमेशा से बीजेपी की ओर रहा है।
सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायतों की मांग पर विचार के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस नागामोहन दास की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इस समिति ने लिंगायत समुदाय के लिए अल्पसंख्यक दर्जे की सिफारिश की थी, जिसे कैबिनेट की तरफ ने मंजूरी दे दी थी।
उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में लिंगायत समुदाय लगभग 21 फीसदी है। इस वजह से यह निर्णय बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह समुदाय यहां की 224 सीटों में से लगभग 100 सीटों पर हार जीत तय करते हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब साल 2013 के चुनाव के वक्त बीजेपी ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाया था तो लिंगायत समाज ने बीजेपी को वोट नहीं दिया था क्योंकि येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से हैं।
बारहवीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना ने इस लिंगायत समाज की स्थापना की थी। लिंगायत समाज पहले हिन्दू वैदिक धर्म का ही पालन करता था, लेकिन कुछ कुरीतियों से दूर होने, उनसे बचने के लिए इस नए सम्प्रदाय की स्थापना की गई। अब ये लिंगायत समाज अपने धर्म को मान्यता दिए जाने की मांग कर रहे हैं। बासवन्ना जी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। लिंगायत सम्प्रदाय के लोगों के अनुसार यह धर्म भी मुस्लिम, हिन्दू, क्रिश्चियन आदि की तरह ही है। लिंगायत सम्प्रदाय के लोग वेदों में विश्वास नहीं रखते हैं। ये मूर्ति पूजा में भी विश्वास नहीं रखते हैं।