जम्मू: करीब तीन महीनों के बाद दुनिया के सबसे ठंडे माने जाने वाले और देश के साइबेरिया अर्थात द्रास, करगिल और संकू के इलाके के लोगों के लिए वह सच में बेहद खुशी का पल था जब वे करीब तीन महीनों के बाद ताजा सब्जियां और फल लेने के लिए बाजारों में निकले थे।
दरअसल लद्दाख के इन सभी इलाकों को दुनिया से मिलाने वाली सड़क फिलहाल बंद है और चंडीगढ़ से जहाज द्वारा लेह में पहुंचाई जाने वाली सब्जियों को भी इन इलाकों में पहुंचने में तीन महीने का समय लग गया। सभी जानते हैं कि श्रीनगर-लेह राजमार्ग के चार-छह महीनों तक बंद होने से लाखों लोगों का संपर्क शेष विश्व से कट जाता है और ऐसे में उनकी हिम्मत काबिले सलाम है। बात उन लोगों की हो रही है जो इस राजमार्ग के बंद हो जाने पर कम से कम 6 माह तक जिन्दगी बंद कमरों में इसलिए काटते हैं क्योंकि पूरे विश्व से उनका संपर्क कट जाता है।
इतना जरूर था कि प्रत्येक सर्दियों में बर्फबारी के कारण बंद रहने के कारण लेह के लोग इतने प्रभावित नहीं होते हैं क्योंकि वहां दिल्ली से आने वाली उड़ानें इनकी आपूर्ति करती रहती थीं। पर द्रास व करगिल के अन्य इलाकों के लोग किस्मत के धनी नहीं होते और जब कल शाम को लेह से चलने वाला वाहनों का काफिला द्रास व करगिल के अतिरिक्त संकू ब्लाक में जरूरी खाद्यान लेकर पहुंचा तो बाजारों में लोग लाइनों में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। उन्हें ताजा फल व सब्जियां 72 दिनों के उपरांत उपलब्ध हुए थे।
एक करगिलवासी का कहना था कि उसने तीन महीनों के बाद ताजा सब्जी के दर्शन किए हैं। वे कोआप्रेटिव विभाग का तहेदिल से शुक्रिया अदा करते थे जिसने करगिल समेत अन्य ब्लाकों में लोगों को ताजा सब्जियां पहुंचाने का बीड़ा उठाया था। अब उन्हें इंतजार है श्रीनगर-लेह राजमार्ग के खुलने का ताकि वे ताजा फल व सब्जियां सस्ते और बड़ी मात्रा में प्राप्त कर सकें। इसके लिए वे बीआरओ पर निर्भर हैं जो इस राजमार्ग से बर्फ हटा इसको खोलने की प्रक्रिया में है।
ऐसे हालात में काबिले सलाम सिर्फ बीआरओ के वे कर्मी ही नहीं होते जो राजमार्ग को खोलने में जुटे हैं बल्कि इस राजमार्ग के साल में कम से कम 6 महीनों तक बंद रहने के कारण शेष विश्व से कटे रहने वाले द्रास, लेह और करगिल के नागरिक भी हैं। इन इलाकों में रहने वालों के लिए साल में छह महीने ऐसे होते हैं जब उनकी जिन्दगी बोझ बन कर रह जाती है।
असल में छह महीने यहां के लोग न तो घरों से निकलते हैं और न ही कोई कामकाज कर पाते हैं। जमा पूंजी खर्च करते हुए पेट भरते हैं। चारों तरफ बर्फ के पहाड़ों के बीच लद्दाख के लोगों को अक्टूबर से मई तक के लिए खाने पीने की चीजों के अलावा रोजमर्रा की दूसरी चीजें भी पहले ही एकत्र कर रखनी पड़ती हैं।