न्यायपालिका को नियंत्रित नहीं किया जा सकता नहीं तो ‘कानून का शासन’ भ्रामक हो जाएगा: प्रधान न्यायाधीश

By भाषा | Updated: June 30, 2021 23:02 IST2021-06-30T23:02:47+5:302021-06-30T23:02:47+5:30

Judiciary cannot be controlled otherwise 'rule of law' will be misleading: CJI | न्यायपालिका को नियंत्रित नहीं किया जा सकता नहीं तो ‘कानून का शासन’ भ्रामक हो जाएगा: प्रधान न्यायाधीश

न्यायपालिका को नियंत्रित नहीं किया जा सकता नहीं तो ‘कानून का शासन’ भ्रामक हो जाएगा: प्रधान न्यायाधीश

नयी दिल्ली, 30 जून भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमण ने बुधवार को कहा कि न्यायपालिका को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, विधायिका या कार्यपालिका द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, वरना ‘कानून का शासन’ भ्रामक हो जाएगा। उन्होंने साथ ही न्यायाधीशों को सोशल मीडिया के प्रभाव के खिलाफ आगाह किया।

न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘नये मीडिया उपकरण जिनमें किसी चीज को बढ़ा-चढ़ा कर बताये जाने की क्षमता हैं, लेकिन वे सही और गलत, अच्छे और बुरे और असली तथा नकली के बीच अंतर करने में असमर्थ हैं। इसलिए ‘मीडिया ट्रायल’ मामलों को तय करने में मार्गदर्शक कारक नहीं हो सकते।’’

सीजेआई ने ‘17वें न्यायमूर्ति पी. डी. देसाई स्मृति व्याख्यान’ को डिजिटल तरीके से संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा, ‘‘अगर न्यायपालिका को सरकार के कामकाज पर निगाह रखनी है तो उसे अपना काम करने की पूरी आजादी की जरूरत होगी। न्यायपालिका को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, विधायिका या कार्यपालिका द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, वरना ‘कानून का शासन’ भ्रामक हो जाएगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘साथ ही न्यायाधीशों को भी सोशल मीडिया मंचों पर जनता द्वारा व्यक्त की जाने वाली भावनात्मक राय से प्रभावित नहीं होना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को इस तथ्य से सावधान रहना होगा कि इस प्रकार बढ़ा हुआ शोर जरूरी नहीं कि जो सही है उसे प्रतिबिंबित करता हो।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कार्यपालिका के दबाव के बारे में बहुत चर्चा होती है, एक चर्चा यह शुरू करना भी अनिवार्य है कि कैसे सोशल मीडिया के रुझान संस्थानों को प्रभावित कर सकते हैं।’’

कोविड-19 महामारी के कारण पूरी दुनिया के सामने आ रहे ‘‘अभूतपूर्व संकट’’ को देखते हुए, सीजेआई ने कहा, ‘‘हमें आवश्यक रूप से रूक कर खुद से पूछना होगा कि हमने हमारे लोगों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए ‘कानून के शासन’ का किस हद तक इस्तेमाल किया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगने लगा था कि आने वाले दशकों में यह महामारी अभी और भी बड़े संकटों को सामने ला सकती है। निश्चित रूप से हमें कम से कम यह विश्लेषण करने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए कि हमने क्या सही किया और कहां गलत किया।

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Web Title: Judiciary cannot be controlled otherwise 'rule of law' will be misleading: CJI

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