रांची:कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए जारी लॉकडाउन के बीच झारखंड में दिहाडी मजदूरों के समने मुश्किल खडी कर दी है. राज्य में मजदूरों की बडी संख्या है, जो रोज कमाने-खाने वाले हैं. लेकिन लॉकडाउन के कारण इनका रोजगार छिन गया है. वहीं सरकार द्वारा घोषित योजनाओं का लाभ भी इनलोगों के पास नही पहुंच पा रही है. गढ़वा जिले की चंद्रवती ईंट भट्ठे में मजदूरी करती थीं, जो अब बंद हैं. वह कहती हैं कि ‘हमने घर में रखा सारा राशन इस्तेमाल कर लिया है, ताकि बच्चों का पेट भर सकें.
चंद्रवती कहती है कि मैंने 3 दिन से कुछ नहीं खाया है, लेकिन इस लॉकडाउन के समय मैं भीख मांगने भी तो नहीं जा सकती. कोडकोमा गांव की रहने वाली चंद्रवती बताती हैं कि उनके परिवार में तीन लोगों के नाम राशनकार्ड हैं, इसके बावजूद उन्हें अनाज नही मिल रहा है. जबकि कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन लागू होने के बाद से झारखंड में भूख से तीन लोगों की जान जा चुकी है. परिजनों का कहना है यह मौत भूख के कारण हुई है. लेकिन राज्य और जिला प्रशासन इन आरोपों को खारिज करते हैं.
हालात ऐसे हो गये हैं कि मजदूर वर्ग के लोग खाने को लाले पड़ गए हैं. यह किसी एक जगह की बात नही है. राज्य के ग्रामीण इलाकों में स्थिती काफी भयावह बन गई है. गरीब आदिवासी लोगों की बात अधिकारी सुनते नही हैं और राज्य मुख्यालाय में आने की इनके पास ताकत नही है. ऐसे में उनके बच्चे भूखे रहने को मजबूर हैं. लॉकडाउन के बीच किसी को भी घर से बाहर निकलने का इजाजत नही है.
इस परिस्थिति को देखकर हेमंत सोरेन सरकार ने मजदूर वर्ग के लोगो के लिए थाने में खाना बनवाने का काम देने का ऐलान किया. लेकिन वह भी सफल होता नही दिखाई देता है. हाल यह हैं कि जो टॉल फ्री नंबर दिया गया है, वह लगता ही नही है. खुदा न खास्ते लग भी गया तो वहां कोई फोन नही उठाता ही हैं. ऐसे कई मामले साम्ने आ चुके हैं. लेकिन न तो कोई सुनने वाला है और ना ही कोई देखने वाला.
सोरेन सरकार ने लॉकडाउन को लेकर मजदूरों के लिए कई योजना बनाई है. लेकिन मामले ऐसे भी हैं कि इन योजनाओं का फायदा मजदूर वर्ग के लोगों को देने को भी बोली लगती है. जो ज्यादा बोली लगाया, वह लाभार्थियों का लाभ उठा ले गया. ऐसे में गरीब लोगों को इस योजनाओं का फायदा होते नही दिख रहा है. जिसके कारण गरीब लोग भूखे मरने को मजबूर हैं.