जवाहरलाल नेहरू आम सहमति के अभाव के चलते संविधान की प्रस्तावना में ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ नहीं चाहते थे: जयराम रमेश

By भाषा | Updated: January 27, 2020 18:23 IST2020-01-27T18:23:15+5:302020-01-27T18:23:15+5:30

चीन के साथ 1962 की लड़ाई का जिक्र करते हुए रमेश ने कहा कि इस युद्ध के बाद मेनन और नेहरू की खलनायक जैसी छवि पेश की गयी जबकि सच्चाई और भी जटिल है।

Jawaharlal Nehru did not want 'secular' and 'socialist' in the Preamble to the Constitution due to lack of consensus says Jairam Ramesh | जवाहरलाल नेहरू आम सहमति के अभाव के चलते संविधान की प्रस्तावना में ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ नहीं चाहते थे: जयराम रमेश

कांग्रेस नेता जयराम रमेश

Highlightsरमेश ने कहा कि नेहरू अधिनायकवादी नहीं थे बल्कि वे अपनी ताकत समझते थे। उन्होंने कहा कि नेहरू और मेनन ने गलतियां तो कीं लेकिन 1962 की हार के लिए पूरी तरह उन्हें जिम्मेदार ठहराना, चीजों को सरलीकरण होगा।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मंगलवार को कहा कि ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द संविधान की प्रस्तावना में जगह नहीं बना पाये थे क्योंकि जवाहरलाल नेहरू महसूस करते थे कि उस समय इन मुद्दों पर आम सहमति नहीं थी। उन्होंने कहा कि ये शब्द 1976 में 42 वें संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना का हिस्सा बन पाए। रमेश ने कहा कि यह वी के कृष्णा मेनन ही थे जिन्होंने इस प्रस्तावना का मसौदा तैयार किया। संविधान की प्रस्तावना को हाल में पूरे देश में जगह जगह पढ़ा जा रहा है।

उनका इशारा नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों की ओर था जिसमें विरोध स्वरूप कुछ लोग संविधान की प्रस्तावना को पढ़ते हैं। रमेश यहां उनकी नयी पुस्तक ‘‘चैकर्ड ब्रिलियंस : द मैनी लाइव्ज आफ कृष्णा मेनन’’ पर ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एक परिचर्चा में बोल रहे थे।

रमेश ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने मेनन से ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ पर ‘धीमे चलने’ को कहा था लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे समाजवादी और पंथनिरपेक्ष नहीं थे। उनका यह बयान इस मायने में अहम है क्योंकि कुछ दक्षिणपंथी संगठन तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा प्रस्तावना में इन शब्दों को जोड़ने पर कई बार आपत्ति जताते हैं और उनका कहना है कि ऐसा तुष्टिकरण की राजनीति के लिए किया गया। यह पूछे जाने पर कि नेहरू एवं मेनन, दोनों के समाजवाद से प्रभावित होने के बावजूद इस शब्द का उल्लेख प्रस्तावना में क्यों नहीं किया गया, रमेश ने कहा कि ‘नेहरू (प्रस्तावना में) पंथनिरपेक्ष और समाजवादी नहीं चाहते थे, उसका कारण यह है कि वह महसूस करते थे कि इन मुद्दों पर आम सहमति नहीं था यानी भिन्न भिन्न दृष्टिकोण था।

उन्होंने कहा, ‘‘1947 की रोचक बात है कि नेहरूकृष्णा मेनन से कह रहे थे कि इन दोनों शब्दों पर धीमे चलें। हम जानते हैं हम (सर्वदलीय) हैं... याद रखिए कि हिंदू महासभा पहले मंत्रिमंडल में थी।’’ राज्यसभा सदस्य ने कहा, ‘‘ श्यामाप्रसाद मुखर्जी (मंत्रिमंडल में) थे, यह सर्वदलीय मंत्रिमंडल था। इसलिए नेहरू इस पर थोड़े धीमे थे लेकिन इसका मतलब नहीं कि वे समाजवादी या पंथनिरपेक्ष नहीं थे।’’

चीन के साथ 1962 की लड़ाई का जिक्र करते हुए रमेश ने कहा कि इस युद्ध के बाद मेनन और नेहरू की खलनायक जैसी छवि पेश की गयी जबकि सच्चाई और भी जटिल है। उन्होंने कहा कि मेनन ने पहले रक्षा बजट बढ़ाने की मांग की थी लेकिन वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने यह कहते हुए मना कर दिया था कि यह महात्मा गांधी के विश्वासों के साथ छल होगा। रमेश ने कहा कि नेहरू ने दोनों मंत्रियों के बीच हस्तक्षेप इसलिए नहीं दिया क्योंकि वह मंत्रियों को अपना मंत्रालय अपने हिसाब से चलाने देने में यकीन करते थे।

रमेश ने कहा कि नेहरू अधिनायकवादी नहीं थे बल्कि वे अपनी ताकत समझते थे। उन्होंने कहा कि नेहरू और मेनन ने गलतियां तो कीं लेकिन 1962 की हार के लिए पूरी तरह उन्हें जिम्मेदार ठहराना, चीजों को सरलीकरण होगा।

Web Title: Jawaharlal Nehru did not want 'secular' and 'socialist' in the Preamble to the Constitution due to lack of consensus says Jairam Ramesh

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