जम्मू कश्मीर: पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों पर है आतंकी खतरा

By सुरेश डुग्गर | Updated: September 2, 2018 19:53 IST2018-09-02T19:53:15+5:302018-09-02T19:53:15+5:30

कश्मीर में होने वाले हर किस्म के चुनावों में आतंकियों ने राजनीतिज्ञों को ही निशाना बनाया है।

Jammu Kashmir: terror threat to Panchayat and local body elections | जम्मू कश्मीर: पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों पर है आतंकी खतरा

जम्मू कश्मीर: पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों पर है आतंकी खतरा

श्रीनगर, 2 सितंबर: ऐसे में जबकि कश्मीर में पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनावों की घोषणा होने के बाद तैयारियां शुरू हो गई हैं पर बढ़ती आतंकी हिंसा ने सबको परेयाान कर दिया है। दरअसल सुरक्षाबल प्रत्येक उम्मीदवार को सुरक्षा मुहैरूा करवाने से इंकार कर चुके हैं। 

ऐसे में उम्मीदवारों के पास जान हथेली प रख कर मैदान में उतरने के सिवाय कोई रास्ता नहीं है। यह भी सच है कि सुरक्षाबलों और राज्य सरकार के दावों के बावजूद इस सच्चाई से मुख नहीं मोड़ा जा सकता कि कश्मीर में फैले आतंकवाद में राजनीतिज्ञ आतंकियों के नर्म लक्ष्य रहे हैं।

कश्मीर में होने वाले हर किस्म के चुनावों में आतंकियों ने राजनीतिज्ञों को ही निशाना बनाया है। उन्होंने न ही पार्टी विशेष को लेकर कोई भेदभाव किया है और न ही उन राजनीतिज्ञों को ही बख्शा जिनकी पार्टी के नेता अलगाववादी सोच रखते हों।

यह इसी से स्पष्ट होता है कि पिछले 25 सालों के आतंकवाद के दौर के दौरान सरकारी तौर पर आतंकियों ने 671 के करीब राजनीति से सीधे जुड़े हुए नेताओें को मौत के घाट उतारा है। इनमें ब्लाक स्तर से लेकर मंत्री और विधायक स्तर तक के नेता शामिल रहे हैं। हालांकि वे मुख्यमंत्री या उप-मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंच पाए लेकिन ऐसी बहुतेरी कोशिशें उनके द्वारा जरूर की गई हैं।

राज्य में विधानसभा चुनावों के दौरान सबसे ज्यादा राजनीतिज्ञों को निशाना बनाया गया है। इसे आंकड़े भी स्पष्ट करते हैं। 

वर्ष 1996 के विधानसभा चुनावों में अगर आतंकी 75 से अधिक राजनीतिज्ञों और पार्टी कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतारने में कामयाब रहे थे तो वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव उससे अधिक खूनी साबित हुए थे जब 87 राजनीतिज्ञ मारे गए थे।

अब जबकि राज्य पंचायत चुनाव करवाए जाने की चर्चा हो रही है तो आतंकी भी अपनी मांद से बाहर निकलते जा रहे हैं। उन्हें सीमा पार से दहशत मचाने के निर्देश दिए जा रहे हैं। 

हालांकि बड़े स्तर के नेताओं को तो जबरदस्त सिक्यूरिटी दी गई है पर निचले और मंझौले स्तर के नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए बाहर निकलने में खतरा महसूस होगा, ऐसी चिंताएं प्रकट की जा रही हैं।

ऐसा भी नहीं था कि बीच के वर्षों में आतंकी खामोश रहे हों बल्कि जब भी उन्हें मौका मिलता वे लोगों में दहशत फैलाने के इरादों से राजनीतिज्ञों को जरूर निशाना बनाते रहे थे। 

अगर वर्ष 1989 से लेकर वर्ष 2005 तक के आंकड़ें लें तो 1989 और 1993 में आतंकियों ने किसी भी राजनीतिज्ञ की हत्या नहीं की और बाकी के वर्षों में यह आंकड़ा 8 से लेकर 87 तक गया है। इस प्रकार इन सालों में आतंकियों ने कुल 671 राजनीतिज्ञों को मौत के घाट उतार दिया।

अगर वर्ष 2008 का रिकार्ड देंखें तो आतंकियों ने 16 के करीब कोशिशें राजनीतिज्ञों को निशाना बनाने की अंजाम दी थीं। इनमंे से वे कईयों में कामयाब भी रहे थे। चौंकाने वाली बात वर्ष 2008 की इन कोशिशों की यह थी कि यह लोकतांत्रिक सरकार के सत्ता में रहते हुए अंजाम दी गईं थी जिस कारण जनता में जो दहशत फैली वह अभी तक कायम है।

Web Title: Jammu Kashmir: terror threat to Panchayat and local body elections

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