जम्मू कश्मीरः नेट-जेआरएफ पास कर असिस्टेंट प्रोफेसर के बजाए कैसे आतंकी बना सब्जार?
By सुरेश डुग्गर | Updated: October 24, 2018 17:01 IST2018-10-24T17:01:57+5:302018-10-24T17:01:57+5:30
सब्जार असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए नेट की परीक्षा भी पास की। उसने जेआरएफ की परीक्षा भी पास की थी। वह तो किताबों का शौकीन था, क्लाशिनकोव कैसे उसके हाथ में आयी, यह पहेली आज तक हमें समझ नहीं आयी।

जम्मू कश्मीरः नेट-जेआरएफ पास कर असिस्टेंट प्रोफेसर के बजाए कैसे आतंकी बना सब्जार?
जम्मू कश्मीर के वन्नबल में बुधवार (24 अक्तूबर) को सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया आतंकी सब्जार अहमद बट उर्फ डा सैफुल्ला दक्षिण कश्मीर में जिला अनंतनाग के संगम नेना गांव का रहने वाला था और जिस समय आतंकी बना, उस समय 29 साल का था। वह वर्ष 2018 में आठ जुलाई की सुबह अपने एक दोस्त के साथ दिल्ली रवाना हुआ था। उसके पिता बशीर अहमद बट और मां हाजिरा आज भी उस दिन को याद करती हैं, जब उन्होंने अपने बेटे को घर से विदा किया था।
वह जब हिजबुल मुजाहिदीन का हिस्सा बना था तो सिर्फ उसके घर वाले हैरान-परेशान नहीं हुए थे, पूरे इलाके में लोग हैरान रह गए थे। उसने अपने इलाके में दसवीं और 12वीं के छात्रों के लिए कोचिंग सेंटर भी बनाया, लेकिन कोई भी छात्रों को फीस देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता था। आतंकी बनने से पहले कभी उसने किसी राष्ट्रविरोधी प्रदर्शन में या पथराव में कभी भाग नहीं लिया था। जब वह घर से निकला था तो दिल्ली में आईएएस की कोचिंग और जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में बॉटनी में पीएचडी करने के लिए।
बशीर सोफी के अनुसार, सुबह सब्जार घर से निकला और शाम को आतंकी बुरहान की मौत हो गई। पूरी वादी में हालात बिगड़ गए थे। यहां इंटरनेट बंद हो गया, फोन नहीं चल रहे थे। चारों तरफ पथराव और बंद का दौर था। हमारी सब्जार से कोई बात नहीं हुईऔर हमें लगा कि वह दिल्ली पहुंच गया होगा। करीब तीन माह तक हमारा उससे कोई संपर्क नहीं हुआ। फिर एक दिन हमारे ऊपर पहाड़ टूट पड़ा, जब एक पुलिस कर्मी ने हमारे घर में दस्तक दी और हमें एक वीडियो दिखाया। उसमें मेरा बेटा जिसके हाथ में हमेशा किताब होती थी, क्लाशिनकोव हाथ में लिए अन्य आतंकियों के साथ नजर आ रहा था।
उसने बीएड की डिग्री भी हासिल की। उसके एक दोस्त ने बताया कि उसने जामिया में पीएचडी के लिए दाखिला लिया था। वह आईएएस बनने की तैयारी कर रहा था। उसने यहां श्रीनगर में भी कुछ दिन कोचिंग ली और फिर कहने लगा कि दिल्ली में पीएचडी की पढ़ाई के साथ कोचिंग बेहतर रहेगी। वह तो घर से दिल्ली गया था। वह कभी बंदूक उठाएगा किसी ने नहीं सोचा था,क्योंकि जब कभी यहां हालात बिगड़ते थे तो वह गांव से दूर विस्सु दरिया के किनारे जाकर बैठ जाता था। उसने संगम चौक में असेंट नाम से कोचिंग सेंटर भी शुरु किया।
पहले अपने बेटे के आतंकी बनने और उसके बाद उसकी मौत से पूरी तरह टूटे नजर आ रहे बशीर अहमद बट ने कहा कि मेरे पांच बच्चे थे, अब चार ही रह गए हैं। सभी पढ़े लिखे हैं। सब्जार ने 2007 में अनंतनाग के डिग्री कालेज से बीएससी की और उसमें बाद वह बरकतुल्ला विश्वविद्यालय भोपाल में एमएससी करने चला गया। उसने जीवाजी विश्वविद्यालय में एमफिल की। इस दौरान उसने असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए नेट की परीक्षा भी पास की। उसने जेआरएफ की परीक्षा भी पास की थी। वह तो किताबों का शौकीन था, क्लाशिनकोव कैसे उसके हाथ में आयी, यह पहेली आज तक हमें समझ नहीं आयी।