जम्मू-कश्मीर: चमलियाल मेले में इस बार न ही दिल मिले और न ही बंटा शक्कर-शर्बत

By सुरेश डुग्गर | Updated: June 27, 2019 19:23 IST2019-06-27T19:20:36+5:302019-06-27T19:23:21+5:30

एक सबसे बड़ा कारण इस बार दोनों देशों के बीच शक्कर व शर्बत के आदान-प्रदान न होने का यह भी रहा की पाक सेना अड़ियलपन दिखा रही थी और वह अंतिम क्षण में इससे इंकार कर गई।

Jammu and Kashmir: Shakkar Sharbat not distributed to Pakistani Devotees This time in Chamaliyal Mela | जम्मू-कश्मीर: चमलियाल मेले में इस बार न ही दिल मिले और न ही बंटा शक्कर-शर्बत

मेले के बारे में एक कड़वी सच्चाई यह थी कि जब 1947 में देश का बंटवारा हुआ था तो दरगाह के दो भाग हो गए थे।

कई सौ सालों से चले आ रहे चमलियाल मेले पर आखिर इस बार भी सीमा के तनाव की छाया पड़ ही गई। पाक गोलियों से बचाने की खातिर हालांकि वार्षिक मेले का आयोजन तो हुआ पर तनाव और दहशत मंे जबकि इस बार भी दोनों मुल्कों के बीच शक्कर-शर्बत का आदान प्रदान भी नहीं हुआ। पिछले साल भी पाक सेना के अड़ियलपन के कारण ऐसा ही हुआ था।

आसपास के गांवों के हजारों लोग दरगाह तक पहुंचे तो सही लेकिन उनमें डर सा समाया हुआ था क्योंकि बीएसएफ तथा स्थानीय प्रशासन ने मेले वाले दिन दरगाह पर आने वालों को चेताया था कि वे उन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं करवा सकते हैं। दरअसल इसी दरगाह के क्षेत्र में पाक सेना ने पिछले साल गोलों की बरसात कर पहली बार बीएसएफ के चार अधिकारियों को मार डाला था। अंतिम समय में पाक सेना द्वारा मेले में शिरकत करने से इंकार कर दिए जाने के कारण इस ओर से इस बार भी सीमा पार शक्कर-शर्बत नहीं भिजवाया गया। ऐसा चौथी बार हुआ है। करगिल युद्ध तथा उसके 3 साल बाद तारबंदी के दौरान उपजे तनाव के दौर में भी ऐसा हो चुका है।

एक सबसे बड़ा कारण इस बार दोनों देशों के बीच शक्कर व शर्बत के आदान-प्रदान न होने का यह भी रहा की पाक सेना अड़ियलपन दिखा रही थी और वह अंतिम क्षण में इससे इंकार कर गई। हालांकि इन सबके लिए जिम्मेदार तो सीमा का तनाव ही था जो भारी पड़ा था। वैसे भारतीय पक्ष की ओर से दरगाह पर दर्शनार्थ आने वालों को बाबा के प्रसाद के रूप में शक्कर (दरगाह के आसपास की विशेष मिट्टी) तथा शरबत (दरगाह के पास स्थित कुएं विशेष का पानी) तो प्रसाद के रूप में प्राप्त हुआ था परंतु सीमा के उस पार बाबा के पाकिस्तानी श्रद्धालुओं को यह नसीब नहीं हुआ था क्योंकि इस बार भी पाक सेना के न मानने के कारण भारतीय पक्ष ने इस प्रकार का आयोजन करने से मना कर दिया था।

मेले के बारे में एक कड़वी सच्चाई यह थी कि जब 1947 में देश का बंटवारा हुआ था तो दरगाह के दो भाग हो गए थे। असली दरगाह इस ओर रह गई और उसकी प्रतिकृति पाकिस्तानी नागरिकों ने अपनी सीमा चौकी सैदांवाली के पास स्थापित कर ली।

बताया यही जाता है कि पाकिस्तानी नागरिक बाबा के प्रति कुछ अधिक ही श्रद्धा रखते हैं तभी तो इस ओर मेला एक दिन तथा उस ओर सात दिनों तक चलता रहता है जबकि इस ओर 60 से 70 हजार लोग इसमें शामिल होते रहे हैं जबकि सीमा के उस पार लगने वाले मेले में शामिल होने वालों की संख्या चार लाख से भी अधिक होती है। मेले में आने वाले इस बार निराश हुए थे क्योंकि मेले का मुख्य आकर्षण दोेनों देशों के बीच-शक्कर व शर्बत-का आदान प्रदान का दृश्य होता था जो इस बार भी नदारद था।
 

Web Title: Jammu and Kashmir: Shakkar Sharbat not distributed to Pakistani Devotees This time in Chamaliyal Mela

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