जम्मू: सुरक्षाबलों के लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि इस साल वे 9 आतंकियों को मुठभेड़ों के दौरान हथियार डालने पर मजबूर कर सके हैं। यह कश्मीर में नया ट्रेंड है जिसमें घर वापसी के लिए मुठभेड़ों में उलझे आतंकियों को उनसे हथियार डलवाने की लगातार कोशिश की जा रही है। इसमें स्थानीय आतंकियों के परिजनों की भी सहायता ली जा रही है। बहरहाल, सरेंडर की इस बढ़ी संख्या के बावजूद आतंक की राह को थामने वालों का आंकड़ा नीचे नहीं आ रहा है। आंकड़ों के मुताबिक, 145 से अधिक कश्मीरी युवा इस साल आतंक की राह पर चले हैं। अधिकारी कहते हैं कि इनमें से 65 को मार दिया गया है। तीस के करीब को हिरासत में ले लिया गया है और बाकी की तलाश की जा रही है। ऐसे में चिंता इस बात की है कि आखिर अभी भी कश्मीर में आतंकवाद की ओर आकर्षण क्यों बना हुआ है।
कश्मीर में आतंकवाद को फैले हुए 32 सालों का अरसा हो चुका है। हजारों आतंकियों को ढेर किया जा चुका है क्योंकि कोई सरेंडर पालिसी नहीं होने के कारण एक हजार से अधिक आतंकियों ने ही हथियार डाले हैं। न ही सुरक्षाबलों ने इस ओर अधिक ध्यान दिया। यही कारण था कि यह आंकड़ा अधिक नहीं बढ़ पाया।
इतना जरूर था कि नए ट्रेंड के तहत अब जब ऑपरेशन मां सेना की ओर से चलाया गया तो आतंकी बनने वालों की ‘घर वापसी’ में संख्या बढ़ने लगी। बिन मुठभेड़ों में उलझने वाले करीब 60 युवक वापस घरों को लौट आए और मुठभेड़ों के दौरान भी 9 युवक अभी तक हथियार छोड़ चुके हैं।
सेना की ओर से घर वापसी के प्रति स्पष्टता यह है कि ऑपरेशन मां सिर्फ स्थानीय युवकों के लिए है। विदेशी आतंकियों के लिए तलाश करो और मार डालो का अभियान छेड़ा गया है। यही कारण था कि इस साल मारे गए 200 से अधिक आतंकियों में अभी भी उन विदेशी आतंकियों की संख्या अधिक है जो सीमा पार से आने में कामयाब हुए थे। कई आतंकी तो सालों से कश्मीर में ही सक्रिय हैं।