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जम्मू-कश्मीर: एलओसी के पहाड़ों पर बर्फबारी के बावजूद सेना को घुसपैठ से राहत की उम्मीद कम

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: December 10, 2020 19:08 IST

एलओसी के सीमावर्ती सेक्टरों में, राजौरी क्षेत्र से लेकर करगिल के अंतिम छोर तक, बर्फ की सफेद और मोटी चादर बिछ गई है। सीमा के पहाड़ सफेद चादर में लिपटे नजर आने लगे हैं। इस बर्फबारी के कई लाभ सीमा पर तैनात सैनिकों को मिलने की उम्मीद है।

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ठळक मुद्देकश्मीर में हो रहे ताजा हिमपात के बाद स्थानीय लोग सर्दी से राहत महसूस जरूर करेंगेंएलओसी के पहाड़ों पर भी जम कर बर्फ गिरी है

श्रीनगर:  कश्मीर में हो रहे ताजा हिमपात के बाद स्थानीय लोग सर्दी से राहत महसूस जरूर करेंगें। बीते एक पखवाड़े से पूरी कश्मीर घाटी में शीतलहर का प्रकोप जारी था। अब हिमपात से इसमें राहत मिलने की उम्मीद है। हालांकि एलओसी के पहाड़ों पर भी जम कर बर्फ गिरी है लेकिन सेना को इस बार उम्मीद नहीं है कि बर्फबारी के कारण उसे घुसपैठ से राहत मिल पाएगी।

एलओसी के सीमावर्ती सेक्टरों में, राजौरी क्षेत्र से लेकर करगिल के अंतिम छोर तक, बर्फ की सफेद और मोटी चादर बिछ गई है। सीमा के पहाड़ सफेद चादर में लिपटे नजर आने लगे हैं। इस बर्फबारी के कई लाभ सीमा पर तैनात सैनिकों को मिलने की उम्मीद है।

एलओसी के क्षेत्रों में होेने वाली भारी बर्फबारी के बाद रक्षाधिकारियों को घुसपैठ के प्रयासों में कमी आने की सबसे बड़ी उम्मीद है। और यह उम्मीद बसंत ऋतु तक रहने की आस इसलिए बंध गई है क्योंकि जितनी बर्फ एलओसी के पहाड़ों पर गिर रही है उसे पार करने की कोशिश करने का स्पष्ट अर्थ होगा मौत को आवाज देना।

बकौल सेनाधिकारियों के, अब उनके जवानों का ध्यान पाक सेना की गतिविधियों की ओर ही रहेगा और घुसपैठ की ओर से वे सुनिश्चित हो जाएंगें लेकिन यह सुनिश्चितता इतनी भी नहीं हो सकती क्योंकि पूर्व का अनुभव यह रहा है कि बर्फबारी के बावजूद कई बार पाकिस्तान ने घुसपैठियों को इस ओर धकेलने की कोशिश की है।

एलओसी पर चौकसी तथा सतर्कता बरतने के लिए तैनात सैनिकों के लिए इस मौसम को राहत और आराम देने वाला कहा जाता रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारी बर्फबारी के कारण पारंपारिक घुसपैठ के मार्ग तो बंद हो ही जाते हैं पाक सैनिक भी गोलाबारी में कमी लाते रहे हैं।

लेकिन चौंकाने वाला तथ्य इस बर्फबारी के बाद का यह है कि इस बार भी सेना ने उन सीमा चौकिओं को खाली नहीं करने का निर्णय नहीं लिया है जो ऊंचाई वाले स्थानों पर हैं और भारी बर्फबारी के कारण वहां तक पहुंच पाना संभव नहीं होता। ऐसा निर्णय करगिल युद्ध के बाद ही लिया गया था।

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