'नंदीग्राम' के लिए ममता दीदी और शुभेंदु दादा में से किसी एक का चयन करना आसान नहीं

By भाषा | Updated: January 21, 2021 17:10 IST2021-01-21T17:10:22+5:302021-01-21T17:10:22+5:30

It is not easy to choose between Mamta Didi and Shubhendu Dada for 'Nandigram' | 'नंदीग्राम' के लिए ममता दीदी और शुभेंदु दादा में से किसी एक का चयन करना आसान नहीं

'नंदीग्राम' के लिए ममता दीदी और शुभेंदु दादा में से किसी एक का चयन करना आसान नहीं

(प्रदीप्त तापदार)

नंदीग्राम (पश्चिम बंगाल), 21 जनवरी नंदीग्राम के एक बाजार की गली में एक ओर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा दूसरी ओर उनके पूर्व सहयोगी और अब पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो चुके शुभेंदु अधिकारी के लगे कट-आउट इलाके में मौजूदा राजनीतिक माहौल को प्रतिबिम्बित करते हैं, जो मुख्यमंत्री बनर्जी के यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद से फिर सुर्खियों में है।

बनर्जी और अधिकारी दोनों ही नंदीग्राम आंदोलन के नायक रहे हैं। इस आंदोलन में तृणमूल सुप्रीमो पथ प्रदर्शक के तौर पर रहीं तो अधिकारी जमीनी स्तर पर उनके सिपहसालार रहे जो एसईजेड के खिलाफ जन रैलियों का आयोजन करते थे। इस एसईजेड में इंडोनेशिया के सलीम समूह द्वारा रसायनिक केंद्र स्थापित किया जाना था।

नंदीग्राम की जमीन ने पश्चिम बंगाल की सियासत में बनर्जी के पांव जमाने में अहम भूमिका निभाई और यहां शुरू हुए आंदोलन से ही उन्होंने सड़कों से सत्ता तक का सफर तय किया।

करीब 14 साल पहले तृणमूल का गढ़ बना नंदीग्राम इस बार ‘‘अपनी दीदी और अपने दादा’’ के बीच किसी एक का चयन करने को लेकर दुविधा की स्थिति में है। इस बार विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बनर्जी का मुकाबला नंदीग्राम आंदोलन में उनके सिपहसालार रहे शुभेंदु अधिकारी से होने की संभावना है।

हालांकि भाजपा ने नंदीग्राम से अधिकारी को खड़ा करने संबंधी अभी कोई घोषणा नहीं की है, लेकिन मौजूदा विधानसभा में इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिकारी ने चुनौती को स्वीकार करने की इच्छा व्यक्त की है।

नंदीग्राम के कई स्थानीय लोगों को लग रहा था कि उन्हें भुला दिया गया है और उनका तृणमूल से मोहभंग हो गया था, लेकिन बनर्जी के स्वयं को उम्मीदवार घोषित करने से यहां का परिदृश्य अचानक बदल गया है।

भूमि उच्छेद प्रतिरोध समिति (बीयूपीसी) का हिस्सा रहे अनिसुर मंडल ने कहा, ‘‘हम आंदोलन के मुश्किल समय को भूल नहीं सकते, जब वह (बनर्जी) और शुभेंदु दा हमारे रक्षक बने।’’

स्थानीय भाजपा नेता साबुज प्रधान ने कहा कि बनर्जी की चुनाव संबंधी इस घोषणा से जमीनी स्तर पर सामाजिक-राजनीतिक समीकरण बदलने लगे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘पिछले महीने तक नंदीग्राम में माहौल तृणमूल के पक्ष में नहीं था, लेकिन यदि ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी दोनों नंदीग्राम से खड़े होते हैं, तो लोग बंट जाएंगे। यदि इनमें से एक भी यहां से चुनाव नहीं लड़ता है, तो एकतरफा मुकाबला हो जाएगा।’’

आंदोलन के दौरान घायल हुई गोकुलपुर की 60 वर्षीय कंचन मल ने कहा कि तृणमूल के खिलाफ नाराजगी के बावजूद ‘‘ममता दी और शुभेंदु बाबू नंदीग्राम की बेटी और बेटे की तरह है। हमारे लिए उनमें से किसी एक को चुनना मुश्किल होगा।’’

कंचन का मकान आंदोलन के दौरान जला दिया गया था।

कंचन ने ‘पीटीआई’ के पत्रकार से कहा, ‘‘दोनों 2007-2008 में मेरे कच्चे घर में आए थे। दीदी मुख्यमंत्री बनने के बाद कभी नहीं आई, लेकिन शुभेंदु बाबू इन वर्षों के दौरान हमारे संपर्क में रहें।’’

स्थानीय एसयूसीआई (सी) के नेता भवानी प्रसाद दास ने कहा कि बनर्जी की घोषणा के बाद नंदीग्राम में भाजपा और तृणमूल के बीच बराबर का मुकाबला है, ‘‘लेकिन साम्प्रदायिक धुव्रीकरण के कारण भाजपा को थोड़ी सी बढ़त हासिल है’’।

नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में करीब 70 प्रतिशत हिंदू हैं जबकि शेष मुसलमान।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: It is not easy to choose between Mamta Didi and Shubhendu Dada for 'Nandigram'

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे