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ईओएस-03 की विफलता से पहले इसरो को चंद्रयान-2 से भी वांछित परिणाम नहीं मिले थे

By भाषा | Updated: August 12, 2021 18:06 IST

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नयी दिल्ली, 12 अगस्त जीएसएलवी रॉकेट के भू-अवलोकन उपग्रह ईओएस-03 को कक्षा में स्थापित करने में बृहस्पतिवार को असफल होने से दो साल पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के दौरान भी वांछित परिणाम नहीं मिलने पर एक बड़ा झटका लगा था।

इसरो की महत्वाकांक्षी चंद्रयान-2 परियोजना का उद्देश्य चंद्रमा पर एक लैंडर को उतारना था लेकिन यह परियोजना भी वांछित परिणाम नहीं दे पाई थी। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की योजना के साथ चंद्रयान-2 को 22 जुलाई, 2019 को प्रक्षेपित किया गया था। लेकिन सात सितम्बर को भारत के चंद्रयान-2 मिशन को उस समय झटका लगा था, जब लैंडर विक्रम से चंद्रमा की सतह से महज दो किलोमीटर पहले इसरो का संपर्क टूट गया था।

इसरो का जीएसएलवी रॉकेट भू-अवलोकन उपग्रह ईओएस-03 को कक्षा में स्थापित करने में बृहस्पतिवार को विफल रहा। रॉकेट के ‘कम तापमान बनाकर रखने संबंधी क्रायोजेनिक चरण’ में खराबी आने के कारण यह मिशन पूरी तरह संपन्न नहीं हो पाया।

मिशन नियंत्रण केन्द्र में रेंज ऑपरेशंस निदेशक द्वारा एक औपचारिक घोषणा भी की गई, जिसमें कहा गया था, "क्रायोजेनिक चरण में प्रदर्शन विसंगति देखी गई। मिशन पूरी तरह से पूरा नहीं किया जा सका।"

इसरो के पूर्व अध्यक्ष माधवन नायर इस घटनाक्रम को ‘‘बहुत दुर्भाग्यपूर्ण’’ बताते हुए कहा, ‘‘क्रायोजेनिक चरण में विफलता की आशंका अधिक होती है।’’

इसी तरह की विफलता 2010 में एक प्रक्षेपण के दौरान हुई थी, लेकिन सुधारात्मक उपाय किए गए थे और उसके बाद इसरो ने छह से अधिक जीएसएलवी प्रक्षेपण किये थे।

नायर ने कहा, ‘‘यह एक बहुत ही जटिल मिशन है। आमतौर पर, क्रायोजेनिक चरण अन्य सभी रॉकेट प्रणोदन की तुलना में सबसे कठिन होता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह हम सभी के लिए एक झटका है, लेकिन हम जल्द ही इस झटके से उबर जाएंगे और पटरी पर लौट आएंगे। इसरो समुदाय ऐसी कठिनाइयों से उबरने में पूरी तरह सक्षम है।’’

जीएसएलवी रॉकेट के भू-अवलोकन उपग्रह ईओएस-03 को कक्षा में स्थापित करने में विफल रहने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में राज्यमंत्री और अंतरिक्ष विभाग के प्रभारी जितेंद्र सिंह ने कहा कि इस उपग्रह के प्रक्षेपण का कार्यक्रम फिर से तय किया जा सकता है।

मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के वरिष्ठ सदस्य (फेलो) अजय लेले ने कहा कि अगर कोई समस्या होती है, तो यह आमतौर पर मिशन की उलटी गिनती के दौरान सामने आती है। उन्होंने कहा, "अगर यह किसी के संज्ञान में नहीं आयी है, तो यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं लगता है। यह कुछ अलग सी समस्या होगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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