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कश्मीर में शुरू हुआ 40 दिन की भयानक सर्दी का दौर, पड़ रही है खून जमा देने वाली ठंड

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: December 21, 2020 19:48 IST

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ठळक मुद्देकश्मीर में चालीस दिनों के चिल्ले कलां का दौर आज से शुरू हो गया है सोमवार को उत्तरी कश्मीर और केंद्र शासित लद्दाख के कई हिस्सों में हल्की से सामान्य बर्फबारी हुई जम्मू संभाग में मौसम साफ बना रहेगा। 

जम्मू: कश्मीर में चिल्लेकलां (भयानक सर्दी का मौसम) का आगमन हो गया है। कश्मीरी इसके आने से पहले ही भयानक ठंड से चिल्ला रहे थे। उन्हें अब चिंता यह है कि इस बार चिल्लेकलां के 40 दिन के अरसे में कितनी भयानक सर्दी पड़ेगी।

कश्मीर में 21 और 22 दिसम्बर की रात से भयानक सर्दी के मौसम की शुरूआत मानी जाती है। करीब 40 दिनों तक के मौसम को चिल्लेकलां कहा जाता है। और इस दिन हुई बर्फबारी कई सालों के बाद सही समय पर हुई है। नतीजतन कुदरत का समय चक्र सुधरा तो कश्मीरियों की परेशानियां बढ़ गई क्योंकि पिछले कई सालों से बर्फबारी के समय पर न होने के कारण वे चिल्लेकलां को ही भुला बैठे थे।

चिल्लेकलां करीब 40 दिनों तक चलता है और उसके बाद चिल्ले खुर्द और फिर चिल्ले बच्चा का मौसम आ जाता है। अभी तक चिल्लेकलां के दौरान 1986 में कश्मीर में तापमान शून्य ये 9 डिग्री नीचे गया था जब विश्व प्रसिद्ध डल झील दूसरी बार जम गई थी। वैसे चिल्लेकलां के दौरान कश्मीर के तापमान में जो गिरावट देखी गई है उसके मुताबिक तापमान शून्य से 3 व 5 डिग्री ही नीचे जाता है।

दरअसल, कश्मीरियों के लिए समय चक्र बदलने लगा है। माना कि आतंकवादी गतिविधियों से उन्हें फिलहाल पूरी तरह से निजात नहीं मिल पाई है लेकिन कुदरत के बदलते चक्र ने उनकी झोली खुशियों से भरनी आरंभ कर दी है। यही कारण है कि अब कश्मीर में चिल्लेकलां के प्रथम दिन ही होने वाली बर्फबारी से कश्मीर घाटी चिल्ला उठती है क्योंकि चिल्लेकलां की शुरूआत भयानक सर्दी से होती है।

हालांकि समय चक्र के सुधार से कश्मीर में पानी की किल्लत और बिजली की कमी जैसी परेशानियों से निजात मिलने की उम्मीद तो जगती है लेकिन कश्मीरी परेशानियों के दौर से गुजरने को मजबूर इसलिए हो जाते हैं क्योंकि पिछले कई सालों से मौसम के खराब रहने के कारण राजमार्ग के बार-बार बंद रहने का परिणाम यह होता है कि कश्मीरियों को चिंता इस बात की रहती है कि उन्हें खाने पीने की वस्तुओं की भारी कमी का सामना किसी भी समय करना पड़ सकता है।पहले चिल्लेकलां के शुरू होने से पहले ही कश्मीरी सब्जियों को सुखा कर तथा अन्य चीजों का भंडारण कर लेते थे मगर कई सालों से मौसम चक्र के गड़बड़ रहने के कारण वे इसे भुला बैठे थे। और अब तो राजमार्ग के बार-बार बंद होने से घाटी में रोजमर्रा की वस्तुओं की आपूर्ति समय पर न होने के कारण उन्हें कई बार महंगे दामों पर खाने पीने की वस्तुएं खरीदनी पड़ती हैं।

श्रीनगर स्थित मौसम विभाग ने कहा कि अगले हफ्ते जबरदस्त हिमपात की संभावना है। अगले 40 दिनों तक न्यूनतम और अधिकतम तापमान, दोनों में गिरावट आएगी। हिमपात और बारिश भी होगी। कुछ वर्षाे के दौरान चिल्ले कलां के बजाय चिल्ले खुर्द और चिल्ले बच्चा के दौरान सबसे ज्यादा हिमपात हुआ है। इसे आप जलवायु परिवर्तन का असर भी कह सकते हैं।

हरिसा और सूखी-सब्जियां अब सारा साल ही कश्मीर में उपलब्ध रहती हैं। चिल्ले कलां में इनकी मांग बढ़ जाती है। पहले यह सर्दियों में मिलती थी। इस समय करेला, टमाटर, शलगम, गोभी, बैंगन समेत कई अन्य सब्जियां और सूखी मछली भी बाजार में आ चुकी हैं। इन्हें स्थानीय लोग गर्मियों में सूखाकर रख लेते हैं ताकि सर्दियों में जब कश्मीर का रास्ता बंद हो जाए तो इनको पकाया जाता है। गोश्त के शौकीनों के लिए हरीसा की दुकानें पूरे कश्मीर में सजने लगी हैं। हरीसा-गोश्त, चावल व मसालों के मिश्रण से तैयार होने वाला विशेष व्यंजन है। हरिसा शरीर को अंदर से गर्म रखने के साथ कैलोरी को भी बनाए रखता है।

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