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हैदराबाद मुठभेड़ मामले में जांच समिति को रिपोर्ट दायर करने के लिए छह माह का समय और मिला

By भाषा | Updated: August 3, 2021 21:18 IST

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नयी दिल्ली, तीन अगस्त उच्चतम न्यायालय ने हैदराबाद में एक पशु चिकित्सक से सामूहिक बलात्कार और उसकी हत्या करने के चार आरोपियों के कथित मुठभेड़ में मारे जाने के मामले में अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के लिए जांच समिति को मंगलवार को छह माह का समय और प्रदान कर दिया।

शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश वी एस सिरपुरकर की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय आयोग को इस मामले में रिपोर्ट देनी है।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने जांच आयोग की तरफ से पेश वकील से पूछा कि जांच को पूरा करने में आयोग को और कितना समय चाहिए।

पीठ ने कहा, ‘‘यह मामला क्यों खिंच रहा है। यह तीन से चार महीने में हो सकता है। क्या 130-140 गवाहों को सुनना जरूरी है।’’

पीठ ने उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर विकास दुबे के मुठभेड़ में मारे जाने के मामले की जांच के लिए गठित इसी तरह के आयोग का उदाहरण दिया और कहा कि वह पहले ही अपनी रिपोर्ट दाखिल कर चुका है।

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी एस चौहान की अध्यक्षता वाले आयोग का यह निष्कर्ष था कि इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि दुबे की मुठभेड़ पूर्व नियोजित थी।

हैदराबाद मुठभेड़ मामले की जांच का जिक्र करते हुए पीठ ने वकील के. परमेश्वर से जांच पूरी करने में देरी का कारण जानना चाहा।

वकील ने कहा कि आयोग को मामले में 130 से अधिक गवाहों को सुनना है और कोविड की स्थिति ने भी इसमें विलंब कराया है।

पीठ ने कहा, ‘‘ठीक है, छह महीने का समय दिया जाता है।’’

सिरपुरकर समिति का गठन 12 दिसंबर, 2019 को किया गया था जिसे मुठभेड़ होने की परिस्थितियों की जांच करनी थी और छह माह के भीतर रिपोर्ट दाखिल करनी थी।

आयोग के अन्य सदस्यों में बंबई उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रेखा सोंदूर बालदोता और सीबीआई के पूर्व निदेशक डी आर कार्तिकेयन शामिल हैं।

जांच समिति को दिए गए समय की अवधि अब तक तीन बार बढ़ाई जा चुकी है। सबसे पहले जुलाई 2020 में छह माह के लिए समय बढ़ाया गया था।

समिति गठित करते वक्त, शीर्ष अदालत ने तेलंगाना उच्च न्यायालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की मामले में लंबित कार्यवाहियों पर रोक लगा दी थी और एसआईटी की रिपोर्ट मांगते हुए कहा था कि किसी अन्य अधिकरण को अगले आदेश तक आयोग के समक्ष लंबित मामले की जांच नहीं करनी है।

इसने आदेश दिया था कि तीन सदस्यीय आयोग को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) द्वारा सुरक्षा उपलब्ध कराई जाएगी और सुनवाई के पहले दिन से छह महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपनी होगी।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि घटना के बारे में विरोधाभासी बयान, वास्तविक तथ्यों को सामने लाने के लिए जांच की जरूरत बताते हैं।

उच्चतम न्यायालय में दायर दो याचिकाओं में संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ स्वतंत्र जांच का अनुरोध किया गया था।

याचिकाओं में कहा गया था कि मुठभेड़ ‘‘फर्जी’’ थी और संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जाए।

तेलंगाना पुलिस ने कहा था कि आरोपियों ने पुलिसकर्मियों पर गोली चलाई थी और जवाबी कार्रवाई में चारों मारे गए। घटना उस समय सुबह लगभग साढ़े छह बजे हुई थी जब जांच के तहत आरोपियों को घटनास्थल पर अपराध के नाट्य रूपांतरण के लिए ले जाया गया था।

चारों आरोपियों - मोहम्मद आरिफ, चिंताकुंटा चेन्नाकेशवुलु, जोलू शिवा और जोलू नवीन को नवंबर 2019 में एक युवा पशु चिकित्सक से सामूहिक बलात्कार और उसकी हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था।

चारों आरोपी हैदराबाद के पास राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर कथित मुठभेड़ में मारे गए थे। यह वही राजमार्ग है जहां 27 वर्षीय पशु चिकित्सक का जला हुआ शव मिला था।

पुलिस ने बताया था कि 27 नवंबर, 2019 को पशु चिकित्सक का अपहरण किया गया, उससे सामूहिक बलात्कार किया गया और बाद में उसकी हत्या कर दी गई।

इसने कहा था कि आरोपियों ने बाद में महिला का शव जला दिया था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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