जज्बा: एलओसी और एलएसी पर भी शून्य से 18 डिग्री नीचे तापमान में ड्यूटी निभा रहे हैं भारतीय जवान

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: December 7, 2022 15:23 IST2022-12-07T15:20:02+5:302022-12-07T15:23:03+5:30

यह सच है कि हवा के तूफानी थपेड़े ऐसे की एक पल के लिए खड़ा होना आसान नहीं। तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे। ऊपर से भीषण हिमपात के कारण चारों ओर बर्फ की ऊंची-ऊंची दीवार। लेकिन इन सबके बावजूद दुश्मन से निपटने के लिए खड़े भारतीय जवानों की हिम्मत देख वे पहाड़ भी अपना सिर झुका लेते हैं जिनके सीनों पर वे खड़े होते हैं।

Indian soldiers are performing duty on LoC and LAC in minus 18 degree temperature | जज्बा: एलओसी और एलएसी पर भी शून्य से 18 डिग्री नीचे तापमान में ड्यूटी निभा रहे हैं भारतीय जवान

जज्बा: एलओसी और एलएसी पर भी शून्य से 18 डिग्री नीचे तापमान में ड्यूटी निभा रहे हैं भारतीय जवान

Highlightsयहां डेढ़ सौ किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलती हैं बर्फीली हवाएंफिर भी देश की सुरक्षा के लिए सीना तान खड़े भारतीय जवान हवा के तूफानी थपेड़े ऐसे की एक पल के लिए खड़ा होना आसान नहीं

जम्मू: दाद देनी पड़ती है उन भारतीय जवानों की जो लद्दाख में चीनी सीमा, करगिल तथा कश्मीर के उन पहाड़ों पर अपनी ड्यूटी बखूबी निभा रहे हैं जहां कभी एक सौ तो कभी डेढ़ सौ किमी प्रति घंटा की रफ्तार से बर्फीली हवाएं चलती हैं। ऐसे में भी वे सीना तान पाकिस्तानी जवानों के साथ साथ प्रकृति की दुश्मनी का भी सामना करते हैं। ऐसे हालात अब एलओसी के साथ ही एलएसी पर भी हैं। एक और पाकिस्तानी सेना का खतरा है तो दूसरी ओर चीन की सेना का।

यह सच है कि हवा के तूफानी थपेड़े ऐसे की एक पल के लिए खड़ा होना आसान नहीं। तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे। ऊपर से भीषण हिमपात के कारण चारों ओर बर्फ की ऊंची-ऊंची दीवार। लेकिन इन सबके बावजूद दुश्मन से निपटने के लिए खड़े भारतीय जवानों की हिम्मत देख वे पहाड़ भी अपना सिर झुका लेते हैं जिनके सीनों पर वे खड़े होते हैं।

कश्मीर सीमा की एलओसी पर ऐसे दृश्य आम हैं। सिर्फ कश्मीर सीमा पर ही नहीं बल्कि करगिल तथा सियाचिन हिमखंड में भी ये भारतीय सैनिक अपनी वीरता की दास्तानें लिख रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि वीरता की दास्तानें सिर्फ शत्रु पक्ष को मार कर ही लिखी जाती हैं बल्कि इन क्षेत्रों में प्रकृति पर काबू पाकर भी ऐसी दास्तानें इन जवानों को लिखनी पड़ रही हैं।

अभी तक कश्मीर सीमा की कई ऐसी सीमा चौकियां थीं जहां सर्दियों में भारतीय जवानों को उस समय राहत मिल जाती थी जब वे नीचे उतर आते थे। 23 वर्ष पूर्व तक ऐसा ही होता था क्योंकि पाकिस्तानी पक्ष के साथ हुए मौखिक समझौते के अनुरूप कोई भी पक्ष उन सीमा चौकिओं पर कब्जा करने का प्रयास नहीं करता था जो सर्दियों में भयानक मौसम के कारण खाली छोड़ दी जाती रही हैं।

लेकिन करगिल युद्ध के उपरांत ऐसा कुछ नहीं हुआ। नतीजतन भयानक सर्दी के बावजूद भारतीय जवानों को उन सीमा चौकिओं पर भी कब्जा बरकरार रखना पड़ रहा है जो करगिल युद्ध से पहले तक सर्दियों में खाली कर दी जाती रही हैं तो अब उन्हें करगिल के बंजर पहाड़ों पर भी सारा साल चौकसी व सतर्कता बरतने की खातिर चट्टान बन कर तैनात रहना पड़ रहा है। और इस बार स्नो सुनामी ने उनकी दिक्कतों तो बढ़ा दिया मगर हौंसले को कम नहीं कर पाया।

इस सच्चाई से कोई अनभिज्ञ नहीं कि कश्मीर, करगिल तथा सियाचिन हिमखंड जैसे सीमांत क्षेत्रों में पाकिस्तानी सेना भारतीय पक्ष की दुश्मन तो है ही प्रकृति सबसे बड़ी शत्रु के रूप में सामने आती है। ऐसी ही परिस्थितियों से भारतीय सेना अब तीन सालों से लद्दाख के मोर्चे पर चीनी सेना की घुसपैठ और आक्रामक रूख के कारण सामना कर रही है। 

मगर इन सब बाधाओं को पार करने वालों का नाम ही भारतीय जवान है। हालांकि आधिकारिक आंकड़े इसे स्पष्ट करते हैं कि कश्मीर सीमा, चीन की सीमा तथा सियाचिन हिमखंड पर होने वाली सैनिकों की मौतों में से 97 प्रतिशत के लिए वह प्रकृति जिम्मेदार होती है जिसका मुकाबला करने की खातिर भारतीय जवान सीना तान खड़े होते हैं।

Web Title: Indian soldiers are performing duty on LoC and LAC in minus 18 degree temperature

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