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2020 में करीब 8,733 लोगों की रेल पटरियों पर जान गई, ज्यादातर प्रवासी मजदूर मारे गए

By भाषा | Updated: June 2, 2021 19:05 IST

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(अनन्या सेनगुप्ता)

नयी दिल्ली, दो जून कोरोना वायरस महामारी के कारण पिछले साल लगे राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के चलते यात्री ट्रेन सेवाओं में भारी कटौती के बावजूद 2020 में 8,700 से ज्यादा लोगों की रेलवे पटरियों पर कुचले जाने से मौत हो गई थी। अधिकारियों ने कहा है कि मृतकों में से अधिकतर प्रवासी मजदूर थे।

रेलवे बोर्ड ने 2020 में जनवरी से दिसंबर तक हुई ऐसी मौतों के आंकड़े मध्य प्रदेश के कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में साझा किए हैं।

रेलवे बोर्ड ने कहा, “राज्य पुलिस से प्राप्त सूचना के अनुसार, जनवरी 2020 और दिसंबर 2020 के बीच रेल पटरियों पर 805 लोग घायल हुए और 8,733 लोगों की मौत हुई।”

अधिकारियों ने अलग से बताया कि मृतकों में अधिकतर प्रवासी मजदूर थे जिन्होंने पटरियों के साथ साथ चलकर घर पहुंचने का विकल्प चुना था क्योंकि रेल मार्गों को सड़कों या राजमार्गों की तुलना में छोटा रास्ता माना जाता है।

उन्होंने बताया कि इन श्रमिकों ने पटरियों से होकर गुजरने का विकल्प इसलिए भी चुना क्योंकि इससे वे लॉकडाउन नियमों के उल्लंघन के लिए पुलिस से बच सकते थे और उनका यह भी मानना था कि वे रास्ता नहीं भटकेंगे।

एक अधिकारी ने कहा, “उन्होंने यह भी माना कि लॉकडाउन की वजह से कोई भी ट्रेन नहीं चल रही होगी।”

रेलवे के प्रवक्ता डी जे नारायण ने कहा कि पटरियों पर ऐसी घटनाएं हादसों की वजह से नहीं बल्कि अनधिकृत प्रवेश के चलते घटीं।

उन्होंने कहा, ‘‘ यह नागरिकों की चिंता का मुद्दा है। रेलवे ने पटरियों पर चलने से बचने के बारे में हमेशा ही लोगों को संवेदनशील बनाने का भारी प्रयास किया है। देश में करीब 70,000 किलोमीटर रेल पटरियां फैली हुईं हैं और रोजाना उन पर सभी प्रकार की 17,000 से अधिक ट्रेनें चलती हैं। रेल पटरियों पर चलने के दौरान लोगों की मौत दुर्भाग्यपूर्ण एवं दुखद है। यात्रियों एवं नागरिकों की सुरक्षा के प्रति हमारी चिंता बिल्कुल दोयम नहीं है। ’’

उन्होंने लोगों से पटरियों पर चलने का छोटा मार्ग अपनाने से बचने की अपील की।

नारायण ने कहा, ‘‘ उन्हें समझना चाहिए कि छोटा मार्ग खतरनाक हो सकता है और उन्हें पटरियों पर नहीं चलना चाहिए।’’

पिछले साल ट्रेनों द्वारा कुचले जाने से हुई मौतें उससे पहले के चार वर्षों की तुलना में भले ही कम हों लेकिन ये संख्या तब भी काफी बड़ी है क्योंकि 25 मार्च को कोरोना वायरस के मद्देनजर लॉकडाउन की घोषणा के बाद से यात्री रेलगाड़ी सेवाएं प्रतिबंधित थीं।

लॉकडाउन के दौरान केवल मालवाहक रेलगाड़ियां परिचालित की जा रही थीं और बाद में रेलवे ने प्रवासी मजदूरों को लाने-ले जाने के लिए एक मई से श्रमिक विशेष रेलगाड़ियां चलाई थीं।

यात्री सेवाएं चरणबद्ध तरीके से फिर से खोली गईं और दिसंबर तक करीब 1,100 विशेष रेलगाड़ियों का परिचालन किया जाने लगा। उनमें 110 नियमित यात्री ट्रेनें थीं।

कोविड से पहले की अवधि में चलने वाली 70 प्रतिशत रेलगाड़ी सेवाएं अब बहाल कर दी गई हैं।

वैसे तो पिछले वर्ष पटरियों पर हुई कई मौतों का किसी न किसी कारण से पंजीकरण नहीं किया गया लेकिन पिछले साल मई में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में माल गाड़ी से कुचलने से 16 मजदूरों की जान चले जाने से लोग दहशत में आ गये। दरअसल ये लोग यह सोचकर पटरी पर सो गये थे कि कोविड के चलते कोई ट्रेन नहीं आ रही होगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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