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आईआईएससी का गर्मी सहने योग्य कोविड-19 टीका वायरस के सभी स्वरूपों पर असरदार : अध्ययन

By भाषा | Updated: July 16, 2021 13:52 IST

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नयी दिल्ली, 16 जुलाई भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) द्वारा विकसित कोविड-19 के गर्मी सहन करने योग्य टीके का फार्मूला कोरोना वायरस के मौजूदा सभी स्वरूपों के खिलाफ प्रभावी साबित हुआ है। पशुओं पर किए गए गए अध्ययन में यह बात सामने आयी है।

‘एसीएस इन्फेक्शस डिजीज’ पत्रिका में बृहस्पतिवार को प्रकाशित अध्ययन में दिखाया गया है कि आईआईएससी इनक्यूबेटेड बायोटेक स्टार्ट-अप मिनवैक्स के टीके के फार्मूले से चुहिया में मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित हुई। अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि फॉर्मूले से चूहों की वायरस से सुरक्षा हुई और यह टीका 37 डिग्री तापमान पर एक महीने के लिए तथा 100 डिग्री तापमान पर 90 मिनट के लिए यथावत बना रह सकता है।

टीम में ऑस्ट्रेलिया के कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑेर्गेनाइजेशन (सीएसआईआरओ) के वैज्ञानिक भी शामिल हैं। टीम ने उल्लेख किया कि अधिकतर टीकों को प्रभावी बनाए रखने के लिए उन्हें बेहद कम तापमान पर रेफ्रीजेरेटर में रखने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका के टीके जिसे भारत में ‘कोविशील्ड’ कहा जाता है, को दो-आठ डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखना होता है और फाइजर के टीके के विशेषीकृत प्रशीतलन में शून्य से 70 डिग्री सेल्सियस नीचे तापमान पर रखना होता है।

अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि टीकाकरण की गयी चुहिया के खून के नमूने के परीक्षण में उसमें दुनिया में तेजी से फैल रहे मौजूदा डेल्टा स्वरूप के साथ कोरोना वायरस के स्वरूपों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता देखी गई। सीएसआईआरओ के कोविड-19 परियोजना का नेतृत्व करने वाले और अध्ययन के सह-लेखक एस एस वासन के अनुसार मिनवैक्स-टीका लेने वाली चुहिया के खून के नमूने में जिंदा वायरस के सभी स्वरूपों के प्रति मजबूत प्रतिरोधक क्षमता देखी गई।

वासन ने कहा, ‘‘हमारे आंकड़े दिखाते हैं कि मिनवैक्स के सभी फॉर्मूलों के परीक्षण के नतीजों में प्रतिरोधक क्षमता उतनी ही बनी रही और यह सार्स-सीओवी-2 के अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा सभी स्वरूपों पर असरदार रहा।’’

आईआईएससी के मिनवैक्स टीका में वायरस के स्पाइक प्रोटीन के हिस्से का इस्तेमाल किया गया है जिसे रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन (आरबीडी) कहा जाता है। यह आरबीडी वायरस को कोशिका से जोड़ता है ताकि वह संक्रमित हो सके। यह और टीकों से इसलिए अलग है क्योंकि यह आरबीडी के समूचे स्पाइक प्रोटीन के बजाय सिर्फ इसके विशेष भाग 200 एमिनो एसिड के संजाल का ही इस्तेमाल करता है।

सीएसआईआरओ के स्वास्थ्य एवं जैवसुरक्षा निदेशक रॉब ग्रेनफेल ने कहा कि संस्थान ने इससे पहले ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका समेत दो कोविड-19 रोधी टीकों का प्रीक्लिनिकल आकलन किया है। आईआईएससी और सीएसआईआरओ के अलावा अध्ययन में ब्रिटेन में यॉर्क विश्वविद्यालय, सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटेड बायोलॉजी (सीएसआईआर-आईजीआईबी), नयी दिल्ली, ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, फरीदाबाद और सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबायल टेक्नोलॉजी, चंडीगढ़ के अनुसंधानकर्ता शामिल हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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