अगर सरकार न्यायाधिकरण नहीं चाहती है, तो उसे इससे संबंधित कानून समाप्त कर देना चाहिए: उच्चतम न्यायालय

By भाषा | Updated: October 22, 2021 18:43 IST2021-10-22T18:43:06+5:302021-10-22T18:43:06+5:30

If the government does not want the tribunal, then it should abolish the law related to it: Supreme Court | अगर सरकार न्यायाधिकरण नहीं चाहती है, तो उसे इससे संबंधित कानून समाप्त कर देना चाहिए: उच्चतम न्यायालय

अगर सरकार न्यायाधिकरण नहीं चाहती है, तो उसे इससे संबंधित कानून समाप्त कर देना चाहिए: उच्चतम न्यायालय

नयी दिल्ली, 22 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने जिला एवं राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में नियुक्तियों में देरी पर नाराजगी जताते हुए शुक्रवार को कहा कि अगर सरकार न्यायाधिकरण नहीं चाहती है, तो उसे उपभोक्ता संरक्षण कानून को समाप्त कर देना चाहिए।

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि यह अफसोसजनक है कि शीर्ष अदालत से न्यायाधिकरणों में रिक्तियों की समीक्षा करने और उन्हें भरने के लिए कहा जा रहा है।

पीठ ने कहा, ‘‘यदि सरकार न्यायाधिकरण नहीं चाहती है, तो वह कानून निरस्त कर दे। हम यह देखने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं कि रिक्तियों को भरा जाए। आमतौर पर हमें इस पर समय खर्च नहीं करना चाहिए और रिक्तियों को भरा जाना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायपालिका से यह मामला देखने को कहा गया है। यह बहुत अच्छी स्थिति नहीं है।’’

जिला और राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के अध्यक्ष और इसके सदस्यों/कर्मियों की नियुक्ति में सरकारों की निष्क्रियता और पूरे भारत में अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के मामले का स्वत: संज्ञान लेने के बाद शीर्ष अदालत इस पर सुनवाई कर रही है।

शीर्ष अदालत ने 11 अगस्त को केंद्र को निर्देश दिया था कि वह आठ सप्ताह में रिक्त स्थानों पर भर्ती करे।

पीठ ने कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया बंबई उच्च न्यायालय के फैसले से प्रभावित नहीं होनी चाहिए, जिसने कुछ उपभोक्ता संरक्षण नियमों को रद्द कर दिया था।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारे द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया को स्थगित नहीं रखा जाना चाहिए। हमारा विचार है कि हमारे द्वारा निर्धारित समय और प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए क्योंकि कुछ नियुक्तियां की जा चुकी हैं और अन्य नियुक्तियां अग्रिम चरण में हैं।’’

सुनवायी शुरू होने पर मामले में न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने पीठ को बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ द्वारा कुछ उपभोक्ता संरक्षण नियमों को रद्द करने संबंधी आदेश से अवगत कराया।

उन्होंने कहा कि केंद्र ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम पेश किया है जोकि मद्रास बार एसोसिएशन मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए फैसले का उल्लंघन है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने कहा कि सरकार बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने की तैयारी कर रही है जिसमें उपभोक्ता संरक्षण नियमों के कुछ प्रावधानों को रद्द किया गया है।

लेखी ने पीठ से कहा कि केंद्र द्वारा पेश किया गया न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लंघन नहीं बल्कि यह मद्रास बार एसोसिएशन के फैसले के अनुरूप है।

हालांकि, शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की, ''ऐसा लगता है कि पीठ कुछ कहती है और आप कुछ और करते हैं। ऐसा लगता है कि किसी तरह का प्रतिबंध लगाया जा रहा है और इस प्रक्रिया में देश के नागरिक परेशानी झेल रहे हैं।''

पीठ ने टिप्पणी की, ''ये उपभोक्ता मंचों की तरह दिक्कतें दूर करने वाले स्थान हैं। ये छोटे मुद्दे हैं जिनसे लोग दो-चार होते हैं और ये कोई बहुत बड़े मामले नहीं हैं। उपभोक्ताओं की परेशानी दूर करने के लिए इन न्यायाधिकरणों की स्थापना का उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है।

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Web Title: If the government does not want the tribunal, then it should abolish the law related to it: Supreme Court

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