राजमार्गों को हमेशा के लिए बाधित कैसे रखा जा सकता है: न्यायालय ने पूछा

By भाषा | Updated: September 30, 2021 21:36 IST2021-09-30T21:36:29+5:302021-09-30T21:36:29+5:30

How can highways be blocked forever: Court asked | राजमार्गों को हमेशा के लिए बाधित कैसे रखा जा सकता है: न्यायालय ने पूछा

राजमार्गों को हमेशा के लिए बाधित कैसे रखा जा सकता है: न्यायालय ने पूछा

नयी दिल्ली, 30 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल पारित किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों द्वारा सड़क बाधित किए जाने के मद्देनजर बृहस्पतिवार को सवाल किया कि राजमार्गों को हमेशा के लिए बाधित कैसे किया जा सकता है। इसने कहा कि सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शनों के संबंध में न्यायालय द्वारा बनाए गए कानून को लागू करना कार्यपालिका का कर्तव्य है।

शीर्ष अदालत ने जाहिर तौर पर यह बात यहां शाहीन बाग में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शनों से संबंधित सात अक्टूबर 2020 के अपने फैसले संदर्भ में कही जिसमें कहा गया था कि सार्वजनिक स्थलों को अनिश्चितकाल तक घेरकर नहीं रखा जा सकता और असंतोष तय स्थानों पर व्यक्त किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा, ‘‘समस्याओं का समाधान न्यायिक मंच, विरोध प्रदर्शनों या संसद में बहस के जरिए किया जा सकता है, लेकिन राजमार्गों को कैसे बाधित किया जा सकता है और यह हमेशा के लिए किया जा रहा है। यह कब समाप्त होगा?’’

शीर्ष अदालत नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अग्रवाल ने अपनी याचिका में कहा है कि पहले उन्हें दिल्ली पहुंचने में 20 मिनट का समय लगता था और अब उन्हें दो घंटे लगते हैं तथा दिल्ली की सीमा पर यूपी गेट पर प्रदर्शनों के कारण क्षेत्र के लोगों को परेशानी हो रही है।

केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर 10 महीने से किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है।

न्यायालय ने यूपी गेट पर दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर बाधित की गई सड़क को खोलने का अनुरोध करने वाली याचिका में किसान संगठनों को भी पक्षकार बनाने के लिए औपचारिक अर्जी दायर करने की केंद्र को अनुमति दे दी।

पीठ ने मामले की आगे की सुनवाई के लिए चार अक्टूबर की तारीख तय की।

मामले की सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज से पूछा कि सरकार इस मामले में क्या कर रही है। इसके बाद नटराज ने कहा कि उन्होंने प्रदर्शनकारी किसानों के साथ एक बैठक की और इसकी जानकारी शपथपत्र में दी गई है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम कानून बना सकते हैं, लेकिन कानून को लागू करना आपका काम है। न्यायालय इसे लागू नहीं कर सकता। कार्यपालिका को ही इसे लागू करना होगा।’’

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसे लागू करना कार्यपालिका का कर्तव्य है।

पीठ ने कहा, ‘‘जब हम कानून बनाते हैं, तो आप कहेंगे कि यह कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण है। इसके अपने परिणाम हो सकते हैं, लेकिन ऐसी शिकायतें भी हैं, जिनसे निपटे जाने की आवश्यकता है। यह स्थायी समस्या नहीं बन सकती।’’

मेहता ने कहा कि जब न्यायालय से आग्रह किया जाता है, तो यह अतिक्रमण नहीं होगा। उन्होंने कहा कि शिकायतों का निपटारा करने के लिए उच्चतम स्तर पर तीन सदस्यीय एक समिति का गठन किया गया था, लेकिन इसके लिए आमंत्रित किसानों के प्रतिनिधियों ने चर्चा में भाग लेने से इनकार कर दिया।

उन्होंने कहा कि न्यायालय को याचिका में किसान संगठनों को भी पक्षकार बनाने की याचिकाकर्ता को अनुमति दी जानी चाहिए, ताकि बाद में वे यह न कहें कि उन्हें इस मामले में पक्षकार नहीं बनया गया।

पीठ ने मेहता से कहा कि किसानों के प्रतिनिधियों को पक्षकार बनाने के लिए उन्हें ही अर्जी दायर करनी चाहिए, क्योंकि याचिककर्ता को संभवत: उन नेताओं के बारे में जानकारी नहीं होगी।

न्यायालय ने कहा, ‘‘यदि आपको लगता है कि किसी को पक्षकार बनाया जाना चाहिए, तो आपको अनुरोध करना होगा। आप उनकी शिकायतों को सुलझाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए औपचारिक अर्जी दायर करें और आप यह बताएं कि किसानों के प्रतिनिधियों का पक्ष विवाद के समाधान में कैसे मदद करेगा।’’

मेहता ने कहा कि वह शुक्रवार को अर्जी दायर करेंगे।

न्यायालय ने 23 अगस्त को कहा था कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के धरना-प्रदर्शन के कारण सड़क अवरुद्ध होने का समाधान केंद्र और दिल्ली के पड़ोसी राज्यों को तलाशना चाहिए।

इसने केंद्र से कहा था, ‘‘आप समाधान क्यों नहीं खोज सकते? आपको इस समस्या का समाधान तलाशना होगा। उन्हें (किसानों को) विरोध करने का अधिकार है लेकिन निर्धारित स्थानों पर। विरोध के कारण यातायात की आवाजाही बाधित नहीं की जा सकती।''

पीठ ने कहा था कि इससे टोल वसूली पर भी असर पड़ेगा क्योंकि अवरोध के कारण वाहन वहां से नहीं गुजर पाएंगे।

इसने कहा था, ''समाधान करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों की है। उन्हें कोई समाधान खोजने के लिए समन्वय करना होगा ताकि किसी भी विरोध-प्रदर्शन के कारण सड़कों को अवरुद्ध न किया जाए और यातायात बाधित नहीं हो।''

मेहता ने कहा था कि अगर अदालत कोई आदेश पारित करने की इच्छुक है तो दो किसान संगठनों को पक्षकार बनाया जा सकता है और वह उनके नाम दे सकते हैं। इस पर, पीठ ने कहा कि कल दो और संगठन आगे आएंगे तथा कहेंगे कि वे किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं और यह जारी रहेगा।

शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर 26 मार्च को उत्तर प्रदेश और हरियाणा को भी नोटिस जारी किया था।

उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर सड़क खुलवाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं और इस समय क्षेत्र में लगभग 141 तंबू एवं 31 लंगर हैं तथा प्रदर्शनकारियों ने फ्लाईओवर पर एक मंच बना रखा है जहां से उनके नेता भाषण देते हैं।

इसी तरह, हरियाणा सरकार ने भी शीर्ष अदालत को बताया कि सिंघू बॉर्डर पर राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर पिछले साल 27 नवंबर से छह किलोमीटर की पट्टी पर प्रदर्शनकारियों का धरना चल रहा है।

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Web Title: How can highways be blocked forever: Court asked

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