जम्मू में आतंकी हमलों और शहादतों का खूनी रहा है इतिहास, शहीदों के खून से बार-बार यहां की धरती हुई है लाल
By सुरेश एस डुग्गर | Updated: October 12, 2021 17:02 IST2021-10-12T17:02:35+5:302021-10-12T17:02:35+5:30
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, सेना के जवानों को बड़े पैमाने पर सबसे पहले जम्मू में 14 मई 2002 को निशाना बनाया गया था जब आतंकियों ने कालूचक गैरीसन में सेना के फैमिली र्क्वाटरों में घुसकर कत्लेआम मचाते हुए 36 से अधिक जवानों और उनके परिवारों के सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया था।

जम्मू में आतंकी हमलों और शहादतों का खूनी रहा है इतिहास, शहीदों के खून से बार-बार यहां की धरती हुई है लाल
जम्मू। एलओसी (LoC)से सटे पुंछ और राजौरी जिलों की सीमा पर कल हुई मुठभेड़ में पांच सैनिकों की शहादत जम्मू संभाग में कोई पहली नहीं है बल्कि आतंकवाद के शुरुआती दिनों से ही यहां की धरती सैनिकों की सहादत से लाल होती रही है।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, सेना के जवानों को बड़े पैमाने पर सबसे पहले जम्मू में 14 मई 2002 को निशाना बनाया गया था जब आतंकियों ने कालूचक गैरीसन में सेना के फैमिली र्क्वाटरों में घुसकर कत्लेआम मचाते हुए 36 से अधिक जवानों और उनके परिवारों के सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया था।
इसके बाद तो जम्मू संभाग कई ऐसे आतंकी हमलों का गवाह बना जिसमें बड़ी संख्या में जवान और अफसर शहीद हुए। पहली घटना के करीब 13 महीनों के बाद ही आतंकियों ने 28 जून 2003 को जम्मू के सुंजवां में स्थित सेना की ब्रिगेड पर हमला बोला जिसमें 15 जवान शहीद हो गए थे। इतना जरूर था कि आतंकियों ने इस हमले के 15 सालों के बाद फिर से सुंजवां पर 10 फरवरी 2018 को हमला बोल 10 जवनों को मार डाला था।
हमले और शहादतें यहीं नहीं रुकी थीं। साल 2003 में ही 22 जुलाई को जम्मू के अखनूर में आतंकियों ने एक और सैनिक ठिकाने पर हमला किया जिसमें ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी समेत 8 सैनिकों को शहादत देनी पड़ी। यह सिलसिला बढ़ता गया और आतंकी हमले करते रहे। जवान शहीद होते गए। साल 2003 में अखनूर में हुए हमले के करीब 10 सालों तक जम्मू में सुरक्षबलों पर कोई बड़ा हमला नहीं हुआ था।
हालांकि आतंकियों ने पाक सेना के जवानों के साथ मिल कर 6 अगस्त 2013 को पुंछ के चक्का दा बाग में बैट हमला किया और 5 जवानों को मार डाला। वहीं इस हमले के एक महीने बाद ही 6 सितम्बर 2013 को आतंकियों ने सांबा व कठुआ के जिलों में हमले कर 4 सैनिकों व 4 पुलिसकर्मियों को जान से मार डाला। इनमें एक ले. कर्नल रैंक का अधिकारी भी शामिल था।
अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे अरनिया में भी 27 नवम्बर 2014 को आतंकी हमले में 3 जवानों को जान गंवानी पड़ी थी तो वर्ष 2016 को 29 नवम्बर के दिन आतंकियों ने नगरोटा स्थित कोर हेडर्क्वाटर पर हमला बोल कर दो अफसरों समेत 7 जवानों को शहीद कर दिया था। ऐसा भी नहीं है कि आतंकियों के हमलों में सिर्फ सैनिकों, जवानों व नागरिकों को ही जानें गंवानी पड़ी थी बल्कि आतंकियों हमलों के जवाबी कार्रवाई में कई आतंकी भी मारे गए थे। जम्मू में सैनिकों ने 100 से भी अधिक आतंकी मारे गिराए थे।