उच्च न्यायालय ने लवणीय भूमि के लिए ‘असाइनमेंट’ शुल्क में संशोधन का आदेश बरकरार रखा
By भाषा | Updated: December 22, 2021 19:44 IST2021-12-22T19:44:45+5:302021-12-22T19:44:45+5:30

उच्च न्यायालय ने लवणीय भूमि के लिए ‘असाइनमेंट’ शुल्क में संशोधन का आदेश बरकरार रखा
चेन्नई, 22 दिसंबर मद्रास उच्च न्यायालय ने बुधवार को केंद्रीय उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय, औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (नमक खंड) की 2013 की उस अधिसूचना को बरकरार रखा, जिसके तहत तमिलनाडु में लवणीय भूमि के लिए न्यूनतम निर्धारण (असाइनमेंट) शुल्क में वृद्धि की गई थी।
न्यायमूर्ति एस. एम. सुब्रमण्यम ने तूतीकोरिन और अन्य जगहों से नमक निर्माता और व्यापारी संघ की 100 से अधिक रिट याचिकाओं को खारिज करते हुए अधिसूचना को बरकरार रखा।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार मंत्रालय ने केंद्रीय सलाहकार बोर्ड (सीएबी) की सिफारिश पर मौजूदा राज्य सरकार की दरों के साथ समानता स्थापित करने और जनवरी 2004 में जारी एक पत्र के माध्यम से जमीन के किराए और असाइनमेंट शुल्क की दरों में संशोधन किया था।
अतिरिक्त महाधिवक्ता आर. शंकर नारायणन ने कहा कि सभी याचिकाकर्ताओं के संबंध में पट्टे की अवधि समाप्त हो गई थी और इसलिए, उनके पास निविदा प्रक्रिया का पालन किए बिना परिपत्र पर सवाल उठाने या पट्टे के स्वत: नवीनीकरण की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है।
याचिकाओं को खारिज करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि केंद्र सरकार की भूमि को 99 साल के लिए पट्टे पर देना या पट्टे के स्वत: नवीनीकरण से अन्य सभी नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन होगा, जो नमक के निर्माण या संबंधित व्यापार गतिविधियों के क्षेत्र में अवसर पाने के इच्छुक हैं। समान अवसर से वंचित करना सीधे तौर पर प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
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