धरोहर स्थल: एएसआई और आईएनटीएसीएच अधिकारियों ने असंरक्षित ढांचे की दुर्दशा पर दुख जताया

By भाषा | Updated: November 21, 2021 18:40 IST2021-11-21T18:40:26+5:302021-11-21T18:40:26+5:30

Heritage sites: ASI and INTACH officials express grief over the plight of unprotected structures | धरोहर स्थल: एएसआई और आईएनटीएसीएच अधिकारियों ने असंरक्षित ढांचे की दुर्दशा पर दुख जताया

धरोहर स्थल: एएसआई और आईएनटीएसीएच अधिकारियों ने असंरक्षित ढांचे की दुर्दशा पर दुख जताया

(कुणाल दत्त)

नयी दिल्ली, 21 नवंबर पटना कलेक्ट्रेट से लेकर बेंगलुरु स्थित 86 वर्ष पुरानी एशियाटिक बिल्डिंग सहित वास्तुशिल्प एवं ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण हजारों धरोहर इमारतें वर्तमान में असंरक्षित हैं। इनमें से कई तेजी से शहरीकरण के बीच ‘‘क्षति या विध्वंस का सामना कर रही हैं।’’ यह बात विशेषज्ञों ने कही।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के एक शीर्ष-स्तरीय अधिकारी ने रविवार को इस स्थिति पर खेद जताते हुए कहा कि एएसआई को नये स्थलों को अपने अधीन लेने में ‘‘कई बाधाएं’’ हैं। अधिकारी ने कहा कि हालांकि सिर्फ इसलिए कि कोई इमारत या स्मारक एएसआई या किसी अन्य एजेंसी के तहत सूचीबद्ध नहीं है, ‘‘इसका मतलब यह नहीं है कि उक्त विशेष संरचना का कोई विरासत मूल्य नहीं है।’’

ऐसे में जब 19-25 नवंबर के बीच दुनिया भर में विश्व धरोहर सप्ताह मनाया जा रहा है, विरासत संरक्षक, आईएनटीएसीएच के अधिकारियों और अन्य विशेषज्ञों ने देश के ‘‘असंरक्षित धरोहर भवनों’’ की दुर्दशा पर प्रकाश डाला।

सदियों पुराना पटना कलेक्ट्रेट 12 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है और बिहार में डच वास्तुकला के बचे कुछ स्थलों में से एक होने के बावजूद यह एएसआई या राज्य सरकार के तहत संरक्षित नहीं है।

बिहार सरकार ने 2016 में गंगा तट स्थित कलेक्ट्रेट को ध्वस्त करने और इसे एक नये परिसर के साथ बदलने का प्रस्ताव दिया था। हालांकि इस कदम का व्यापक विरोध हुआ तथा भारत एवं विदेशों से ऐतिहासिक स्थल को बचाने की अपील की गई। पिछले साल 18 सितंबर से उच्चतम न्यायालय के फैसले ने बुलडोजरों पर रोक लगा दी है।

100 साल से अधिक पुराने गोल मार्केट, पुराना बावली हॉल, 1885 में निर्मित अंजुमन इस्लामिया हॉल, जिला एवं सत्र न्यायाधीश बंगला, सिविल सर्जन का बंगला, सिटी एसपी बंगला, नयी पुलिस लाइन सहित कई प्रतिष्ठित इमारतों को राज्य सरकार के प्राधिकारियों ने पिछले कई वर्षों में पहले ही ध्वस्त कर दिया गया है।

पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच), 1925 में प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज के तौर पर शुरू हुआ था और यह बिहार एवं उड़ीसा का पहला मेडिकल कॉलेज था। इसे एक नये अत्याधुनिक अस्पताल परिसर के लिए तोड़ा जाना प्रस्तावित है जबकि इतिहासकारों, धरोहर प्रेमियों और आईएनटीएसीएच ने ऐतिहासिक इमारतों को संरक्षित करने की अपील की है। यह कॉलेज 1874 में स्थापित टेंपल मेडिकल स्कूल से विकसित हुआ तथा यह कॉलेज किसी भी एजेंसी के तहत संरक्षित स्थल नहीं है।

प्रसिद्ध जर्मन वास्तुकार जी. एच. क्रुम्बिएगल द्वारा डिजाइन की गई एशियाटिक बिल्डिंग 1935 में खोली गई थी। इसे कुछ साल पहले ध्वस्त करने का प्रस्ताव था। इसको लेकर विरोध शुरू हो गया था और बाद में 2019 में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने आईएनटीएसीएच (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरीटेज) बेंगलुरु चैप्टर द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर इस पर रोक लगा दी।

एक धरोहर विशेषज्ञ ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा, ‘‘क्या यह विडंबना नहीं है कि लोगों को हमारी धरोहर इमारतों को बचाने के लिए अदालत का रुख करना पड़ता है।’’

बेंगलुरु में दक्षिणी क्षेत्र के संस्कृति और पर्यटन मंत्रियों के हाल ही में आयोजित सम्मेलन के दौरान असंरक्षित धरोहर भवनों का मुद्दा भी सामने आया था। इस सम्मेलन में केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी मुख्य अतिथि थे।

वरिष्ठ एएसआई अधिकारी ने कहा कि किसी स्थल के एएसआई के तहत सूचीबद्ध होने के लिए, इसे ‘‘कम से कम 100 वर्ष पुराना होना चाहिए, और राष्ट्रीय महत्व का होना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘एएसआई की अपनी मजबूरियां हैं और हम कर्मचारियों की कमी के बावजूद बड़ी संख्या में स्थलों का प्रबंधन कर रहे हैं। हालांकि, पटना कलेक्ट्रेट या अन्य राज्यों में स्थित सदियों पुरानी इमारतों एवं अन्य इमारतों के मामले में, महत्वपूर्ण भवनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य की होनी चाहिए, या कोई स्थानीय निकाय भी उन्हें अधिसूचित कर सकता है।’’

वर्तमान में, भारत भर में 3,600 से अधिक स्मारक और 50 संग्रहालय एएसआई द्वारा संरक्षित हैं, जो संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत आता है। विभिन्न राज्यों में संरक्षित स्मारकों की अपनी राज्य-स्तरीय सूची है और कई संरक्षित संरचनाएं स्थानीय शहरी निकायों के दायरे में आती हैं।

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Web Title: Heritage sites: ASI and INTACH officials express grief over the plight of unprotected structures

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