समलैंगिक जोड़ों की शादी को मान्यता के लिए याचिकाओं पर सुनवाई का सीधा प्रसारण हो, उच्च न्यायालय ने केन्द्र से मांगा जवाब

By भाषा | Updated: November 30, 2021 18:05 IST2021-11-30T18:05:39+5:302021-11-30T18:05:39+5:30

Hearing on petitions for recognition of marriage of same-sex couples should be telecast live, High Court seeks response from Center | समलैंगिक जोड़ों की शादी को मान्यता के लिए याचिकाओं पर सुनवाई का सीधा प्रसारण हो, उच्च न्यायालय ने केन्द्र से मांगा जवाब

समलैंगिक जोड़ों की शादी को मान्यता के लिए याचिकाओं पर सुनवाई का सीधा प्रसारण हो, उच्च न्यायालय ने केन्द्र से मांगा जवाब

नयी दिल्ली, 30 नवंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र को एलजीबीटीक्यू जोड़ों की उस अर्जी पर जवाब देने का मंगलवार को निर्देश दिया जिसमें समलैंगिक विवाह को विशेष, हिंदू और विदेशी विवाह कानूनों के तहत मान्यता देने के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई का सीधे प्रसारण करने का अनुरोध किया गया है। अर्जी में दावा किया गया है कि यह मामला राष्ट्रीय और संवैधानिक महत्व का है।

उच्च न्यायालय ने तीन और याचिकाओं पर नोटिस जारी किये जो समलैंगिक जोड़ों ने अपने विवाह को मान्यता देने के लिए दायर की हैं। इसके साथ ही ऐसी याचिकाओं की कुल संख्या बढ़कर आठ हो गई है।

मुख्य न्यायाधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने केंद्र के वकील को इस मुद्दे पर निर्देश लेने और तीन याचिकाओं तथा कार्यवाही के सीधे प्रसारण की अर्जी पर जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया। पीठ ने मामले को तीन फरवरी को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

अदालत कई समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने अपने विवाह को विशेष, हिंदू और विदेशी विवाह कानूनों के तहत मान्यता देते हुए एक घोषणापत्र का अनुरोध किया है।

तीन नयी याचिकाओं में से दो याचिकाओं का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने किया।

दो याचिकाओं में से एक याचिका दो समलैंगिक महिलाओं ने दायर की हैं, जिन्होंने फरवरी 2018 में वाराणसी में शादी कर ली थी और अब वे अपने विवाह को मान्यता का अनुरोध कर रहे हैं। दूसरी अर्जी एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति की है जिसने ‘सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी’ करवाई है और दक्षिण अफ्रीका में अपने पति के साथ एक ‘सिविल यूनियन’ में शामिल हो गया है और इस विवाह की मान्यता चाहता है।

कार्यवाही के सीधे प्रसारण के लिए अर्जी अभिजीत अय्यर मित्रा की लंबित याचिका में दायर की गई है।

इसमें उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री को इस मामले की अंतिम दलीलों का यूट्यूब या किसी अन्य प्लेटफॉर्म के माध्यम से सीधे प्रसारण की व्यवस्था करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने दलील दी कि इसमें शामिल अधिकारों को देखते हुए, कार्यवाही का सीधा प्रसारण आवश्यक है क्योंकि यह देश की कुल आबादी के सात से आठ प्रतिशत से संबंधित है। उन्होंने कहा कि यह राष्ट्रीय महत्व का मामला है और इसमें सीधा प्रसारण एक बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व कर सकती है।

कौल ने कहा कि उनके मुवक्किल जनता के एक बड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो इन मामलों के परिणाम का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में लोग कार्यवाही में भाग लेना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय और भारत के अटॉर्नी जनरल और बार ऐसे मामलों की सुनवाई के सीधे प्रसारण के पक्ष में हैं जो राष्ट्रीय हित के हैं और ये याचिकाएं इसी श्रेणी में आती हैं। उन्होंने गुजरात, ओडिशा और कर्नाटक के उच्च न्यायालयों का उदाहरण दिया जिन्होंने सुनवाई का सीधा प्रसारण करने की पहल की और नियम तैयार किये।

मित्रा और तीन अन्य ने दलील दी कि उच्चतम न्यायालय के फैसले की इस व्यवस्था का भी हवाला दिया कि सहमति से समलैंगिक कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बावजूद समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह संभव नहीं है। उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) और विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध किया।

दो अन्य अर्जियों में एक एसएमए के तहत विवाह के अनुरोध वाली दो महिलाओं द्वारा दायर की गई है जबकि और दूसरा दो पुरुषों द्वारा दायर की गई जिन्होंने अमेरिका में शादी की लेकिन विदेशी विवाह अधिनियम (एफएमए) के तहत उनके विवाह के पंजीकरण से इनकार कर दिया गया था।

केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह का इस आधार पर विरोध किया है कि भारत में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है बल्कि जैविक पुरुष और महिला के बीच एक संस्था है।

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