वैज्ञानिकों के समूह ने प्रस्तावित एलडीएआर वापस लेने के लिए राष्ट्रपति से हस्तक्षेप का अनुरोध किया

By भाषा | Updated: June 24, 2021 14:32 IST2021-06-24T14:32:39+5:302021-06-24T14:32:39+5:30

Group of scientists requests President's intervention to withdraw proposed LDAR | वैज्ञानिकों के समूह ने प्रस्तावित एलडीएआर वापस लेने के लिए राष्ट्रपति से हस्तक्षेप का अनुरोध किया

वैज्ञानिकों के समूह ने प्रस्तावित एलडीएआर वापस लेने के लिए राष्ट्रपति से हस्तक्षेप का अनुरोध किया

कोच्चि, 23 जून प्रस्तावित लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण नियमन 2021 (एलडीएआर) समस्याओं से भरा है और लक्षद्वीप की पारिस्थितिकी, आजीविका एवं संस्कृति के लचीलेपन को सुरक्षित रखने वाले मौजूदा कानूनी प्रावधानों के खिलाफ काम करेगा। विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों के एक समूह ने यह बात कही है जिन्होंने वर्षों तक द्वीप पर काम किया है।

बृहस्पतिवार को जारी एक बयान में, लक्षद्वीप रिसर्च कलेक्टिव ने कहा कि उसने वैज्ञानिक समुदाय के 60 अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं के साथ मिलकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर उनसे लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन 2021 के ‘‘समस्या से भरे मसौदे" को वापस लेने के लिए हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है।

वैज्ञानिकों एवं नागरिकों के एक समूह ‘लक्षद्वीप रिसर्च कलेक्टिव’ ने कहा कि उन्होंने एलडीएआर के निहितार्थों की विस्तृत समीक्षा की है।

बयान में कहा गया, “स्थानीय भूमि के अधिग्रहण को सक्षम बनाने वाले इस मसौदा नियमन में हमने पाया है कि यह मौजूदा कानूनों जैसे भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013, जैविक विविधता अधिनियम 2002, पर्यावरण (संरक्षण) कानून, 1986 के अनुरूप नहीं है।”

समूह ने कहा कि यह उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित न्यायमूर्ति रवींद्रन समिति की अनुशंसाओं के भी खिलाफ है जिसे पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 23 अक्टूबर 2015 को प्रकाशित अपनी अधिसूचना संख्या 19011/16/91-1ए में और लक्षद्वीप पंचायत नियमन 1994 में स्वीकृत किया था।

इसने कहा, “एलडीएआर संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों, जैविक विविधता संधि के तहत समुद्री संरक्षण लक्ष्यों और पर्यावरण पर्यटन दिशा-निर्देश 2019 के प्रति भारत की प्रतिबद्धताओं का भी समाधान नहीं करता है।”

वैज्ञानिकों ने कहा कि चूंकि लक्षद्वीप प्रवाल संपन्न द्वीप है जिसका मतलब है कि द्वीप जीवित प्रवाल तंत्र का हिस्सा है इसलिए इस द्वीप तंत्र को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है।

समूह ने कहा, “लक्षद्वीप ने विनाशकारी जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रवालों की मृत्यु की घटनाएं देखी हैं, जो चट्टानों (शैल भित्तियों) की वृद्धि और बफर क्षमता को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, राजधानी कवारत्ती की चट्टानें बढ़ने से ज्यादा गति से समाप्त हो रही हैं। लक्षद्वीप न सिर्फ पारिस्थितिकी के लिहाज से नाजुक है बल्कि सामाजिक रूप से प्रगतिशील है और इसे सतत विकास रूपरेखा की जरूरत है।”

वैज्ञानिकों ने कहा कि लक्षद्वीप विशेष रूप से संवेदनशील है और महासागर से घिरे होने और समुद्र तल से महज कुछ मीटर ऊपर होने तथा केवल चट्टानों से संरक्षित होने के कारण, यह साफ है कि इन द्वीपों पर सभी प्रकार के विकासों को बहुत ध्यान से प्रबंधित करना होगा।

नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के वरिष्ठ वैज्ञानिक, रोहन आर्थर ने कहा, “इन पारिस्थितिकी तंत्रों को ठीक होने में कितना समय लग सकता है, यह सोच से परे है। लक्षद्वीप में जमीन, झील और चट्टानें किस तरह एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं, यह देखते हुए मसौदा एलडीएआर में परिकल्पित विकास तबाही के अलावा कुछ नहीं लाएगा।”

मौजूदा स्वरूप में, एलडीएआर स्थानीय द्वीपवासियों को निर्णय लेने की प्रक्रिया से बाहर रखता है।

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