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सरकार का कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव, किसान संगठन अपनी मांग पर अड़े

By भाषा | Updated: January 20, 2021 19:40 IST

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नयी दिल्ली, 20 जनवरी केंद्र सरकार ने बुधवार को किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से 10वें दौर की वार्ता में तीनों कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव रखा लेकिन प्रदर्शनकारी किसान इन कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े रहे।

किसानों ने यह आरोप भी लगाया कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी देने पर चर्चा टाल रही है।

किसान नेताओं ने कहा कि 10वें दौर की वार्ता के पहले सत्र में कोई समाधान नहीं निकला क्योंकि दोनों ही पक्ष अपने रुख पर अड़े रहे। उन्होंने कहा कि आज की वार्ता में 11वें दौर की वार्ता की तारीख तय करने के अलावा कोई नतीजा नहीं निकलना है।

सूत्रों के मुताबिक सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को एक वर्ष या उससे अधिक समय के लिए निलंबित रखने और किसान संगठनों व सरकार के प्रतिनिधियों की एक समिति गठित करने भी प्रस्ताव रखा।

सूत्रों ने बताया कि मंत्रियों ने प्रस्ताव दिया कि जब तक समिति की रिपोर्ट नहीं आ जाती तब तक कृषि कानून निलंबित रहेंगे। उन्होंने तब तक किसानों को अपना आंदोलन स्थगित करने का आग्रह किया।

हालांकि इस प्रस्ताव का किसान संगठनों ने समर्थन नहीं किया।

ज्ञात हो कि कृषि कानूनों के अमल पर उच्चतम न्यायालय ने अगले आदेश तक पहले ही रोक लगा रखी है। शीर्ष अदालत ने भी एक समिति गठित की है।

बैठक के दौरान किसान नेताओं ने कुछ किसानों को एनआईए की ओर से जारी नोटिस का मामला भी उठाया और आरोप लगाया कि किसानों को आंदोलन का समर्थन करने के लिए प्रताड़ित करने के मकसद से ऐसा किया जा रहा है।

सरकार के प्रतिनिधियों ने कहा कि वे इस मामले को देंखेंगे।

भारतीय किसान यूनियन के महासचिव युद्धवीर सिंह ने कहा, ‘‘तीन कृषि कानूनों को लेकर गतिरोध जारी है और मुझे नहीं लगता है कि आज की बैठक में कोई नतीजा निकलेगा। दोनों पक्ष अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं।’’

उन्होंने कहा कि सरकार पहले तीनों कृषि कानूनों पर चर्चा चाहती है और एमएसपी के मुद्दे पर बाद में चर्चा चाहती है।

उन्होंने कहा, ‘‘अगले सत्र में हम एमएसपी पर चर्चा के लिए जोर डालेंगे और वार्ता की अगली तारीख 26 जनवरी से पहले तय करने को कहेंगे।’’

पहले सत्र में तकरीबन एक घंटे की चर्चा के बाद दोनों पक्षों ने ब्रेक लिया।

किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, ‘‘आज की बैठक में कोई समाधान नहीं निकला। हम अगली तारीख को फिर मिलेंगे।’’

टिकैत ने कहा कि किसान संगठन के नेताओं ने किसानों को एनआईए की नोटिस का मुद्दा भी उठाया।

उन्होंने कहा, ‘‘सरकार ने कुछ संशोधनों का प्रस्ताव दिया लेकिन किसान संगठनों ने स्पष्ट कर दिया कि उन्हें तीनों कानूनों को निरस्त करने से कम पर कुछ मंजूर नहीं है।’’

किसान नेता कविता कुरूगंती ने कहा कि बैठक एनआईए नोटिस से जुड़े मुद्दे से शुरू हुई। इसके बाद किसान संगठनों की ओर से कानूनों को निरस्त करने की मांग उठाई।

उन्होंने कहा कि किसान नेताओं ने बताया कि सरकार की ओर से कृषि मंत्री ने संसद में दिए जवाबों में कृषि को राज्य का विषय बताया है और यहां तक कि कृषि-बाजार को भी राज्य का विषय बताया गया है।

इससे पहले अपराह्न पौने तीन बजे तीन कृषि कानूनों को लेकर पिछले लगभग 50 दिन से जारी गतिरोध को दूर करने के प्रयासों के तहत सरकार और कृषि संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच 10वें दौर की वार्ता शुरू हुई।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, रेल, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल तथा केंद्रीय वाणिज्य राज्य मंत्री सोमप्रकाश लगभग 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ यहां विज्ञान भवन में वार्ता में शामिल हुए।

दसवें दौर की वार्ता 19 जनवरी को होनी थी लेकिन यह स्थगित कर दी गई थी। केंद्र सरकार और प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच नौ दौर की वार्ता में मुद्दे को सुलझाने की कोशिश बेनतीजा रही थी।

सरकार ने पिछली वार्ता में किसान संगठनों से अनौपचारिक समूह बनाकर अपनी मांगों के बारे में सरकार को एक मसौदा प्रस्तुत करने को कहा था। हालांकि किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े रहे।

उल्लेखनीय है कि सरकार और किसान संगठनों के मध्य चल रही वार्ता के बीच उच्चतम न्यायालय ने 11 जनवरी को गतिरोध समाप्त करने के मकसद से चार सदस्यीय समिति का गठन किया था लेकिन प्रदर्शनकारी किसानों ने नियुक्त सदस्यों द्वारा पूर्व में कृषि कानूनों को लेकर रखी गई राय पर सवाल उठाए। इसके बाद एक सदस्य भूपिंदर सिंह मान ने खुद को इस समिति से अलग कर लिया ।

उच्चतम न्यायालय ने नये कृषि कानूनों पर गतिरोध खत्म करने के लिए गठित की गई समिति के सदस्यों पर कुछ किसान संगठनों द्वारा आक्षेप लगाए जाने को लेकर बुधवार को नाराजगी जाहिर की।

साथ ही, शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि उसने समिति को फैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं दिया है, यह शिकायतें सुनेगी तथा सिर्फ रिपोर्ट देगी।

इस बीच, राष्ट्रीय राजधानी में गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रदर्शनकारी किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को रोकने के लिए एक न्यायिक आदेश पाने की दिल्ली पुलिस की उम्मीदों पर पानी फिर गया। दरअसल, शीर्ष न्यायालय ने केंद्र को (इस संबंध में दायर) याचिका वापस लेने का निर्देश देते हुए कहा कि यह ‘‘पुलिस का विषय’’ है और ऐसा मुद्दा नहीं है कि जिस पर न्यायालय को आदेश जारी करना पड़े।

उल्लेखनीय है कि हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर पिछले करीब दो महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं। वे नये कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।

प्रदर्शनकारी किसानों का आरोप है कि इन कानूनों से मंडी व्यवस्था और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की प्रणाली समाप्त हो जाएगी और किसानों को बड़े कोरपोरेट घरानों की ‘कृपा’ पर रहना पड़ेगा। हालांकि, सरकार इन आशंकाओं को खारिज कर चुकी है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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