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सरकार-किसान वार्ता अटकी : किसान यूनियन मांगों पर अड़ीं, सरकार ने कहा बाहरी ताकतें कर रहीं खेल

By भाषा | Updated: January 22, 2021 21:49 IST

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नयी दिल्ली, 22 जनवरी सरकार और किसानों के बीच शुक्रवार को वार्ता तब अटक गई जब किसान नेता तीनों नए कृषि कानूनों को पूरी तरह वापस लिए जाने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दिए जाने की अपनी मांग पर लगातार अड़े रहे। उन्होंने कृषि कानूनों को निलंबित रखने के केंद्र के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इस बीच, कृषि मंत्री ने कहा कि किसान नेताओं के अड़ियल रवैये के लिए बाहरी ‘‘ताकतें’’ जिम्मेदार हैं तथा जब आंदोलन की शुचिता खो जाती है तो कोई भी समाधान निकलना मुश्किल है।

ग्यारहवें दौर की वार्ता के आज बेनतीजा रहने के साथ ही किसान नेताओं ने आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी।

वार्ता के पिछले 10 दौर के विपरीत आज 11वें दौर की वार्ता में अगली बैठक की कोई तारीख तय नहीं हो पाई और दोनों पक्षों ने अपने रुख को कड़ा कर लिया।

सरकार ने किसान यूनियनों से कहा कि यदि वे कानूनों को निलंबित रखने पर सहमत हों तो शनिवार तक बता दें तथा बातचीत इसके बाद ही जारी रह सकती है।

सरकार ने बुधवार को पिछले दौर की वार्ता में किसानों के दिल्ली की सीमाओं से अपने घर लौटने की स्थिति में कानूनों को एक से डेढ़ साल के लिए निलंबित रखने तथा समाधान ढूंढ़ने के लिए संयुक्त समिति बनाने की पेशकश की थी।

किसान नेताओं ने हालांकि कहा था कि वे नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने से कम किसी बात को नहीं मानेंगे।

कृषक संगठनों ने आज कहा कि वे अब अपना आंदोलन तेज करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि बैठक के दौरान सरकार का रवैया ठीक नहीं था।

किसान नेताओं ने यह भी कहा कि 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली योजना के अनुरूप निकाली जाएगी और यूनियनों ने पुलिस से कहा है कि इस दौरान शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार की है।

उल्लेखनीय है कि केंद्र द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों के विरोध में लगभग दो महीने से हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका मानना है कि संबंधित कानून किसानों के खिलाफ तथा कॉरपोरेट घरानों के पक्ष में हैं।

किसान नेताओं ने आज की बैठक के बाद कहा कि भले ही बैठक पांच घंटे चली, लेकिन दोनों पक्ष मुश्किल से 30 मिनट के लिए ही आमने-सामने बैठे।

बैठक की शुरुआत में ही किसान नेताओं ने सरकार को सूचित किया कि उन्होंने बुधवार को पिछले दौर की बैठक में सरकार द्वारा रखे गए प्रस्ताव को खारिज करने का निर्णय किया है।

कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर सहित तीनों केंद्रीय मंत्रियों ने किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों से अपने रुख पर पुनर्विचार करने को कहा जिसके बाद दोनों पक्ष दोपहर भोज के लिए चले गए।

किसान नेताओं ने अपने लंगर में भोजन किया जो तीन घंटे से अधिक समय तक चला। भोजन विराम के दौरान 41 किसान नेताओं ने छोटे-छोटे समूहों में आपस में चर्चा की, जबकि तीनों केंद्रीय मंत्रियों ने विज्ञान भवन में एक अलग कक्ष में प्रतीक्षा की।

बैठक के बाद भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) के नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां ने कहा कि वार्ता टूट गई है क्योंकि यूनियनों ने सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार ने कहा कि कानूनों को निलंबित रखने की अवधि दो साल तक विस्तारित की जा सकती है, लेकिन यूनियन तीनों कानूनों को पूरी तरह वापस लिए जाने तथा फसलों की खरीद पर एमएसपी की कानूनी गारंटी दिए जाने की अपनी मांगों पर अड़ी रहीं।

मंत्रियों ने किसान यूनियनों से कहा कि उन्हें सभी संभव विकल्प दिए गए हैं और उन्हें कानूनों को निलंबित रखने के प्रस्ताव पर आपस में आंतरिक चर्चा करनी चाहिए।

कृषि मंत्री तोमर ने 11वें दौर की वार्ता विफल होने के बाद अफसोस जताया और कड़ा रुख अख्तियार करते हुए आरोप लगाया कि कुछ ‘‘ताकतें’’ हैं जो अपने निजी एवं राजनीतिक हितों के चलते आंदोलन को जारी रखना चाहती हैं।

तोमर ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा कि तीन कृषि कानूनों का क्रियान्वयन 12-18 महीनों तक स्थगित रखने और तब तक चर्चा के जरिए समाधान निकालने के लिए समिति बनाए जाने सहित केंद्र सरकार की ओर से अब तक वार्ता के दौरान कई प्रस्ताव दिए गए लेकिन किसान संगठन इन कानूनों को खारिज करने की मांग पर अड़े हैं।

पिछली बैठक में सरकार की ओर से किसानों के सामने रखे गए प्रस्ताव को तोमर ने ‘‘बेहतर’’ और देश व किसानों के हित में बताया तथा यह कहते हुए गेंद किसान संगठनों के पाले में डाल दी कि वे इसपर पुनर्विचार कर केंद्र के समक्ष अपना रुख स्पष्ट करते हैं तो आगे की कार्रवाई की जा सकती है।

तोमर ने कहा, ‘‘एक से डेढ़ बरस तक कानून को स्थगित रख समिति बनाकर आंदोलन में उठाए गए मुद्दों और पहलुओं पर विचार विमर्श कर सिफारिश देने का प्रस्ताव बेहतर है। उसपर आप विचार करें। यह प्रस्ताव किसानों के हित में भी है। इसलिए हमने कहा, आज वार्ता खत्म करते हैं। आप लोग अगर निर्णय पर पहुंच सकते हैं तो कल अपना मत बताइए। निर्णय घोषित करने के लिए आपकी सूचना पर हम कहीं भी इकट्ठा हो सकते हैं और उस निर्णय को घोषित करने की आगे की कार्रवाई कर सकते हैं।’’

उन्होंने कहा कि सरकार ने हमेशा किसानों के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाया और किसानों के सम्मान की बात सोची। इसलिए किसान संगठनों से लगातार बात की जा रही है ताकि उनकी भी प्रतिष्ठा बढ़े और वे किसानों की नुमाइंदगी कर सकें।

मंत्री ने कहा, ‘‘इसलिए भारत सरकार की कोशिश थी कि वह सही रास्ते पर विचार करें और सही रास्ते पर विचार करने के लिए 11 दौर की बैठक की गई। जब किसान संगठन कानूनों को निरस्त करने पर अड़े रहे तो सरकार ने उनकी आपत्तियों के अनुसार निराकरण करने व संशोधन करने के लिए एक के बाद एक अनेक प्रस्ताव दिए। लेकिन जब आंदोलन की शुचिता नष्ट हो जाती है तो कोई निर्णय संभव नहीं होता।’’

तोमर ने कहा, ‘‘आज मुझे लगता है कि वार्ता के दौर में मर्यादाओं का पालन तो हुआ लेकिन किसान के हक में वार्ता का मार्ग प्रशस्त हो, इस भावना का अभाव था। इसलिए वार्ता निर्णय तक नहीं पहुंच सकी। इसका मुझे खेद है।’’

कृषि मंत्री ने कहा कि जब आंदोलन का नाम किसान आंदोलन और विषय किसानों से संबंधित हो तथा सरकार निराकरण करने के लिए सरकार तैयार हो और निर्णय न हो सके तो अंदाजा लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘कोई न कोई ताकत ऐसी है जो इस आंदोलन को बनाए रखना चाहती है।’’

मंत्री ने कहा कि भारत सरकार किसानों के प्रति संवेदनशील है और उनके विकास एवं उत्थान के लिए उसका प्रयत्न निरंतर जारी रहेगा।

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि किसान संगठन सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करेंगे, उन्होंने कहा, ‘‘मैं कोई अनुमान नहीं लगाता लेकिन मैं आशावान हूं। मुझे उम्मीद है कि किसान संगठन हमारे प्रस्ताव पर सकारात्मक विचार करेंगे।’’

तोमर ने कहा कि किसानों के हित में विचार करने वाले लोग सरकार के प्रस्ताव पर जरूर विचार करेंगे।

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार के प्रस्ताव पर उन्हें यूनियने नेताओं के बीच कोई मतभेद दिखाई दिया, तोमर ने इसका सीधा जवाब नहीं दिया तथा कहा, ‘‘जो हमारे प्रस्ताव का समर्थन करते हैं, और जो हमारे प्रस्ताव का समर्थन नहीं करते हैं, उन सब किसान नेताओं का हम धन्यवाद करते हैं।’’

ऐसी खबरें हैं कि कुछ यूनियन सरकार के प्रस्ताव के पक्ष में थीं, लेकिन उन्होंने पेशकश खारिज करने के बहुमत रुख के साथ जाने का निर्णय किया।

मंत्री ने कहा कि हालांकि कानूनों में कोई समस्या नहीं है, लेकिन सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों के सम्मान के लिए इन्हें निलंबित रखने की पेशकश की है।

तोमर ने कहा कि सरकार और किसानों के बीच अब तक वार्ता के 11 दौर हुए हैं एवं एक बैठक अधिकारियों के साथ हुई।

उन्होंने कहा कि किसानों के फायदे के लिए संसद में कृषि सुधार विधेयकों को पारित किया गया और आंदोलन मुख्य रूप से पंजाब के किसानों तथा कुछ अन्य राज्यों के कुछ किसानों द्वारा किया जा रहा है।

यह पूछे जाने पर कि यदि किसान यूनियन सरकार की पेशकश पर पुनर्विचार नहीं करती हैं और अपना आंदोलन तेज करती हैं तो सरकार के पास क्या विकल्प हैं, तोमर ने कहा, ‘‘हमने सभी संभव विकल्प दिए हैं। यदि उनके पास कानूनों को निरस्त करने की बात को छोड़कर कोई बेहतर विकल्प है तो हमें बताएं।’’

प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली से संबंधित खबरों पर मंत्री ने कहा, ‘‘मैं मीडिया के जरिए और बैठकों में भी शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए किसान संगठनों का धन्यवाद करता रहा हूं। मैं उम्मीद करता हूं कि भविष्य में भी प्रदर्शन अहिंसक रहेगा और कोई अप्रिय घटना नहीं होनी चाहिए तथा वे अनुशासन बनाकर रखें। यह मेरी अपेक्षा है।’’

बैठक स्थल से बाहर आते हुए किसान नेता शिवकुमार कक्का ने कहा कि चर्चा में कोई प्रगति नहीं हुई और सरकार ने अपने प्रस्ताव पर यूनियनों से पुन: विचार करने को कहा।

कक्का बैठक से जाने वाले पहले व्यक्ति थे, लेकिन उन्होंने कहा कि यह ‘‘कुछ निजी कारणों’’ की वजह से है।

बुधवार को हुई पिछले दौर की बातचीत में सरकार ने तीनों नए कृषि कानूनों के क्रियान्वयन को स्थगित रखने और समाधान निकालने के लिए एक संयुक्त समिति बनाने की पेशकश की थी। हालांकि बृहस्पतिवार को विचार-विमर्श के बाद किसान यूनियनों ने इस पेशकश को खारिज करने का फैसला किया और वे इन कानूनों को रद्द किए जाने तथा एमएसपी की कानूनी गारंटी दिए जाने की अपनी दो प्रमुख मांगों पर अड़े रहे।

किसान नेता दर्शनपाल ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमने सरकार से कहा कि हम कानूनों को निरस्त करने के अलावा किसी और चीज के लिए सहमत नहीं होंगे। लेकिन मंत्री ने हमें अलग से चर्चा करने और मामले पर फिर से विचार कर फैसला बताने को कहा।’’

टिकैत ने कहा, ‘‘हमने अपनी स्थिति सरकार को स्पष्ट रूप से बता दी कि हम कानूनों को निरस्त कराना चाहते हैं, न कि स्थगित। मंत्रियों ने हमें अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा।’’

कुछ नेताओं ने आशंका जताई कि यदि किसान एक बार दिल्ली की सीमाओं से चले गए तो आंदोलन अपनी ताकत खो देगा।

भारतीय किसान यूनियन (असली अराजनीतिक) के अध्यक्ष हरपाल सिंह ने कहा, ‘‘यदि हम सरकार की पेशकश को स्वीकार कर लेते हैं, तो दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हमारे साथी भाई कानूनों को रद्द करने के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे। वे हमें नहीं बख्शेंगे। हम उन्हें क्या उपलब्धि दिखाएंगे?’’

उन्होंने सरकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाया और आरोप लगाया कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि वह 18 महीने तक कानूनों के क्रियान्वयन को स्थगित रखकर अपनी बात पर कायम रहेगी।

सिंह ने कहा, ‘‘हम यहां मर जाएंगे, लेकिन कानूनों को रद्द कराए बिना वापस नहीं लौटेंगे।’’

सरकार की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल तथा वाणिज्य राज्य मंत्री सोमप्रकाश ने करीब 41 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ वार्ता की।

संयुक्त किसान मोर्चा के तहत किसान नेताओं ने सरकार के प्रस्ताव पर बृहस्पतिवार को सिंघू बॉर्डर पर बैठक की थी। इसी मोर्चे के बैनर तले कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर किसान संगठन पिछले लगभग दो महीने से आंदोलन कर रहे हैं।

मोर्चे ने एक बयान में कहा था, ‘‘बैठक में तीनों नए केंद्रीय कृषि कानूनों को पूरी तरह रद्द करने और किसानों के लिए सभी फसलों पर लाभदायक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए एक कानून बनाने की बात, इस आंदोलन की मुख्य मांगों के रूप में दोहराई गईं।’’

दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों में से अधिकतर पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं।

किसान संगठनों का आरोप है कि नए कृषि कानूनों से मंडी और एमएसपी खरीद प्रणालियां समाप्त हो जाएंगी तथा किसान बड़े कॉरपोरेट घरानों की दया पर निर्भर हो जाएंगे।

उच्चतम अदालत ने 11 जनवरी को तीनों नए कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी और गतिरोध को दूर करने के मकसद से चार-सदस्यीय एक समिति का गठन किया था। फिलहाल, इस समिति में तीन ही सदस्य हैं क्योंकि भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने खुद को इस समिति से अलग कर लिया था।

इस समिति के तीन अन्य सदस्यों ने बृहस्पतिवार को पक्षकारों के साथ वार्ता प्रक्रिया शुरू कर दी थी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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