गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में लगभग दो साल पहले कथित रूप से ऑक्सीजन की कमी के कारण, कुछ मरीज बच्चों की मौत के मामले के आरोपी डॉक्टर कफील अहमद खान को क्लीन चिट दी चुकी है, लेकिन उन्होंने बीते दिन शनिवार दावा किया कि उनकी बेगुनाही का दावा खारिज कर दिया गया।
उन्होंने एक विभागीय जांच की प्रति दिखाते हुए कहा कि उन्हें आरोपों से मुक्त किया गया है। वहीं,र उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि जांच प्रक्रिया अभी भी जारी है और अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। अधिकारियों के अनुसार, खान के खिलाफ अनुशासनहीनता, और नियमों का पालन नहीं करने के लिए एक अतिरिक्त विभागीय जांच चल रही है।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार ने कहा कि खान को चार आरोपों पर पूछताछ का सामना करना पड़ा और पूछताछ के दौरान उन्हें दो में दोषी पाया गया। जांच का विवरण "आरोपी अधिकारी को" उसके जवाब के लिए प्रस्तुत किया गया था और अभी तक मामले पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
दिल्ली में शनिवार को मीडिया को संबोधित करते हुए खान ने कहा कि वह इन दो वर्षों में बहुत कुछ से गुजरे हैं। उन्होंने अपने आत्मसम्मान की मांग की है। इसके अलावा उन्होंने बीआरडी अस्पताल में 2017 में कम से कम 60 शिशुओं की मृत्यु के लिए न्याय की मांग की और चिकित्सा शिक्षा विभाग की आंतरिक जांच रिपोर्ट पेश की जिसमें उन्हें विशेष मामले में लापरवाही के लिए बेगुनाह माना गया।
आपको बता दे कि मामले के जांच अधिकारी और स्टांप एवं निबंधन विभाग के प्रमुख सचिव हिमांशु कुमार की रिपोर्ट में कहा गया था किडॉक्टर खान के खिलाफ ऐसा कोई भी सुबूत नहीं पाया गया जो चिकित्सा में लापरवाही को साबित करता हो। जांच रिपोर्ट के अनुसार हाल ही में एक आरटीआई आवेदन के जवाब में सरकार ने भी स्वीकार किया है कि 11/12 अगस्त 2017 को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में 54 घंटे तक तरल ऑक्सीजन की कमी थी और डॉक्टर कफील खान ने वहां भर्ती बच्चों को बचाने के लिए वास्तव में जंबो ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की थी।
डॉक्टर खान ने इसे अपनी जीत बताते हुए सरकार से मांग की है कि उन्हें नौकरी पर बहाल किया जाए और यह भी बताया जाए कि उस वक्त मेडिकल कॉलेज में इन्सैफेलाइटिस से पीड़ित करीब 70 बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन है।
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य गणेश कुमार ने बताया था कि डॉक्टर खान को वह जांच रिपोर्ट बृहस्पतिवार को सौंप दी गई थी। पिछली 18 अप्रैल को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, कफील खान वारदात के वक्त इन्सैफेलाइटिस वार्ड के नोडल मेडिकल प्रभारी नहीं थे और ना ही ऑक्सीजन सप्लाई के टेंडर आवंटन प्रक्रिया में वह किसी भी तरह शामिल थे।
गौरतलब है कि 10/11 अगस्त की रात को गोरखपुर स्थित बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में करीब 60 बच्चों की मौत हुई थी। इसका मुख्य कारण ऑक्सीजन की कमी को माना गया था। हालांकि सरकार ने इस आरोप को गलत बताया था। डॉक्टर कफील खान को इस मामले में आरोपी बनाया गया था और वह कई महीने तक जेल में भी रहे थे। उन्हें अप्रैल 2018 में जमानत पर रिहा किया गया था।