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फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट ‘भ्रामक, गलत, अनुचित’ : भारत ने ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ दर्जे पर कहा

By भाषा | Updated: March 5, 2021 22:34 IST

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नयी दिल्ली, पांच मार्च सरकार ने शुक्रवार को लोकतंत्र निगरानी संस्था ‘फ्रीडम हाउस’ की उस रिपोर्ट को “भ्रामक, गलत और अनुचित” करार दिया जिसमें भारत के दर्जे को घटाकर “आंशिक रूप से स्वतंत्र” कर दिया गया है और कहा कि देश में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं अच्छे से स्थापित हैं।

साथ ही भारत सरकार ने कहा कि उसे ‘उपदेशों’ की जरूरत नहीं है।

सूचना प्रसारण मंत्रालय ने जहां कहा कि देश में सभी नागरिकों के साथ बिना भेदभाव समान व्यवहार होता है तथा जोर दिया कि चर्चा, बहस और असहमति भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा हैं, वहीं विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत में संस्थान मजबूत हैं। विदेश मंत्रालय ने लोकतंत्र निगरानीकर्ता पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत को “उपदेशों” की जरूरत नहीं है, खासतौर पर उनसे जो अपनी मूलभूत चीजों को भी सही नहीं कर सकते।

अमेरिकी सरकार द्वारा वित्तपोषित गैर सरकारी संगठन फ्रीडम हाउस की बुधवार को जारी नयी रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया कि भारत में नागरिक स्वतंत्रताओं का लगातार क्षरण हुआ है।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “फ्रीडम हाउस की ‘डेमोक्रेसी अंडर सीज’ शीर्षक वाली रिपोर्ट, जिसमें दावा किया गया है कि एक स्वतंत्र देश के रूप में भारत का दर्जा घटकर “आंशिक रूप से स्वतंत्र” रह गया है, पूरी तरह भ्रामक, गलत और अनुचित है।”

एक मीडिया ब्रीफिंग के दौरान रिपोर्ट के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, “फ्रीडम हाउस के राजनीतिक फैसले उतने ही गलत व विकृत हैं जितने उनके नक्शे।”

श्रीवास्तव ने फ्रीडम हाउस द्वारा भारत का गलत नक्शा दिखाए जाने के संदर्भ में यह बात कही।

उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिये कोविड-19 की स्थिति पर, दुनिया भर में हमारी प्रतिक्रिया, हमारी उच्च स्वास्थ्य दर और निम्न मृत्यु दर को व्यापक सराहना मिली।”

उन्होंने कहा, “भारत में संस्थान मजबूत हैं और यहां लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं अच्छे से स्थापित हैं। हमें उनसे उपदेश की आवश्यकता नहीं हैं जो मूलभूत चीजें भी सहीं नहीं कर सकते।” रिपोर्ट के नतीजों का विस्तार से खंडन करते हुए मंत्रालय ने कहा, “भारत सरकार अपने सभी नागरिकों के साथ समानता का व्यवहार करती है, जैसा देश के संविधान में निहित है और बिना किसी भेदभाव के सभी कानून लागू हैं। भड़काने वाले व्यक्ति की पहचान को ध्यान में रखे बिना, कानून व्यवस्था के मामलों में कानून की प्रक्रिया का पालन किया जाता है।”

मंत्रालय ने कहा, “जनवरी, 2019 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के खास तौर पर उल्लेख के मद्देनजर, कानून प्रवर्तन तंत्र ने निष्पक्ष और उचित तरीके से तत्परता के साथ काम किया। हालात को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम उठाए गए थे। प्राप्त हुई सभी शिकायतों/ कॉल्स पर कानून प्रवर्तन मशीनरी ने कानून और प्रक्रियाओं के तहत आवश्यक विधिक और निरोधात्मक कार्रवाई की थीं।”

सरकार ने रिपोर्ट में लगाए गए उस आरोप को भी खारिज किया कि कोविड-19 की वजह से लागू लॉकडाउन में “शहरों में लाखों प्रवासी मजदूरों को बिना काम व मूलभूत संसाधनों के छोड़ दिया गया” और “इसकी वजह से लाखों घरेलू कामगारों का खतरनाक व अनियोजित विस्थापन हुआ।”

सरकार ने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिये लॉकडाउन की घोषणा की गई थी और इस अवधि ने “सरकार को मास्क, वेंटिलेटर, पीपीई किट आदि की उत्पादन क्षमता बढ़ाने का मौका दिया तथा इस तरह महामारी के प्रसार को प्रभावी तरीके से रोका गया। प्रति व्यक्ति आधार पर भारत में कोविड-19 के सक्रिय मामलों की संख्या और कोविड-19 से जुड़ी मौतों की दर वैश्विक स्तर पर सबसे कम दर में से एक रही।”

रिपोर्ट में किये गए शिक्षाविदों और पत्रकारों को धमकाने के दावों पर सरकार ने कहा, “चर्चा, बहस और असंतोष भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा है। भारत सरकार पत्रकारों सहित देश के सभी नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च अहमियत देती है।” सरकार ने पत्रकारों की सुरक्षा पर राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों को विशेष परामर्श जारी करके उनसे मीडिया कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त कानून लागू करने का अनुरोध किया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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