राजनीति के अपराधीकरण से मुक्ति: न्यायालय ने कहा, अभी तक कुछ नहीं किया गया है और आगे भी कुछ नहीं होगा

By भाषा | Updated: July 20, 2021 22:16 IST2021-07-20T22:16:01+5:302021-07-20T22:16:01+5:30

Freedom from criminalization of politics: Court said, nothing has been done so far and nothing will happen in future | राजनीति के अपराधीकरण से मुक्ति: न्यायालय ने कहा, अभी तक कुछ नहीं किया गया है और आगे भी कुछ नहीं होगा

राजनीति के अपराधीकरण से मुक्ति: न्यायालय ने कहा, अभी तक कुछ नहीं किया गया है और आगे भी कुछ नहीं होगा

नयी दिल्ली, 20 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि ‘‘अभी तक कुछ नहीं किया गया है और आगे भी कुछ नहीं होगा और हम भी अपने हाथ खड़े कर रहे हैं।’’ शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी अपने उन निर्देशों के गैर अनुपालन को लेकर अप्रसन्नता जताते हुए की जो उसने राजनीतिक दलों द्वारा राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त कराने के लिए दिये थे।

शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान 13 फरवरी, 2020 के उसके निर्देशों का अनुपालन न करने के लिए भाजपा और कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों के खिलाफ अवमानना ​​कार्रवाई के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए की।

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि ‘‘राजनीतिक दलों को अपने चयनित उम्मीदवारों के आपराधिक पृष्ठभूमि को उनके चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन दाखिल करने की पहली तारीख से कम से कम दो सप्ताह पहले, जो भी पहले हो, प्रकाशित करना होगा।’’

चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन न करने की बारीकियों के बारे में विस्तार से बताया।

उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा चुनावों में, पहले चरण के लिए नामांकन पत्र दाखिल करना 1 अक्टूबर, 2020 से शुरू हुआ और राजनीतिक दलों ने ज्यादातर अपने उम्मीदवारों के नामों को बहुत देर से अंतिम रूप दिया।

उन्होंने कहा कि इससे उम्मीदवारों द्वारा नामांकन आखिरी दिनों में दाखिल किया गया और इसलिए, नामांकन से दो सप्ताह पहले उम्मीदवारों का फैसला करने और उनके आपराधिक रिकॉर्ड, यदि कोई हो, का खुलासा करने के शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन नहीं किया गया।

उन्होंने आंकड़ों का भी जिक्र किया और कहा कि हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में 10 राजनीतिक दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 469 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था।

जब दलील दी जा रही थी तब पीठ ने राजनीति के अपराधीकरण पर अपने निर्देशों का पालन न करने पर नाराजगी व्यक्त की। पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई भी शामिल थे। पीठ ने कहा, ‘‘ अभी तक कुछ नहीं किया गया है और आगे भी कुछ नहीं होगा और हम भी अपने हाथ खड़े कर रहे हैं।’’

इस पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से अनुरोध किया कि उसे चीजों को ठीक करने के लिए विधायिका के कार्यक्षेत्र में दखल देना चाहिए।

सिब्बल ने संविधान के अनुच्छेद 324 का उल्लेख किया और इस तथ्य पर खेद व्यक्त किया कि राजनीतिक दल चुनाव आयोग और उसके निर्देशों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं।

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम इसे कैसे लागू करें? पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ (फैसला) कहती है कि हम ऐसा नहीं कर सकते.. क्या यह विधायिका के क्षेत्र में प्रवेश करने के समान नहीं होगा।’’

पीठ ने आगे कहा कि वह मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ को सौंपने के सुझाव पर विचार कर सकती है।

चुनाव आयोग ने कहा कि राकांपा और कम्युनिस्ट पार्टी ने बिहार चुनाव के दौरान शीर्ष अदालत के निर्देशों का पूरी तरह से उल्लंघन किया है।

चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने भी राजनीतिक दलों पर लगाम लगाने के लिए श्रेणीबद्ध दृष्टिकोण की वकालत करते हुए कहा कि जीतने की योग्यता मानदंड प्रतीत होती है और यह रोग सभी राजनीतिक दलों को पीड़ित कर रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘भारत में, श्री पालकीवाला ने एक बार यह भी कहा था कि ‘‘हम अपने सभी विकल्पों को समाप्त करने के बाद सही काम करते हैं।’’

अदालत को सुझाव दिया गया कि राजनीतिक दलों पर भारी जुर्माना लगाया जाए और नागरिकों को उनके चुनावी अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए चुनाव आयोग के लिए कोष बनाया जाए।

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने राजनीतिक दलों को अपनी वेबसाइटों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने उम्मीदवारों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण और उन्हें चुनने के कारणों के साथ-साथ आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट नहीं देने के लिए कई निर्देश जारी किए थे।

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