पटनाः महाराष्ट्र में सियासी ताकत रखने वाले उद्धव ठाकरे पहली बार बिहार आए। इसके पहले ठाकरे परिवार से आदित्य ठाकरे आए थे। शुक्रवार को महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे विपक्षी दलों की एकता की बैठक में भाग लेने अपने बेटे आदित्य ठाकरे और सांसद संजय राउत के साथ पटना आए।
पार्टी के बंटवारे के बाद उद्धव ठाकरे अपने गुट के प्रमुख हैं। पटना पहुंचने पर ऐसा लगा कि शिव सेना के बंटवारे के बाद उद्धव ठाकरे का उत्तर भारतीयों और बिहारियों के प्रति नजरिया ही बदल गया है। यहां बता दें कि पिछले साल नवंबर महीने में उद्धव ठाकरे के बेटे व महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे भी पटना आए थे।
तब आदित्य ठाकरे पटना आने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मिले थे। उस वक्त कहा गया था कि ये एक शिष्टाचार मुलाकात थी। मगर, उस मुलाकात के कई मायने थे। राजनीति की पुरानी बातों को दरकिनार कर तेजस्वी और आदित्य ने अपने कदम आगे बढ़ाए थे।
एक-दूसरे की काफी तारीफ की थी। साथ ही कहा था कि आपस में बातचीत होती रही तो देश के लिए कुछ अच्छा कर सकेंगे। दरअसल, केंद्र की सत्ता पर एनडीए में शामिल घटक दलों के साथ भाजपा काबिज है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए देश के तमाम विपक्षी दल अपनी एकजुटता दिखाने में लगे हैं।
विपक्षी एकता की ताकत को दिखाने के लिए पटना में बड़े स्तर पर बैठक हुई है। इधर, बिहार में लोग 2008 में शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' के के संपादकीय लेख को भी याद कर रहे हैं, जब बाल ठाकरे ने बिहारियों को 'गोबर का कीड़ा' कहा था। उन्होंने बिहारियों के लिए एक संज्ञा दी थी। अपने पत्र में लिखा था कि 'एक बिहारी सौ बीमारी'। साथ ही आरोप लगाया था कि बिहार में भ्रष्टाचार की गंगा बहती है।
इसी वजह से ही गंगा मैली हो गई है। वहां गरीबी, भूख, बेरोजगारी और जातिवाद के साथ अराजक स्थिति है। भले ही ये बातें पुरानी हो गई हैं। पर समय-समय पर बाहर आ ही जाती हैं। आज इन बातों की चर्चा करने की एक बड़ी वजह है 'राजनीति'। हालांकि अब उन्हें या उनकी पार्टी को अब उत्तर भारतीयों या बिहारियों से कोई परेशानी नहीं है। वो अब सबके साथ मिलकर चलना चाहते हैं।