आंदोलनरत किसानों का उत्साहवर्धन कर रहे लोक गायक
By भाषा | Updated: December 23, 2020 17:52 IST2020-12-23T17:52:45+5:302020-12-23T17:52:45+5:30

आंदोलनरत किसानों का उत्साहवर्धन कर रहे लोक गायक
(कुणाल दत्त)
नयी दिल्ली, 22 दिसंबर टीकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन स्थल पर हरियाणा की तरफ प्रतिदिन लोक गायक गीतों के माध्यम से संघर्ष की कहानियां बयां कर रहे हैं और प्रदर्शनकारी किसानों का उत्साहवर्धन कर रहे हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग पर छोटी सी जगह में एक अस्थायी मंच बनाया गया है, जहां हरियाणवी गायकों का समूह प्रतिदिन अपने गीत प्रस्तुत करता है।
हिसार से आए स्थानीय लोक कलाकार रामदिया कोट प्रदर्शन स्थल पर पिछले 10 दिन से अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं।
सोमवार शाम को उन्होंने अपने प्रेरणास्रोत जाट मेहर सिंह द्वारा लिखा गया हरियाणवी गीत “किसान” प्रस्तुत किया था।
अन्य कलाकारों ने ‘गढ़वा’ (मिट्टी के पात्र), ‘पट्टा’ (चमड़े का टुकड़ा) इत्यादि बजाकर उनका साथ दिया।
रामदिया ने कहा, “किसी भी आंदोलन में कला और संगीत ने अहम भूमिका निभाई है। हरियाणा से आए हम कलाकार किसानों के समर्थन में खड़े हैं। हम भी किसानों की संतान हैं। हम सभी हैं, क्योंकि वे देश का पेट भरते हैं। और आज उन्हें अपने ही देश में धरने पर बैठना पड़ रहा है। सरकार को उनकी बात सुननी चाहिए।”
उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, “जाट मेहर सिंह ने जब जमींदारों के दमन के खिलाफ गीत लिखे थे तब उन्होंने भविष्य देख लिया था कि अन्य शोषण करने वाले खेती की जमीन ले जाएंगे। उनके गीत हमें प्रेरणा देते हैं और हम अपने गाने से प्रदर्शन कर रहे किसानों को प्रेरित करना चाहते हैं।”
इस कार्यक्रम के आयोजकों में से एक प्रदीप दलाल ने कहा, “हम झज्जर जिले के बहादुरगढ़ तहसील के दलाल खाप के हैं और हम आंदोलनरत किसानों का समर्थन कर रहे हैं।”
उन्होंने कहा, “आंदोलन की शुरुआत से ही कलाकार यहां अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। वे बारी-बारी से गाते हैं। एक जगह पर बैठने से मनुष्य में अरुचि पैदा हो जाती है, इसलिए वे किसानों का मनोरंजन कर रहे हैं।”
अमित कौशिक और जोगिंदर कौशिक नामक दो भाई पिछले कई दिनों से दलाल खाप के बैनर तले टीकरी बॉर्डर पर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं।
अमित कौशिक ने कहा, “कला केवल कला के लिए नहीं है, कला और कलाकार को राष्ट्र और उसके लोगों की नब्ज महसूस होनी चाहिए और उनके दर्द को भी समझना चाहिए। हम मानते हैं कि हमारी कला किसानों की सेवा करने के समान है, जिनसे हमें भोजन मिलता है।
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