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‘गुमशुदा बेटियों का पता लगाने के लिए खर्च लेने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी संभव?’

By भाषा | Updated: December 9, 2021 17:27 IST

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कोच्चि, नौ दिसंबर केरल उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह इस बात की जांच करेगा कि माता-पिता के खर्चे पर दो लड़कियों का पता लगाने के लिए दिल्ली की यात्रा करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ क्या प्राथमिकी दर्ज करके जांच शुरू की जा सकती है?

न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने अदालत को यह सुनिश्चित करने में सहायता के लिए दो वकीलों को न्याय-मित्र नियुक्त किया कि क्या उन अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है, जिन पर राष्ट्रीय राजधानी से छुड़ाई गई बेटियों की कस्टडी सौंपने के लिए कथित तौर पर माता-पिता से पांच लाख रुपये की मांग करने का आरोप है। .

अदालत ने कहा, ‘‘पीड़िता या उनके माता-पिता से पैसे लेना धन उगाही के समान है।’’

न्यायालय ने कहा, ‘‘हम सभी से कानून के अनुसार कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। हम पुलिस अधिकारियों की इस तरह की गतिविधियों को कैसे माफ कर सकते हैं? उन्हें यात्रा और ठहरने के खर्च के लिए माता-पिता या पीड़ितों से कभी भी पैसा नहीं लेना चाहिए था, यहां तक कि अग्रिम के रूप में भी नहीं।’’

अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे उदाहरण हैं जहां आपात स्थितियों में अधिकारियों को हवाई यात्रा करनी पड़ सकती है या यात्रा के लिए अपनी जेब से भुगतान करना पड़ सकता है और इसलिए, इन पहलुओं पर सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है।

अदालत ने यह टिप्पणी कोच्चि के पुलिस आयुक्त की उस रिपोर्ट पर गौर करने के बाद की, जिसमें कहा गया था कि पुलिस अधिकारियों ने रेलवे यात्रा वारंट या अग्रिम यात्रा भत्ता का लाभ नहीं उठाया, जिसके वे हकदार थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके बजाय उन्होंने (पुलिस अधिकारियों ने) माता-पिता के खर्च पर हवाई यात्रा की और कहा कि टीम में सहायक उप निरीक्षक ने बड़ी लड़की से अपने और दूसरों के रहने और खाने के खर्च के लिए 17,000 रुपये भी लिये।

रिपोर्ट में कहा गया है कि परिवार से ली गई राशि वापस या प्रतिपूर्ति की जाएगी।

रिपोर्ट पर गौर करने के बाद, न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने कहा, ‘‘अब सवाल यह उठता है कि क्या अधिकारियों के इस कदम के लिए प्राथमिकी दर्ज करने की आवश्यकता है।’’

अदालत ने कहा कि इस मामले में दंड प्रक्रिया संहिता के दायरे को समझने के लिए उसे न्याय मित्र की मदद की जरूरत होगी।

राज्य सरकार के वकील और पुलिस ने अदालत को बताया कि रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है और इसके लिए शिकायत की आवश्यकता होगी।

अदालत ने मामले को पांच जनवरी, 2022 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। उस दिन वह न्याय मित्र की दलीलें सुनेगी कि क्या इसमें शामिल अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है।

अदालत एक अखबार की रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई कर रही है। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पुलिस ने न केवल बेटियों को माता-पिता को सौंपने के लिए पांच लाख रुपये की मांग की, बल्कि उन्होंने दंपती के दो बड़े बेटों को भी अपनी ही बहनों के कथित यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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