सिनेमाटोग्राफ कानून में संशोधन के प्रस्ताव को लेकर फिल्म संस्थाओं ने सरकार को संयुक्त ज्ञापन दिया

By भाषा | Updated: July 2, 2021 20:19 IST2021-07-02T20:19:22+5:302021-07-02T20:19:22+5:30

Film organizations gave a joint memorandum to the government regarding the proposal to amend the Cinematograph Act | सिनेमाटोग्राफ कानून में संशोधन के प्रस्ताव को लेकर फिल्म संस्थाओं ने सरकार को संयुक्त ज्ञापन दिया

सिनेमाटोग्राफ कानून में संशोधन के प्रस्ताव को लेकर फिल्म संस्थाओं ने सरकार को संयुक्त ज्ञापन दिया

मुंबई, दो जुलाई सरकार द्वारा प्रस्तावित सिनेमाटोग्राफ (संशोधन) कानून के प्रस्ताव पर सरकार द्वारा सलाह/टिप्पणी मांगे जाने के बाद फिल्म उद्योग से जुड़े छह एसोसिएशनों ने शुक्रवार को केन्द्र सरकार को अपने विचार सौंपे और कुछ बिन्दुओं पर आपत्ति जतायी।

केन्द्र सरकार ने सिनेमाटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2021 के मसौदे पर 18 जून को जनता से सलाह/टिप्पणियां मांगी हैं। संशोधन में फिल्म पाइरेसी के लिए जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान, उम्र आधारित प्रमाणपत्र जारी करने का नियम लागू करने और शिकायत प्राप्त होने की स्थिति में पहले से प्रमाणपत्र पा चुकी फिल्मों को दोबारा प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार केन्द्र सरकार को देने की बात प्रमुख है।

तमाम अभिनेताओं और फिल्म निर्माताओं सहित इंडस्ट्री के अनुभवी लोगों ने इस प्रस्ताव को ‘‘फिल्म जगत के लिए बड़ा झटका’’ बताया है और उन सभी का मानना है कि इससे उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा होगा और सभी ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को लिखे पत्रों में अपनी-अपनी आपत्ति भी जतायी है।

प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (पीजीआई), इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन प्रोड्यूसर्स काउंसिल (आईएफटीपीसी), इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (आईएमपीपीए), वेस्टर्न इंडिया फिल्म प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (डब्ल्यूआईएफपीए), फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज (एफडब्ल्यूआईसीई) और इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन डायरेक्टर्स एसोसिएशन (आईएफटीडीए) सहित छह संस्थाओं ने सरकार को अपने विचारों से अवगत कराया है।

आईएफटीडीए के अध्यक्ष फिल्म निर्माता अशोक पंडित ने कहा कि मनोरंजन उद्योग को ‘‘बलि का बकरा’’ नहीं बनाया जाना चाहिए और तमाम शक्तियां/अधिकारी सीबीएफसी (सेंसर बोर्ड) के पास ही रहनी चाहिए।

पंडित ने पीटीआई/भाषा को बताया, ‘‘सेंसर बोर्ड भारत के संविधान के तहत काम करता है... मनोरंजन उद्योग बलि का बकरा नहीं बनना चाहता है। सीबीएफसी में तमाम क्षेत्रों से लोग शामिल हैं और वही फिल्मों के प्रमाणपत्र से जुड़ा फैसला लेते हैं। जरुरत होने पर लोग इसे संबंध में अदालत जा सकते हैं।’’

उच्चतम न्यायालय द्वारा 2020 के एक फैसले में ‘‘पुनरीक्षा अधिकारों को असंवैधानिक’’ बताए जाने का संदर्भ देते हुए एसोसिएशन ने कहा कि न्यायालय ने यह कहा था कि ‘‘समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों का विचार किसी फिल्म को लेकर अलग-अलग हो सकता है, और यह सिर्फ विचारों में भिन्नता के कारण होगा, ऐसे में केन्द्र सरकार द्वारा समीक्षा या फिर से फैसला लेने का कोई आधार नहीं बनता है।’’

संस्थाओं के संयुक्त ज्ञापन के अनुसार, ‘‘रेखांकित करने योग्य बात यह है कि, कानून के प्रावधान छह में से जिन हिस्सों को हटाया गया है उनमें भले ही साफ-साफ ना लिखा हो लेकिन यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (2) से इतर नहीं जा सकता है और केन्द्र सरकार पुनरीक्षा अधिकारों के आधार के संबंध में एकमात्र यही स्पष्टीकरण दे सकती है।’’

उसमें कहा गया है, ‘‘ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसे अधिकार के उपयोग के संबंध में अन्य कोई भी स्पष्टीकरण या तरीके को अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत प्रदत अधिकारों का उल्लंघन मानकर उन्हें निरस्त कर दिया जाता। यही वह अधिकार है जिसके आधार पर सभी निर्माताओं को फिल्में बनाने का अधिकार प्राप्त है।’’

ज्ञापन में कहा गया है कि बात जब फिल्म को प्रमाणपत्र देने और नहीं देने की आती है, सीबीएफसी को अनिवार्य रूप से फिल्म की समीक्षा करनी होती है और इस निष्कर्ष पर पहुंचना पड़ता है उसकी सामग्री कानून के प्रावधान 5बी(1) में तय मानकों के खिलाफ ना पड़े।

सिनेमाटोग्राफ कानून का प्रावधान 5बी(1) में कहा गया है... एक फिल्म को सार्वजनिक प्रसारण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए अगर... प्रमाणपत्र देने की अधिकारी संस्था के विचार में... फिल्म या फिल्म का कोई भी हिस्सा राज्य की सुरक्षा 19 (भारत की सम्प्रभुता और अखंडता) के हित के खिलाफ, विदेशों के साथ मित्रवत संबंधों, जन-व्यवस्था, शील और नैतिकता के खिलाफ हो, या उसमें मानहानि, अदालत की अवमानना हो या फिर उससे किसी प्रकार का अपराध होने का भय हो।

बयान में कहा गया है कि ऐसी परिस्थितियों में सिर्फ अदालत ही सीबीएफसी के फैसले को पलट या बदल सकती है कोई ‘‘प्रशासनिक, कार्यपालिका या नौकरशाही’’ इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकती है।

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Web Title: Film organizations gave a joint memorandum to the government regarding the proposal to amend the Cinematograph Act

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