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कृषि कानूनों पर किसानों ने सरकार का प्रस्ताव खारिज किया, देशभर में तेज होगा आंदोलन, विपक्षी नेता राष्ट्रपति से मिले

By अनुराग आनंद | Updated: December 10, 2020 07:49 IST

किसान संगठनों के नेताओं मुताबिक उत्तर भारत के सभी किसानों के लिये 14 दिसंबर को ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान किया गया है, जबकि दक्षिण भारत में रहने वाले किसानों से जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन के लिये कहा गया है।

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ठळक मुद्देशिरोमणि अकाली दल ने आरोप लगाया कि केंद्र ने ‘‘नयी बोतल में पुरानी शराब’’ की तरह प्रस्ताव दिया और किसानों ने इसे ठुकराकर सही किया।किसान नेताओं ने कहा कि वे 14 दिसंबर को भाजपा के मंत्रियों, पार्टी के जिला कार्यालयों का घेराव करेंगे और पार्टी के नेताओं का बहिष्कार करेंगे।

नयी दिल्ली: किसान नेताओं ने नए कृषि कानूनों में संशोधन करने के सरकार के प्रस्ताव को बुधवार को खारिज कर दिया और कहा कि वे शनिवार को जयपुर-दिल्ली और दिल्ली-आगरा एक्सप्रेस-वे को बंद करेंगे तथा आंदोलन को तेज करते हुए 14 दिसंबर को राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करेंगे। सरकार और किसान संगठनों के नेताओं के बीच बुधवार को होने वाली छठे दौर की बातचीत को रद्द कर दिया गया था, लेकिन दोनों पक्षों ने कहा है कि वे वार्ता के लिए तैयार हैं।

किसान नेता शिव कुमार कक्का ने संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार के प्रस्ताव में कुछ भी नया नहीं है और ‘संयुक्त किसान समिति’ ने बुधवार को अपनी बैठक में इसे “पूरी तरह खारिज” कर दिया। किसान संगठनों के नेताओं ने प्रस्ताव को देश के किसानों का “अपमान” करार दिया। हालांकि, उन्होंने कहा कि सरकार अगर वार्ता के लिये नया प्रस्ताव भेजती है तो वे उस पर विचार कर सकते हैं। इस बीच, बुधवार को राहुल गांधी, शरद पवार समेत पांच विपक्षी नेताओं ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की।

विपक्षी नेताओं ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने का अनुरोध किया। विपक्षी दलों के पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार, माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा के महासचिव डी राजा, और डीएमके नेता टीकेएस इलंगोवान शामिल थे। राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद राहुल गांधी ने संवाददाताओं से कहा, '' हमने राष्ट्रपति से मुलाकात की और उन्हें तीन कृषि कानूनों के संबंध में हमारे विचारों से अवगत कराया। हमने इन्हें निरस्त किए जाने का अनुरोध किया।

हमने राष्ट्रपति को बताया कि इन कानूनों को वापस लिया जाना बेहद महत्वपूर्ण है।'' राकांपा प्रमुख शरद पवार ने कहा कि विभिन्न राजनीतिक दलों ने राष्ट्रपति से अुनरोध किया कि ये कृषि कानून निरस्त किए जाने चाहिए क्योंकि इन पर ना ही संसद की प्रवर समिति में चर्चा की गई और ना ही अन्य पक्षकारों के साथ विचार-विमर्श किया गया। येचुरी ने कहा, '' हमने राष्ट्रपति को बताया कि तीन कृषि कानून अलोकतांत्रिक तरीके से संसद में पारित किए गए और कानूनों को वापस लिए जाने का अनुरोध किया।''

किसान संगठनों के नेताओं मुताबिक उत्तर भारत के सभी किसानों के लिये 14 दिसंबर को ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान किया गया है, जबकि दक्षिण भारत में रहने वाले किसानों से जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन के लिये कहा गया है। शिरोमणि अकाली दल ने आरोप लगाया कि केंद्र ने ‘‘नयी बोतल में पुरानी शराब’’ की तरह प्रस्ताव दिया और किसानों ने इसे ठुकराकर सही किया। किसान नेताओं ने कहा कि वे 14 दिसंबर को भाजपा के मंत्रियों, पार्टी के जिला कार्यालयों का घेराव करेंगे और पार्टी के नेताओं का बहिष्कार करेंगे।

नये कृषि कानूनों पर केंद्रीय गृह मंत्री के, किसानों के 13 प्रतिनिधियों से मुलाकात करने के एक दिन बाद बुधवार को केंद्र की तरफ से किसानों को प्रस्ताव भेजा गया था। प्रस्ताव में सरकार ने कहा था कि वह वर्तमान में लागू न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था को जारी रखने के लिए ‘‘लिखित में आश्वासन’’ देने को तैयार है। किसान नेता दर्शन पाल ने कहा कि किसानों ने कानून में प्रस्तावित संशोधन को खारिज कर दिया है क्योंकि वे कानूनों को निरस्त किये जाने से कम कुछ नहीं चाहते। उन्होंने कहा कि नए मसौदा में कुछ भी नया नहीं है, जो केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर किसान नेताओं के साथ अपनी पूर्व की बैठकों में नहीं कहा हो।

उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारी किसान 14 दिसंबर को राष्ट्रीय राजधानी के सभी राजमार्गों को बंद करेंगे और जिला मुख्यालयों के साथ ही भाजपा के जिला कार्यालयों का भी घेराव करेंगे। किसान नेता शिव कुमार कक्का ने कहा कि अगर तीन कृषि कानून रद्द नहीं किये गए तो किसान दिल्ली की तरफ आने वाले सभी रास्तों को एक-एक कर बंद करेंगे। उन्होंने कहा कि किसान संगठनों में कोई मतभेद नहीं है, जैसा कि मीडिया का एक धड़ा (मतभेद) दिखा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘हमने सर्वसम्मति से फैसला लिया। यह सर्वसम्मत फैसला है, ना कि बहुमत का...ऐसा नहीं हो सकता कि कुछ लोग इस पर सहमत हो, कुछ लोग नहीं हो। अगर सभी संगठनों ने कहा कि कानून को वापस लिया जाना चाहिए तो यह हमारा फैसला है...निजी राय का सवाल ही नहीं उठता है।’’

किसान नेता जंगवीर सिंह ने कहा, “हम अडानी और अंबानी के स्वामित्व वाले प्रतिष्ठानों व सेवाओं का बहिष्कार करेंगे।” कृषि मंत्रालय में संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल की तरफ से भेजे गए मसौदा प्रस्ताव में सरकार की तरफ से कहा गया है कि नये कृषि कानूनों को लेकर किसानों की जो आपत्तियां हैं, उन पर सरकार खुले दिल से विचार करने के लिए तैयार है। इसमें, हालांकि नये कृषि कानूनों को रद्द करने संबंधी प्रदर्शनकारी किसानों की मुख्य मांग का कोई उल्लेख नहीं है। गृह मंत्री के साथ किसानों की कल हुई बैठक में भी गतिरोध दूर नहीं हो पाया था।

सरकार इन कानूनों को किसान हितैषी बताकर उन्हें बरकरार रखने पर अड़ी है। गृह मंत्री के साथ हुई बैठक के बारे में कक्का ने दावा किया, ‘‘जब हमने अमित शाह से पूछा कि सरकार ने तीनों कानून बनाने के पहले किसानों के साथ विचार-विमर्श क्यों नहीं किया, तो उन्होंने माना कि कुछ भूल हुई थी।’’ भारतीय किसान यूनियन (दकौंदा) के महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा कि ‘‘हम केंद्र सरकार को एक जवाब भेजने पर विचार कर रहे हैं ।’’

शिरोमणि अकाली दल ने बुधवार को भाजपा के नेतृत्व वाली ‘‘केंद्र सरकार को बेकसूर किसानों के साथ खिलवाड़ बंद करने को कहा और बिना शर्त तुरंत तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की। शिरोमणि अकाली दल ने कहा, ‘‘ केंद्र की तरफ से दिया गया प्रस्ताव और कुछ नहीं बल्कि देरी करने और भटकाने का हथकंडा है, जिसे किसान पहले ही खारिज कर चुके हैं।’’ शिरोमणि अकाली दल के नेता विक्रम सिंह मजीठिया ने कहा कि केंद्र के प्रस्ताव में कुछ भी नया नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘यह दुखद है कि देश के अन्नदाता अपने परिवार के थ पिछले 14 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं।’’ 

(एजेंसी इनपुट)

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