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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को गन्ना तुलवाने के लिए करना पड़ रहा है लंबा इंतजार

By भाषा | Updated: March 7, 2021 16:56 IST

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(जतिन ठक्कर एवं किशोर द्विवेदी)

मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश), सात मार्च एक ओर किसान केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 100 से अधिक दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन में भाग नहीं ले रहे किसानों को ट्रैक्टर ट्रॉलियों में पड़े कई क्विंटल गन्ने को केवल तुलवाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है।

कुछ किसान मौजूदा प्रदर्शन के बारे में बातचीत करके, कुछ किसान बीड़ी और सिगरेट सुलगाकर और कुछ किसान पंजाबी एवं हरियाणवी गाने सुनकर अपना समय काट रहे हैं, लेकिन सभी के चेहरे पर चिलचिलाती धूप में सूख रहे उनके गन्ने को लेकर चिंता साफ नजर आती है।

धामपुर चीनी मिल से मात्र दो किलोमीटर दूर यहां बुढाना तहसील में भोपड़ा कांटे के निकट खाली खेत में करीब 100 ट्रैक्टर ट्रॉली देखी जा सकती हैं, जिनमें से हर वाहन पर औसतन 300 क्विंटल गन्ना लदा है। ये वाहन औसतन करीब तीन दिन से गन्ना तुलवाने का इंतजार कर रहे हैं।

कुतबा गांव के रोहित बालयान ने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा, ‘‘मैं कांटे पर दो दिन से इंतजार कर रहा हूं और ऐसा लगता है कि मुझे अपनी फसल चीनी मिल ले जाने से पहले और दो दिन का इंतजार करना होगा।’’

बालयान (21) ने कहा, ‘‘कांटे पर लंबे एवं थकाऊ इंतजार से किसानों को नुकसान हो रहा है, क्योंकि सूरज के नीचे गन्ना सूखने लगता है और जब तक गन्ना तुलवाने का नंबर आता है, जब तक वजन भी थोड़ा कम हो जाता है।’’

एशिया की सबसे बड़ी गुड़ मंडी मुजफ्फरनगर की एक चीनी मिल के अधिकारी ने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा कि लंबे इंतजार के बाद वजन में केवल कुछ किलोग्राम की कमी आती है लेकिन किसानों का तर्क है कि उनके लिए यह नुकसान बहुत बड़ा है, क्योंकि उनकी कमाई हजारों रुपए कम हो जाती है।

मिल मालिकों का कहना है कि किसानों ने मिलों की क्षमता से अधिक गन्ना उगाया है, जिसके कारण उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ रहा है और क्षेत्र में कांटों की कमी भी इसका कारण है। उनका यह भी कहना है कि क्षेत्र में चीनी का उत्पादन बाजार में मांग से अमूमन अधिक होता है और इसलिए उन्हें अपने प्रसंस्करण सुविधाएं और बढ़ाने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं दिया जाता।

किसानों का कहना है कि गन्ना मिलें 325 प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीद रही हैं, जो कि सरकार के तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 385 रुपए से कम है।

काकड़ा गांव के अनुज तोमर ने कहा, ‘‘हमें एमएसपी भी नहीं मिल रहा और हमें कांटे पर भी कई दिनों तक इंतजार करना पड़ रहा है। दो दिनों बाद गन्ना सूखना शुरू हो जाता है और इसका अर्थ वजन में कमी आना और हमारी आमदनी कम होना है।’’

तोमर (25) अपने परिवार की 27 बीघा जमीन पर पैदा गन्ने को तुलवाने के लिए कई दिनों से कतार में खड़े हैं।

किसानों के अलावा, वे लोग भी कांटे पर इंतजार कर रहे हैं, जिनकी अपनी जमीन नहीं है, लेकिन वे वजन तुलवाने के बाद मिलों तक गन्ने की ढुलाई का कारोबार करते हैं और इस समय इंतजार में बर्बाद हो रहे समय का मतलब उनके लिए भी पैसे का नुकसान है।

हरसोली गांव0 निवासी मुकीम (35) ने कहा कि वह क्षेत्र के कई लोगों की तरह ढुलाई के लिए अपने ट्रैक्टर ट्रॉला (गन्नों की ढुलाई के लिए इस्तेमाल होने वाली अपेक्षाकृत बड़ी ट्रॉली) का इस्तेमाल करते हैं और उन्हें मिलों से प्रति क्विंटल 12 रुपए क्विंटल का भुगतान होता है।

मुकीम ने कहा, ‘‘मैं तीन दिन से यहां खड़ा हूं। मेरे ट्रॉला पर 300 क्विंटल गन्ना लदा है। यदि हम इसे जल्द तुलवा लेते हैं, तो मैं और फेरियां लगाकर और पैसे कमा सकता हूं।’’

कांटे पर ओसिका गांव के राजू त्यागी (23) और केथल गांव के सलीम (23) जैसे लोग भी इंतजार कर रहे हैं, जो दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों का पूरा समर्थन करते हैं। त्यागी और सलीम ने कहा कि वे गन्ने की ढुलाई का काम करते हैं और कांटे पर लंबे इंतजार से परेशान हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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