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कोयले के विस्तार से अगले दशक में दिल्ली में समय से पहले मृत्यु का आंकड़ा दोगुना होने की आशंका: अध्ययन

By भाषा | Updated: September 29, 2021 17:07 IST

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नयी दिल्ली, 29 सितंबर भारत की अपने कोयला बेड़े को 64 गीगावाट तक करने की योजना है और एक नये अध्ययन में दावा किया गया है कि अगर ऐसा होता है तो दिल्ली में कोयले के कारण होने वाले वायु प्रदूषण की वजह से अगले दशक में समय से पहले होने वाली मृत्यु का आंकड़ा लगभग दोगुना होकर 5,280 पर पहुंच जायेगा।

जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को उठाने के लिए प्रतिबद्ध दुनिया के मेगासिटीज के एक नेटवर्क ‘सी40 सिटीज’ की रिपोर्ट में दावा किया गया है समय से पहले होने वाली मौतों के अलावा, मौजूदा विस्तार से अगले दशक में समय से पूर्व प्रसव के 8,360 सामने आ सकते है और अस्थमा के 10,310 आपात मामलों का कारण बन सकते है।

भारत की कोयला आधारित बिजली का बारह प्रतिशत राष्ट्रीय राजधानी के 500 किलोमीटर के भीतर उत्पन्न होता है।

अध्ययन में कहा गया है कि यदि कोयला क्षमता का वर्तमान प्रस्तावित विस्तार होता है तो दिल्ली में कोयला बिजली संयंत्रों से वायु प्रदूषण के जोखिम के कारण लगभग 55 लाख बीमार दिन हो सकते हैं।

आने वाले दशक में दिल्ली में कोयला प्रदूषण से जुड़ी आर्थिक स्वास्थ्य लागत 8.4 अरब डॉलर आंकी गई है ।एक अरब 100 करोड़ के बराबर होता है।

इसमें कहा गया है, ‘‘दिल्ली में वायु प्रदूषण (पीएम2.5 वार्षिक सांद्रता) विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देशों से नौ गुना अधिक है, और राष्ट्रीय दिशानिर्देश से दोगुने से अधिक है। वर्तमान राष्ट्रीय योजनाएं 2020 और 2030 के बीच कोयले के बेड़े में 28 प्रतिशत का विस्तार करेंगी और यह इसे 20 प्रतिशत तक कम नहीं करेंगी, जिससे भारत के जलवायु और वायु गुणवत्ता लक्ष्य प्रभावित होते हुए दिल्ली में शहरी निवासियों के स्वास्थ्य और कल्याण को खतरा होगा।’’

सी40 में अनुसंधान प्रमुख डॉ राहेल हक्सले ने कहा, ‘‘मौजूदा राष्ट्रीय योजनाएं शहर में कोयला बिजली संयंत्रों के वायु प्रदूषण से होने वाली वार्षिक अकाल मौतों की संख्या को लगभग दोगुना कर सकती हैं।’’

अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि कैसे कोयला संयंत्रों को बंद करने से दिल्ली में लोगों की जान बचेगी, लागत में कमी आएगी और रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

सी40 की दक्षिण और पश्चिम एशिया की क्षेत्रीय निदेशक श्रुति नारायण ने कहा, ‘‘स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन न केवल भारतीय शहरों के लिए वायु प्रदूषण को कम करने, उनके निवासियों के स्वास्थ्य में सुधार और उनके जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण है, जो पेरिस समझौते से जुड़ा हुआ है, बल्कि रोजगार पैदा करने के लिए भी है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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