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भोपाल गैस त्रासदी के 37 साल बाद भी पीड़ितों को अब तक पर्याप्त मुआवजे का इंतजार

By भाषा | Updated: December 2, 2021 22:30 IST

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भोपाल, दो दिसंबर दुनिया की भीषण औद्योगिक आपदा, भोपाल गैस त्रासदी के 37 साल गुजर जाने के बाद पीड़ितों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन ने कहा है कि पीड़ित और उनके परिजन अभी भी उचित मुआवजे की प्रतीक्षा कर रहे हैं। संगठन ने दावा किया कि प्रत्येक पीड़ित को अब तक जो सहायता (निपटान) राशि दी गई वह आवंटित राशि के पांचवें हिस्से से भी कम है और यह एक दिखावा है।

भोपाल में दो और तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात को यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक संयंत्र से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट के रिसाव से तीन हजार से अधिक लोग मारे गए थे और 1.02 लाख लोग अन्य प्रभावित हुए थे। हालांकि बाद में प्रभावितों की संख्या बढ़कर 5.70 लाख से अधिक हो गई।

मध्य प्रदेश के भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास मंत्री विश्वास सारंग ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘ 1984 में मध्य प्रदेश और केंद्र में कांग्रेस सत्ता में थी। दोनों सरकारों ने पीड़ितों के मामले को सही तरीके से नहीं रखा ताकि उन्हें अधिक मुआवजा मिल सके।’’

भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति (बीजीपीएसएसएस) के सह-संयोजक एनडी जयप्रकाश ने कहा, ‘‘ उच्चतम न्यायालय ने 14-15 फरवरी, 1989 को 705 करोड़ रुपऐ की राशि के निपटान इस आधार पर किया कि केवल लगभग 3000 पीड़ितों की मृत्यु हुई थी और अन्य 102,000 लोगो को अलग-अलग तरह के अस्वस्थता के परिणाम भुगतने पड़े। उन प्रत्येक गैस पीड़ित को जो सहायता (निपटान) राशि दी गई वह आवंटित राशि के पांचवें हिस्से से भी कम है जो एक दिखावा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन पीड़ितों की संख्या बढ़कर 5.73 लाख हो गई और यह राशि उनके बीच बांट दी गई। इसलिए, प्रत्येक पीड़ित को मुआवजे का पांचवां हिस्सा मिला।’’

उन्होंने कहा कि 14 -15 फरवरी, 1989 के अन्यायपूर्ण निपटारे के खिलाफ लंबे समय से लंबित पुनरीक्षा याचिका की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की विफलता का गैस पीड़ितों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

जयप्रकाश ने कहा कि पुनरीक्षा याचिका भारत सरकार द्वारा तीन दिसंबर 2010 को मुआवजे के रुप में कम से कम 7,724 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि की मांग करने के लिए दायर किया गया था और 29 जनवरी, 2020 को अदालत की संविधान पीठ के समक्ष अंतिम बार मुआवजे के रूप में 7,724 करोड़ रुपये सूचीबद्ध किए गए थे। हालांकि, सुनवाई 11 फरवरी, 2020 तक के लिए स्थगित कर दी गई थी। अफसोस की बात है कि इस मामले को उस तारीख पर या उसके बाद से कभी सूचीबद्ध नहीं किया गया था।

एक स्थानीय अदालत ने सात जून 2010 को यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के सात अधिकारियों को घटना के सिलसिले में दो साल की कारावास की सजा सुनाई थी। तत्कालीन यूसीसी अध्यक्ष वारेन एंडरसन मामले में मुख्य आरोपी था, लेकिन मुकदमे के लिए उपस्थित नहीं हुआ और एक फरवरी 1992 को भोपाल सीजेएम कोर्ट ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया था। वर्ष 2014 में अमेरिका में उसका निधन हो गया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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