एल्गार परिषद मामला : सुधा भारद्वाज की जमानत के खिलाफ एनआईए की याचिका खारिज

By भाषा | Updated: December 7, 2021 21:34 IST2021-12-07T21:34:55+5:302021-12-07T21:34:55+5:30

Elgar Parishad case: NIA's plea against Sudha Bharadwaj's bail dismissed | एल्गार परिषद मामला : सुधा भारद्वाज की जमानत के खिलाफ एनआईए की याचिका खारिज

एल्गार परिषद मामला : सुधा भारद्वाज की जमानत के खिलाफ एनआईए की याचिका खारिज

नयी दिल्ली, सात दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में वकील-सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को जमानत देने के बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की अपील मंगलवार को खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने एनआईए की दलीलों पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘हमें उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है।’’

एनआईए ने भारद्वाज को जमानत देने के उच्च न्यायालय के एक दिसंबर के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दायर की थी। भारद्वाज को अगस्त 2018 में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून के प्रावधानों के तहत एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में गिरफ्तार किया गया था।

शीर्ष अदालत भारद्वाज को डिफ़ॉल्ट (स्वत:) जमानत देने के बॉम्बे ‍उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली एनआईए की याचिका पर तत्काल सुनवाई करने के लिए सोमवार को सहमत हो गई थी।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने की आरोपी कार्यकर्ता-वकील जमानत की हकदार हैं और इससे इनकार करना उनके जीवन के मौलिक अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा।

इसने निर्देश दिया था कि भायखला महिला जेल में बंद भारद्वाज को आठ दिसंबर को मुंबई की विशेष एनआईए अदालत में पेश किया जाए और उनकी जमानत की शर्तें एवं रिहाई की तारीख तय की जाए।

उच्च न्यायालय ने डिफ़ॉल्ट जमानत देते हुए कहा था कि एनआईए को चार्जशीट दाखिल करने के लिए 90 दिनों से अधिक की समय अवधि बढ़ाने के लिए पुणे के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सक्षम प्राधिकारी नहीं था, क्योंकि इसे एनआईए अधिनियम के प्रावधान के तहत विशेष अदालत के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया था।

मंगलवार को सुनवाई की शुरुआत में, एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने कहा कि उच्च न्यायालय ने आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत देकर कानून की गलत व्याख्या की है। आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत यदि जांच एजेंसी आरोपपत्र दायर नहीं करती है तो आरोपी स्वत: जमानत पाने का हकदार हो जाता है।

उन्होंने कहा कि निचली अदालत ने 26 नवंबर, 2018 को समय बढ़ाने के लिए एनआईए की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया था और उसी दिन आरोपी ने डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए याचिका दायर की थी। इस पर पीठ ने कहा, 'तो सवाल यह है कि क्या अदालत सक्षम थी। अगर अदालत सक्षम नहीं थी, तो अवधि का विस्तार वैध नहीं था और महिला वैधानिक जमानत की हकदार थी।'

पीठ ने कहा, ‘‘आपका मामला यह नहीं है कि महाराष्ट्र में विशेष अदालत नहीं है। महाराष्ट्र में विशेष अदालते हैं। इसलिए आपने यह याचिका अन्य अदालत के समक्ष क्यों लगाई?’’ पीठ ने भारद्वाज का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील की दलीलें सुने बिना ही याचिका खारिज कर दी।

मामले में गिरफ्तार किए गए 16 कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों में भारद्वाज पहली व्यक्ति हैं, जिन्हें डिफ़ॉल्ट जमानत दी गई है। कवि-कार्यकर्ता वरवर राव फिलहाल चिकित्सीय आधार पर मिली जमानत पर हैं।

रोमन कैथलिक समाज के सदस्य-पादरी स्टेन स्वामी का इस साल पांच जुलाई को यहां एक निजी अस्पताल में मेडिकल जमानत का इंतजार करते हुए निधन हो गया था। अन्य विचाराधीन कैदियों के रूप में हिरासत में हैं।

उच्च न्यायालय ने इस मामले में आठ अन्य सह-आरोपियों - सुधीर धवले, वरवर राव, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत, वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा द्वारा दायर डिफ़ॉल्ट जमानत याचिका खारिज कर दी थीं।

मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है। पुलिस ने दावा किया था कि इस सम्मेलन के कारण शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी।

पुणे पुलिस ने दावा किया था कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था। मामले की जांच बाद में एनआईए को सौंप दी गई थी।

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Web Title: Elgar Parishad case: NIA's plea against Sudha Bharadwaj's bail dismissed

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