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जेल से स्थानांतरण के आदेश पर एल्गार परिषद के आरोपियों का ‘भ्रमित’ करने वाला रुख: अदालत

By भाषा | Updated: August 6, 2021 18:58 IST

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मुंबई, छह अगस्त बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि एल्गार परिषद-माओवादी जुड़ाव मामले में गिरफ्तार कार्यकर्ताओं ने नवी मुंबई की तलोजा जेल में सुविधाओं की कमी के बारे में लगातार शिकायत की थी, लेकिन अब वे एक विशेष अदालत के आदेश का विरोध कर रहे हैं जिसमें उन्हें अन्य जेलों में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया है।

न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति एनजे जामदार की पीठ ने कहा कि यह स्थिति ‘भ्रम’ पैदा करने वाली और ‘‘विरोधाभासी’ लगती है। पीठ ने गिरफ्तार कार्यकर्ताओं महेश राउत, आनंद तेलतुम्बडे, सुरेंद्र गाडलिंग और सुधीर धवले की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

याचिकाकर्ताओं ने राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के मामलों की सुनवाई करने वाली विशेष अदालत के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि तलोजा जेल अधिकारियों ने 10 आरोपियों (सभी पुरुष) को राज्य की अन्य जेलों में स्थानांतरित करने के अनुरोध को मंजूरी दे दी है।

राउत के वकील विजय हिरेमठ ने उच्च न्यायालय को बताया कि राउत को तलोजा जेल से मुंबई सेंट्रल जेल में स्थानांतरित किया जाना था। अधिवक्ता आर सत्यनारायणन ने अदालत को बताया कि वह तेलतुम्बडे, गाडलिंग और धवले का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जिन्होंने राउत की तरह ही राहत के लिए याचिकाएं दाखिल की हैं।

इस सप्ताह की शुरुआत में, राउत के साथ-साथ शिक्षाविद आनंद तेलतुम्बडे की पत्नी रमा तेलतुम्बडे और वकील सुरेंद्र गाडलिंग की पत्नी मीनल गाडलिंग तथा कार्यकर्ता सुधीर धवले के मित्र शरद गायकवाड़ ने स्थानांतरण आदेशों को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की थी, जिसमें कहा गया था कि विचाराधीन कैदी के रूप में अपने अधिकारों की मांग करने के कारण उन्हें दंडित किया जा रहा है।

इस साल की शुरुआत में तलोजा जेल अधिकारियों ने एल्गार परिषद मामले के सभी 10 पुरुष आरोपियों को राज्य की अन्य जेलों में इस आधार पर स्थानांतरित करने की अनुमति का अनुरोध किया था कि वे अपने वकीलों और परिजनों के माध्यम से जेल प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए ‘‘झूठी शिकायत’’ कर रहे थे। विशेष एनआईए न्यायाधीश डी.ई. कोठालीकर ने एक अप्रैल को स्थानांतरण अनुरोध की अनुमति दी, हालांकि आदेश अभी तक लागू नहीं हुआ है।

याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय में अपनी दलीलों में कहा है कि विशेष अदालत के आदेश ने आरोपियों को ‘‘राज्य की किसी अन्य अनिर्दिष्ट जेल’’ में स्थानांतरित करने की अनुमति दी, जो कानून की उचित प्रक्रिया के विपरीत है।

पीठ ने शुक्रवार को कहा, ‘‘भीमा कोरेगांव के इस पूरे मामले (एल्गार परिषद-माओवादी जुड़ाव मामला) के दौरान आपलोगों (आरोपियों) द्वारा आरोप लगाया गया है कि तलोजा जेल में भीड़भाड़ है, जेल अधिकारी सुविधाएं नहीं दे रहे हैं, तरह-तरह के आरोप लगाए गए।’’

पीठ ने कहा, ‘‘यह बहुत भ्रमित करने वाला है। हर समय आप शिकायत करते रहे हैं, लेकिन अब आप वहीं रहना चाहते हैं। आप कहते रहे तलोजा जेल की हालत खराब है, भीड़भाड़ है। अब (आरोपियों को) वहां से स्थानांतरित करने के खिलाफ अनुरोध किया जा रहा है। यह विरोधाभासी प्रतीत होता है।’’

उच्च न्यायालय ने मामले को 11 अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है, लेकिन तब तक स्थानांतरण आदेश की तामील पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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