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समानांतर या नायक के किरदारों में बंधना पसंद नहीं है: दिव्येंदु

By भाषा | Updated: November 7, 2020 19:01 IST

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मुंबई, सात नवंबर अभिनेता दिव्येंदु का कहना है कि एक कलाकार के तौर पर वह अपनी ऊर्जा का उपयोग अपने किरदार को समझने में करना चाहते हैं। किरदार नायक का हो या कोई समानांतर चरित्र, उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता।

लव रंजन की 2011 में आयी फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ से बॉलीवुड में पहचान बनाने वाले दिव्येंदु फिलहाल अमेजन प्राइम की सीरीज ‘मिर्जापुर’ में मुन्ना त्रिपाठी के किरदार में शानदार अदाकारी के लिए प्रशंसा बटोर रहे हैं।

37 वर्षीय अभिनेता का कहना है कि जब परतदार और दिलचस्प किरदारों की बात आती है तो वह “स्वार्थी” हो जाते हैं।

दिव्येंदु ने पीटीआई-भाषा को बताया, “एक कलाकार के तौर पर मैं बहुत स्वार्थी हूं। अगर किरदार अच्छा है तो मैं उसे समझना चाहता हूं, मुझे किरदार के नायक या सहायक समानांतर होने से फर्क नहीं पड़ता। आपको इन चीजों से परे उठने की कोशिश करनी चाहिए।”

अभिनेता का मानना है कि ओटीटी मंचों ने कलाकारों को उनके किरदारों को गहराई से समझकर निभाने का मौका दिया है।

उन्होंने कहा, “पूरी सीरीज में आठ-नौ एपिसोड होते हैं और हर किरदार को पूरा स्थान और सम्मान मिलता है। यह सिनेमा की तरह नहीं है जहां आपको दो-ढाई घंटे में फिल्म पूरी करनी होती है। ओटीटी पूरी तरह से किरदारों पर केंद्रित है।” दिव्येंदु फिलहाल अपनी नई सीरीज ‘बिच्छू का खेल’ के प्रचार में व्यस्त हैं। यह सीरीज अपराध, प्रतिशोध और राजनीति पर आधारित है।

अभिनेता ने जोर देकर कहा कि इस समय दर्शकों को अपराध और प्रतिशोध वाली कहानियां पसंद आ रही हैं।

उन्होंने कहा, “यह एक नई शैली है जिसे हम भुना रहे हैं। इस समय के लेखक और फिल्मनिर्माता उत्तर प्रदेश जैसे अन्य प्रदेशों के छोटे कस्बों से निकल कर आ रहे हैं और उनकी कहानियां उनके आसपास हो रही घटनाओं पर आधारित होती हैं । इसी वजह से उनमें वास्तविकता और गहराई होती है।”

दिव्येंदु ने कहा, “यह दुनिया मेरी दनिया से बिल्कुल अलग है लेकिन मुझे ये घटनाएं और कहानियां आकर्षित करती हैं।”

उन्होंने बताया कि ‘बिच्छू का खेल’ 18 नवंबर से आल्टबालाजी पर प्रसारित होगा और यह मिर्जापुर से बिल्कुल अलग है लेकिन दोनों में विषय को लेकर समानाताएं हैं।

उन्होंने कहा, “मेरा किरदार एकदम शांत और सौम्य है। वह दिमाग की बजाय दिल से सोचता है। यह सीरीज फिल्मी संवादों और 80-90 के दशक के संगीत के साथ एकदम अलग है।”

दिव्येंदु ने बताया, “यह एक लड़के की कहानी है जो लेखक बनना चाहता है। लेकिन एक दिन उसे पता चलता है कि उसके पिता की हत्या कर दी गई है और उसकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है। अब उसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि यह किसने और क्यों किया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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