क्या 97वां संशोधन राज्यों को सहकारी समितियों पर कानून बनाने से रोकता है: न्यायालय ने की समीक्षा

By भाषा | Updated: July 7, 2021 22:27 IST2021-07-07T22:27:29+5:302021-07-07T22:27:29+5:30

Does 97th amendment bar states from making laws on cooperatives: Court reviews | क्या 97वां संशोधन राज्यों को सहकारी समितियों पर कानून बनाने से रोकता है: न्यायालय ने की समीक्षा

क्या 97वां संशोधन राज्यों को सहकारी समितियों पर कानून बनाने से रोकता है: न्यायालय ने की समीक्षा

नयी दिल्ली, सात जुलाई उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को इस बात की समीक्षा के लिए सुनवाई शुरू की कि क्या संविधान में 97वें संशोधन ने राज्यों को सहकारी समितियों के प्रबंधन के लिए कानून बनाने की उनकी विशेष शक्ति से वंचित कर दिया है।

देश में सहकारी समितियों के प्रभावी प्रबंधन से संबंधित मुद्दों से निपटने वाले संविधान के 97वें संशोधन को दिसंबर 2011 में संसद ने पारित किया था और यह 15 फरवरी, 2012 से लागू हुआ था। संविधान में परिवर्तन के तहत सहकारिता को संरक्षण देने के लिए अनुच्छेद 19(1)(सी) में संशोधन किया गया और उनसे संबंधित अनुच्छेद 43 बी और भाग IX बी को सम्मिलित किया गया।

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ गुजरात उच्च न्यायालय के 22 अप्रैल, 2013 के उस आदेश के खिलाफ केंद्र और अन्य पक्षों की याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें अदालत ने संविधान संशोधन के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था।

पीठ ने सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा कि वह इस बात की जांच करना चाहती है कि क्या संशोधन ने सहकारिता से संबंधित कानून बनाने के संबंध में अनुच्छेद 246 (3) के तहत राज्य की विशेष शक्ति में हस्तक्षेप किया है क्योंकि यह राज्य का विषय है। वेणुगोपाल ने कहा कि संशोधन सहकारी समितियों के प्रबंधन में एकरूपता लाने के लिए किया गया था और यह उनसे संबंधित कानून लागू करने की राज्य की शक्तियों को नहीं छीनता है।

पीठ ने कहा कि अगर केंद्र एकरूपता लाना चाहता है, तो इसके लिए एकमात्र रास्ता संविधान के अनुच्छेद 252 के तहत उपलब्ध है जो दो या दो से अधिक राज्यों के लिए सहमति से कानून बनाने की संसद की शक्ति से संबंधित है।

पीठ ने कहा कि सरकार ने वास्तव में जो किया है, वह यह है कि सहकारी समिति के संबंध में कानून बनाने की राज्यों की शक्ति अब विशिष्ट नहीं रहीं। उसने कहा, "इस मामले में थोड़ा सा भी हस्तक्षेप राज्यों की शक्ति को विशिष्ट नहीं रहने देगा।’’

गुजरात स्थित एक सहकारी समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रकाश जानी ने कहा कि वह केंद्र के रुख का समर्थन करते हैं और विभिन्न राज्यों द्वारा लागू किए गए सहकारी समितियों से संबंधित कानूनों में एकरूपता लाने के लिए संसद की शक्ति का प्रयोग करके संशोधन किया गया था।

एक पक्षकार राजेंद्र के शाह की ओर से पेश वकील मासूम के शाह ने कहा कि उच्च न्यायालय का रुख सही है कि संविधान संशोधन के कुछ प्रावधानों ने संघवाद के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है क्योंकि राज्यों द्वारा इसकी पुष्टि नहीं की गई थी, जबकि यह संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत अनिवार्य है।

सुनवाई के दौरान किसी फैसले पर नहीं पहुंचा जा सका और यह बृहस्पतिवार को भी जारी रहेगी।

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Web Title: Does 97th amendment bar states from making laws on cooperatives: Court reviews

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