वैश्विक विकास पर चर्चा चुनिंदा देशों के बीच नहीं हो सकती, दायरा बड़ा, मुद्दे व्यापक हों: मोदी
By भाषा | Updated: December 21, 2020 14:40 IST2020-12-21T14:40:32+5:302020-12-21T14:40:32+5:30

वैश्विक विकास पर चर्चा चुनिंदा देशों के बीच नहीं हो सकती, दायरा बड़ा, मुद्दे व्यापक हों: मोदी
नयी दिल्ली, 21 दिसंबर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को कहा कि वैश्विक विकास पर चर्चा केवल चुनिंदा देशों के बीच नहीं हो सकती और इसका दायरा बड़ा और मुद्दे व्यापक होने चाहिए। उन्होंने विकास की रूपरेखा में मानव-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने की भी पुरजोर वकालत की।
छठे भारत-जापान संवाद सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पारंपरिक बौद्ध साहित्य और शास्त्रों के लिए एक पुस्तकालय के निर्माण का प्रस्ताव भी रखा।
उन्होंने कहा, ‘‘शत्रुता से कभी शांति हासिल नहीं होगी। विगत में, मानवता ने सहयोग के बजाय टकराव का रास्ता अपनाया। साम्राज्यवाद से लेकर विश्व युद्ध तक, हथियारों की दौड़ से लेकर अंतरिक्ष की दौड़ तक, हमने संवाद किए लेकिन उनका उद्देश्य दूसरों को नीचे खींचना था। आइये, अब हम मिलकर ऊपर उठें।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि गौतम बुद्ध की शिक्षाओं से शत्रुता को सशक्तता में बदलने की शक्ति मिलती है और उनकी शिक्षाएं हमें बड़ा दिलवाला बनाती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘वे हमें विगत से सीखने और बेहतर भविष्य बनाने की दिशा में काम करने की शिक्षा देती हैं। यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए सबसे अच्छी सेवा है।’’
मानवता को नीतियों के केंद्र में रखने की जरूरत पर बल देते हुए मोदी ने प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को अस्तित्व का मुख्य आधार बनाए जाने की वकालत की।
उन्होंने कहा, ‘‘वैश्विक विकास की चर्चा कुछ लोगों के बीच ही नहीं की जा सकती है। इसके लिए दायरे का बड़ा होना जरूरी है। इसके लिए कार्य सूची भी व्यापक होनी चाहिए। प्रगति के स्वरूप को मानव केन्द्रित दृष्टिकोण का अनुसरण करना चाहिए और वह हमारे परिवेश के अनुरूप होना चाहिए।’’
प्रधानमंत्री ने भगवान बुद्ध के आदर्शों और विचारों को, खासकर युवाओं के बीच बढ़ावा देने के लिए इस मंच की जमकर सराहना की।
मोदी ने कहा है कि खुले दिमाग के, लोकतांत्रिक और पारदर्शी समाज नवाचार के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘आज किये जाने वाले हमारे कार्य, हमारे आने वाले समय का आकार और रास्ता तय करेंगे। यह दशक और उससे आगे का समय उन समाजों का होगा, जो सीखने और साथ-साथ नव परिवर्तन करने पर उचित ध्यान देंगे। यह उज्ज्वल युवा मस्तिष्कों को पोषित करने के बारे में भी है, जिससे आने वाले समय में मानवता के मूल्यों को बढ़ावा मिलेगा। शिक्षण ऐसा होनी चाहिए जिससे नवाचार को आगे बढ़ाया जा सके। कुल मिलाकर नवाचार मानव सशक्तिकरण का मुख्य आधार है।
भारत-जापान संवाद के महत्व पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसे पृथ्वी पर सकारात्मकता, एकता और करुणा की भावना का प्रसार करना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘संवाद का उद्देश्य एक साथ चलना है। अब समय है कि हमें अपने प्राचीन मूल्यों का स्मरण करते हुए आने वाले समय के लिए तैयारी करनी होगी।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के दौरान पारंपरिक बौद्ध साहित्य और शास्त्रों के लिए एक पुस्तकालय के निर्माण का प्रस्ताव भी रखा और कहा कि यह शोध और वार्ता का एक मंच होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘आज मैं सभी पारंपरिक बौद्ध साहित्यों व शास्त्रों के लिए एक पुस्तकालय की स्थापना करने का प्रस्ताव करता हूं। हमें भारत में ऐसी एक सुविधा का निर्माण करने में खुशी होगी और इसके लिए हम उपयुक्त संसाधन प्रदान करेंगे।’’
इस पुस्तकालय में विभिन्न देशों के बौद्ध साहित्यों की डिजीटल प्रतियों को एकत्र किया जाएगा और इनका रूपांतरण करने के बाद इन्हें सभी बौद्ध भिक्षुओं और विद्वानों के लिए आसानी से उपलब्ध कराया जा सकेगा।
उन्होंने कहा कि यह पुस्तकालय न सिर्फ साहित्य का भंडार होगा बल्कि शोध और वार्ता का एक मंच भी होगा, लोगों के बीच, समाजों के बीच तथा मनुष्य और प्रकृति के बीच ‘एक वास्तविक संवाद’ का।
उन्होंने कहा, ‘‘इसके शोध के दायरे में समकालीन चुनौतियों के खिलाफ कैसे बुद्ध के संदेश आधुनिक विश्व को राह दिखा सकते हैं, यह भी शामिल होगा।’’
समकालीन चुनौतियों के रूप में प्रधानमंत्री ने गरीबी, जातीयता, चरमपंथ, लैंगिक भेदभाव, जलवायु परिवर्तन सहित अन्य विषयों का उल्लेख किया।
प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में बताया कि बुद्ध के संदेश का प्रकाश भारत से ही निकला और समस्त विश्व में फैला। उन्होंने कहा कि इस मंच ने विशेष रूप से युवाओं में भगवान बुद्ध के विचारों और आदर्शों को बढ़ावा देने की दिशा में बड़ा काम किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘ऐतिहासिक रूप से गौतम बुद्ध के संदेशों का प्रकाश भारत से दुनिया के अनेक हिस्सों तक फैला है। यह प्रकाश एक स्थान पर स्थिर नहीं रहा है। जिस नये स्थान पर यह प्रकाश पहुंचा है वहां भी बौद्ध धर्म के विचारों ने सदियों से आगे बढ़ना जारी रखा है। इस कारण बौद्ध धर्म के साहित्य और दर्शन का यह बहुमूल्य खजाना अलग-अलग देशों और भाषाओं में अनेक मठों में पाया जाता है।
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