वैश्विक विकास पर चर्चा चुनिंदा देशों के बीच नहीं हो सकती, दायरा बड़ा, मुद्दे व्यापक हों: मोदी

By भाषा | Updated: December 21, 2020 12:30 IST2020-12-21T12:30:53+5:302020-12-21T12:30:53+5:30

Discussion on global development cannot happen between select countries, scope is wide, issues should be broad: Modi | वैश्विक विकास पर चर्चा चुनिंदा देशों के बीच नहीं हो सकती, दायरा बड़ा, मुद्दे व्यापक हों: मोदी

वैश्विक विकास पर चर्चा चुनिंदा देशों के बीच नहीं हो सकती, दायरा बड़ा, मुद्दे व्यापक हों: मोदी

नयी दिल्ली, 21 दिसंबर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को कहा कि वैश्विक विकास पर चर्चा केवल चुनिंदा देशों के बीच नहीं हो सकती और इसका दायरा बड़ा और मुद्दे व्यापक होने चाहिए। उन्होंने विकास की रूपरेखा में मानव-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने की भी पुरजोर वकालत की।

छठे भारत-जापान संवाद सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पारंपरिक बौद्ध साहित्य और शास्त्रों के लिए एक पुस्तकालय के निर्माण का प्रस्ताव भी रखा।

उन्होंने कहा, ‘‘अतीत में, साम्राज्यवाद से लेकर विश्व युद्धों तक, हथियारों की दौड़ से लेकर अंतरिक्ष की दौड़ तक मानवता ने अक्सर टकराव का रास्ता अपनाया। वार्ताएं हुई लेकिन उसका उद्देश्य दूसरों को पीछे खींचने का रहा। लेकिन अब साथ मिलकर आगे बढ़ने का समय है।’’

मानवता को नीतियों के केंद्र में रखने की जरूरत पर बल देते हुए मोदी ने प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को अस्तित्व का मुख्य आधार बनाए जाने की वकालत की।

उन्होंने कहा, ‘‘वैश्विक विकास पर चर्चा सिर्फ कुछ देशों के बीच नहीं हो सकती। इसका दायरा बड़ा होना चाहिए। इसका एजेंडा व्यापक होना चाहिए। विकास का स्वरूप मानव-केंद्रित होना चाहिए। और आसपास के देशों की तारतम्यता के साथ होना चाहिए।’’

प्रधानमंत्री ने भगवान बुद्ध के आदर्शों और विचारों को, खासकर युवाओं के बीच बढ़ावा देने के लिए इस मंच की जमकर सराहना की।

मोदी ने कहा है कि खुले दिमाग के, लोकतांत्रिक और पारदर्शी समाज नवाचार के लिए सबसे उपयुक्‍त हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘यह दशक और उससे आगे का समय उन समाजों का होगा जो सीखने और नवाचार पर एक साथ ध्‍यान देंगे। नवाचार मानव सशक्तिकरण का आधार है और सीखने की प्रक्रिया में नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए।’’

भारत-जापान संवाद के महत्‍व पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसे पृथ्‍वी पर सकारात्मकता, एकता और करुणा की भावना का प्रसार करना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘संवाद का उद्देश्‍य एक साथ चलना है। अब समय है कि हमें अपने प्राचीन मूल्यों का स्‍मरण करते हुए आने वाले समय के लिए तैयारी करनी होगी।

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के दौरान पारंपरिक बौद्ध साहित्य और शास्त्रों के लिए एक पुस्तकालय के निर्माण का प्रस्ताव भी रखा और कहा कि यह शोध और वार्ता का एक मंच होगा।

उन्होंने कहा, ‘‘आज मैं सभी पारंपरिक बौद्ध साहित्यों व शास्त्रों के लिए एक पुस्तकालय की स्थापना करने का प्रस्ताव करता हूं। हमें भारत में ऐसी एक सुविधा का निर्माण करने में खुशी होगी और इसके लिए हम उपयुक्त संसाधन प्रदान करेंगे।’’

इस पुस्तकालय में विभिन्न देशों के बौद्ध साहित्यों की डिजीटल प्रतियों को एकत्र किया जाएगा और इनका रूपांतरण करने के बाद इन्हें सभी बौद्ध भिक्षुओं और विद्वानों के लिए आसानी से उपलब्ध कराया जा सकेगा।

उन्होंने कहा कि यह पुस्तकालय न सिर्फ साहित्य का भंडार होगा बल्कि शोध और वार्ता का एक मंच भी होगा, लोगों के बीच, समाजों के बीच तथा मनुष्य और प्रकृति के बीच ‘एक वास्तविक संवाद’ का।

उन्होंने कहा, ‘‘इसके शोध के दायरे में समकालीन चुनौतियों के खिलाफ कैसे बुद्ध के संदेश आधुनिक विश्व को राह दिखा सकते हैं, यह भी शामिल होगा।’’

समकालीन चुनौतियों के रूप में प्रधानमंत्री ने गरीबी, जातीयता, चरमपंथ, लैंगिक भेदभाव, जलवायु परिवर्तन सहित अन्य विषयों का उल्लेख किया।

प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में बताया कि बुद्ध के संदेश का प्रकाश भारत से ही निकला और समस्त विश्व में फैला।

उन्होंने कहा, ‘‘यह प्रकाश स्थिर नहीं रहा। हर नई जगह पहुंचा। बुद्ध की विचारधारा समय के साथ बढ़ती चली गई। यही वजह है कि विभिन्न देशों और विभिन्न भाषाओं में बौद्ध मठों में बौद्ध साहित्य मिल जाता हैं।

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