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कृषि कानूनों को लेकर किसानों एवं सरकार के बीच मतभेद वार्ता से सुलझ सकते हैं: विशेषज्ञ

By भाषा | Updated: June 9, 2021 19:52 IST

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लुधियाना, नौ जून जानेमाने कृषि विशेषज्ञ डॉ. एस एस जोहल ने बुधवार को कहा कि संसद में निरसन विधेयक पेश किए बिना सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों को सीधे रद्द नहीं किया जा सकता।

विख्यात कृषि विशेषज्ञ और पूर्व के चार प्रधानमंत्रियों के सलाहकार रहे डॉ. एस एस जोहल ने कहा कि कानूनों को ठंडे बस्ते में डालना और उन पर चर्चा करना ही समस्या का एकमात्र समाधान है।

2004 में पद्म भूषण से सम्मानित 94 वर्षीय डा. जोहल ने इसको लेकर खेद जताया कि आंदोलनकारी किसानों और केंद्र सरकार के बीच कानूनों को लेकर मतभेद सुलझाने में दोनों पक्षों की मदद करने के लिए कोई भी वरिष्ठ राजनेता मध्यस्थता या गंभीर प्रयास करने के लिए आगे नहीं आया।

उन्होंने कहा, ‘‘यह बेहद खेदजनक स्थिति है कि पंजाब में आज के नेताओं की नजर वोट बैंक के अलावा और किसी चीज पर नहीं है।’’

जोहल ने कहा कि न तो किसी ने किसानों के प्रति सहानुभूति प्रकट की, न ही किसी ने उनकी आहत भावनाओं को शांत करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि साथ ही न किसी ने उन्हें शिक्षित करने और कोई रास्ता निकालने के लिए खुले दिमाग से उनके साथ मुद्दों पर चर्चा ही की।

उन्होंने किसानों को सुझाव दिया कि उन्हें तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने पर अड़े रहने के बजाय, अपनी मांगों की एक बिंदुवार सूची तैयार करनी चाहिए और विशेष रूप से उन प्रावधानों के साथ सामने आना चाहिए जिन्हें वे संशोधित करना, हटाना, बदलना या मौजूदा कानूनों में जोड़ना चाहते हैं।

डा. जोहल ने कहा, ‘‘मुझे दुख है कि किसान अभी भी बुरे समय से गुजर रहे हैं, कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, आत्महत्या कर रहे हैं और विभिन्न राजनीतिक दल निहित एजेंडे के लिए उनका शोषण कर रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘किसानों की पीड़ा को कम करने और उन्हें उनके उत्पादों के लिए उचित मूल्य देने के लिए अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है।’’

उन्होंने केंद्र सरकार को अपना रुख ठीक से समझाने में कथित तौर पर विफल रहने और तीन कानूनों को लागू करने में अनुचित जल्दबाजी दिखाने का भी जिम्मेदार ठहराया।

उन्होंने कहा कि इन कानूनों को लाने से पहले उन्हें सभी हितधारकों के साथ विस्तृत चर्चा करनी चाहिए थी।

बड़ी संख्या में किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर पिछले वर्ष नवम्बर से दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हुए हैं। साथ ही किसान अपनी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं। हालांकि, सरकार का कहना है कि ये कानून किसान समर्थक हैं।

किसानों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत इन कानूनों को लेकर गतिरोध को तोड़ने में नाकाम रही है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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