(दूर्बा घोष)
गुवाहाटी, 19 दिसंबर देश में सबसे अधिक हाथियों की दृष्टि से दूसरे नंबर पर आने वाले असम में वन्यभूमि के लगातार खेतों एवं चाय बगानों में तब्दील होने के कारण इंसानों एवं हाथियों के बीच संघर्ष की प्रवृति बढ़ती ही जा रही है।
इस साल ट्रेन के कारण हादसे, बिजली का करंट लगने, जहरखुरानी ,गड्ढों में गिरने तथा तड़ित के कारण 71 हाथियों की मौत हुई है जबकि इंसान के साथ संघर्ष में 61 हाथियों की जान चली गयी।
पिछले दस वर्षों में जमीन के लिए प्रतिस्पर्धा तेज होने के बीच कुल 812 इंसानों तथा 900 हाथियों की मौत हुई। जनसंख्या में वृद्धि एवं फलस्वरूप गरीबी बढ़ने से इंसान ने अपनी सीमाओं का विस्तार किया, परिणामस्वरूप जानवरों ने अपने आशियाने जंगल को सिकुड़ता पाया।
एलीफेंट फाउंडेसन के कौशक बरुआ ने कहा, ‘‘ बिखरते, घटते, सिकुड़ते एवं अतिक्रमित पर्यावास से इंसान-हाथी संघर्ष हुआ, फलस्वरूप बिजली का करंट लगने से, जहरखुरानी , ट्रेनों से टक्कर जैसी घटनाएं होने लगीं। यह असम के जंगली हाथियों की कहानी है और इसी दर पर, हाथियों की जिस संख्या पर हमें गर्व है, घटने लगी है।’’
असम में फिलहाल करीब 5700 हाथी हैं और वह इस सिलसिले में कर्नाटक के बाद दूसरे नंबर पर है। कर्नाटक में 6000 से अधिक हाथी हैं।
एक महीने से भी कम समय में चार जिंदगियां लीलने वाली तेज सरपट दौड़ती ट्रेनें एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है तथा राज्य सरकार एवं रेल प्रशासन हरकत में आ गया है।
पर्यावरण एवं वन मंत्री परिमल सुक्लावैद्य ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘ राज्य सरकार ने हाथियों को हादसे संबंधी मौतों से बचाने के लिए सभी संबंधित पक्षों को मिलाकर समन्वय समितियां गठित की है एवं अधिसूचित की हैं तथा स्थानीय रेंज अधिकारी को उनका सदस्य सचिव बनाया गया है।’’
उन्होंने कहा कि रेलमार्गों पर हाथियों के लिए संभावित जानलेवा क्षेत्रों की पहचान की गयी है तथा उसके लिए संबंधित कर्मी निगरानी करते हैं तथा इस बात के लिए रेल ड्राइवरों के लिए साइनबोर्ड भी लगाये गये हैं कि वहां हाथियों के होने की संभावना है।
उन्होंने कहा कि रेलमार्गों के आसपास नियमित रूप से वनस्पतियां साफ की जाती हैं ताकि ट्रेन चालाकों को हाथी नजर आ जाये तथा ऐसे दस्ते भी बनाये गये हैं जो ऐसे हादसों को रोकने के लिए काम करते हैं।
पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे की प्रवक्ता गुनीत कौर ने पीटीआई भाषा को बताया कि सतर्क ट्रेन चालकों द्वारा हाथियों को बचाने के कई उदाहरण हैं लेकिन हाल की घटना के संदर्भ में वन अधिकारियों या ग्रामीणों द्वारा नोडल रेलवे अधिकारियों को जानवरों की आवाजाही के बारे में कोई सूचना नहीं मिली।
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