नयी दिल्ली, 16 मार्च दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में हुई साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान दंगों के माध्यम से दुश्मनी और घृणा फैलाने, वाहनों को जलाने और भीड़ को उकसाने के आरोप में गिरफ्तार चार लोगों को मंगलवार को जमानत देते हुए कहा कि इन सभी को घटना से जोड़ने लायक कोई सीसीटीवी फुटेज या तस्वीर उपलब्ध नहीं है।
अदालत ने कहा कि पिछले साल मार्च में गिरफ्तार आरोपियों को और लंबे समय तक जेल में बंद नहीं रखा जा सकता है और आरोपों का सत्यापन सुनवाई के दौरान किया जा सकता है।
अदालत ने कहा, ‘‘सबसे बड़ी बात यह है कि याचिका दायर करने वालों के खिलाफ सीसीटीवी फुटेज, वीडियो क्लिप या फोटो जैसे साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं, जो उन्हें घटना से जोड़ सकें और उनके पास से कोई आपत्तिजनक बरामदगी भी नहीं हुई है। अदालत को बताया गया है कि इस मामले में आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका है और सुनवाई की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।’’
चारों मामलों में संयुक्त रूप से आदेश पारित करते हुए न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने कहा, ‘‘उक्त बातों को ध्यान में रखते हुए, मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी किए बगैर, पहली नजर में मेरा विचार है कि याचिकाकर्ताओं को और लंबे समय के लिए जेल में नहीं रहने दिया जा सकता है और उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों का सत्यापन सुनवाई के दौरान भी किया जा सकता है।’’
अदालत ने निर्देश दिया कि आरोपियों... लियाकत अली, अरशद कय्यूम, गुलफाम और इरशाद अहमद... को 20-20 हजार रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के जमानती पेश करने पर जमानत पर रिहा कर दिया जाए।
अदालत ने उन्हें निर्देश दिया कि वे प्रत्यक्ष या परोक्ष, किसी भी रूप में गवाहों और साक्ष्यों को प्रभावित ना करें और जब भी और जैसे भी कहा जाए वे अदालत में उपस्थित हों।
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