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दिल्ली उच्च न्यायालय : कोविड की दूसरी लहर से लेकर प्रदर्शन के अधिकार तक पर दिए महत्वपूर्ण आदेश

By भाषा | Updated: December 30, 2021 17:56 IST

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(अदिति सिंह और शिखा वर्मा)

नयी दिल्ली, 30 दिसंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2021 में कोविड-19 की विनाशकारी दूसरी लहर के दौरान चिकित्सकीय ऑक्सीजन और अस्पताल में बेड की कमी जैसे मुद्दों के लिए प्राधिकारों के रुख पर अप्रसन्नता जताई और नेताओं से संबंधित मामलों में आदेश पारित करके नागरिकों के दुखों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सोशल मीडिया कंपनियों और विरोध करने के अधिकार पर भी महत्वपूर्ण आदेश दिए।

उच्च न्यायालय ने कोविड-19 रोगियों को अस्पताल के बिस्तर और ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह भी चेतावनी दी राष्ट्रीय राजधानी के अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति में बाधा डालने की कोशिश करने वालों को ‘‘लटका’’ देगा। लोकतंत्र में असहमति की भूमिका उजागर करने वाले ऐतिहासिक फैसले में 2020 के दंगों में कुछ छात्र प्रदर्शनकारियों को जमानत दे दी।

नए सूचना प्रौद्योगिकी नियमों से संबंधित मामलों ने भी फेसबुक और वाट्सऐप के साथ वर्ष के दौरान उच्च न्यायालय को व्यस्त रखा, विशेष रूप से उन दिशानिर्देशों को चुनौती दी गई, जिनमें चैट (संवाद) का पता लगाने की आवश्यकता थी। केंद्र ने अपने जवाब में कहा कि उसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से या तो खुद या अधिकारियों की सहायता करके अवैध सामग्री का मुकाबला करने की उम्मीद है और नियमों से प्रेस की स्वतंत्रता के दुरुपयोग को रोकने और नागरिकों को फर्जी खबरों से बचाने में मदद मिलेगी।

उच्च न्यायालय ने 5जी तकनीक के खिलाफ अभिनेत्री जूही चावला के मुकदमे को खारिज कर दिया और याचिका को दोषपूर्ण, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग और प्रचार हासिल करने के लिए दायर बताते हुए 20 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ्ती और तृणमूल कांग्रेस सांसद अभिषेक बनर्जी सहित कुछ अन्य नेताओं ने भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज अलग-अलग धन शोधन मामलों में उन्हें जारी समन को चुनौती देते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया।

उच्च न्यायालय ने कोविड-19 की दूसरी लहर के चरम के दौरान देर रात तक कार्यवाही सहित 45 दिनों तक मैराथन सुनवाई की। चिकित्सकीय ऑक्सीजन पर केंद्र से जवाब मांगा गया।

कोरोन वायरस से निपटने के लिए स्थापित पीएम केयर्स फंड भी अदालत की जांच के दायरे में आया, जिस पर केंद्र ने कहा कि यह सरकारी कोष नहीं है क्योंकि दान भारत के समेकित कोष में नहीं जाता है।

नए नियमों के तहत अधिकारियों की नियुक्त को लेकर ट्विटर के मामले पर भी सुनवाई हुई। केंद्र ने दावा किया कि नए प्रारूप का पालन नहीं करने पर ‘इंटरमीडियरी’ के तहत छूट खत्म की जा सकती है। इस साल बाद में कार्यवाही बंद कर दी गई क्योंकि केंद्र ने कहा कि सोशल मीडिया कंपनी ने मुख्य अनुपालन अधिकारी और अन्य अधिकारियों की नियुक्ति कर दी है।

अपनी नयी गोपनीयता नीति के बारे में चिंताओं को दूर करते हुए, वाट्सऐप ने उच्च न्यायालय को बताया कि जब तक डेटा संरक्षण कानून लागू नहीं हो जाता, तब तक यह उपयोगकर्ताओं को अद्यतन नियम का विकल्प चुनने के लिए मजबूर नहीं करेगा।

अक्टूबर में, उच्च न्यायालय ने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के वरिष्ठ अधिकारी राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति यह कहते हुए बरकरार रखी कि इसमें कोई अनियमितता या अवैधता नहीं है।

उच्च न्यायालय में आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार की नयी आबकारी नीति को भी चुनौती दी गई। उच्च न्यायालय ने उन याचिकाओं पर दिल्ली सरकार और केंद्र का रुख भी पूछा जिसमें उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाने के कानून को असंवैधानिक घोषित करने का इस आधार पर अनुरोध किया गया कि यह संविधान और उच्चतम न्यायालय के दृष्टिकोण के विपरीत है। अवैध हॉकर, रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं के मामलों, निगम के कुछ श्रेणी के कर्मचारियों के बकाया वेतन जैसे मुद्दे पर भी सुनवाई हुई।

पिछले साल कोविड-19 की शुरुआत के समय से उच्च न्यायालय में डिजिटल तरीके से सुनवाई होने लगी और इस साल 22 नवंबर को प्रत्यक्ष तरीके से कार्यवाही फिर से बहाल हो गई।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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